सऊदी अरब में कम हो रहे हैं मौत की सजा के मामले
१८ जनवरी २०२१सऊदी सरकार के मानवाधिकार आयोग का कहना है कि उसने 2020 में मौत की सजा के 27 मामले दर्ज किए. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों एमनेस्टी इंटरनेशन और ह्यूमन राइट्स वॉच ने 2019 में देश में मौत की सजा के 184 मामले दर्ज किए थे. सरकारी संगठनों और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह गिरावट नशीली दवाओं के व्यापार से संबंधित हिंसक अपराधों के लिए मौत की सजा ना दिए जाने की वजह से आई है. सऊदी मानवाधिकार आयोग ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि इस तरह के अपराधों के लिए मौत की सजा पर रोक लगाने के लिए 2020 में एक नया कानून लाया गया.
लेकिन ये नए दिशा-निर्देश सार्वजनिक रूप से कहीं छपे नहीं हैं और यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कानून को हमेशा की तरह एक राजकीय आदेश के तहत बदला गया है या नहीं. सऊदी अरब में पिछले साल नाबालिगों द्वारा किए गए अपराधों के लिए भी मौत की सजा के प्रावधान को हटा दिया गया था. इसके अलावा न्यायाधीशों को यह आदेश भी दिया गया था कि सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने की सजा को भी बंद कर दिया जाए और उसकी जगह जेल, जुर्माना या सामुदायिक सेवा की सजा दी जाए.
इन सभी बदलावों के पीछे सऊदी के 34 वर्षीय राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान का हाथ है, जिन्हें उनके पिता राजा सलमान का समर्थन प्राप्त है. राजकुमार देश का आधुनिकीकरण करना चाह रहे हैं, देश में विदेशी निवेश लाना चाह रहे हैं और साथ ही साथ अर्थव्यवस्था का भी पुनर्निर्माण करना चाह रहे हैं. इस कोशिश में वो कई सुधार ले कर आए हैं जिनकी वजह से अति-रूढ़िवादी वहाबियों की ताकत पर अंकुश लगा है. वहाबी इस्लाम के कट्टर मूल्यों को मानते हैं और देश में कई लोग इन्हीं मूल्यों का पालन करते हैं. सालों तक देश में मौत की सजा के इतने ज्यादा मामलों की वजह थी गैर-घातक अपराधों के लिए लोगों को मौत की सजा दिया जाना.
न्यायाधीशों के पास विशेषाधिकार
इन पर फैसला देना के लिए न्यायाधीशों के पास विशेषाधिकार भी होता है. 2019 में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सबसे ज्यादा मौत की सजा के मामलों में सऊदी को चीन और ईरान के बाद विश्व में तीसरे नंबर पर रखा था. माना जाता है कि चीन में अभी भी हर साल हजारों लोगों को मौत की सजा दी जाती है. 2019 में सऊदी ने जिन लोगों को यह सजा दी थी, उनमें अल्पसंख्यक शिया समुदाय के 32 लोग भी थे जिन्होंने सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था. उन्हें आतंकवाद से जुड़े आरोपों के तहत सजा दे दी गई थी.
अधिकार समूह अक्सर मौत की सजा के लिए सऊदी अरब की आलोचना करते रहे हैं. सजा पाए लोगों में अक्सर गरीब यमनी नागरिक या दक्षिण एशियाई मूल के नशीले पदार्थों के तस्कर होते थी, जिन्हें अरबी भाषा की समझ या तो बिल्कुल भी नहीं होती थी या ना के बराबर होती थी. भाषा के ज्ञान के अभाव में वे अदालत में उनके खिलाफ पढ़े गए आरोपों को समझ भी नहीं पाते थे. सऊदी में मौत की सजा में मुख्य रूप से सिर काट दिया जाता है. कभी कभी सजा सार्वजनिक भी होती है.
अन्यायपूर्ण दंड-न्याय प्रणाली
देश का कहना था कि सबके सामने सजा देने से जुर्म के खिलाफ एक उदाहरण सिद्ध होता था. मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष अवाद अलावाद का कहना है, "नशीले पदार्थों से जुड़े मामलों में मौत की सजा पर रोक लगा कर सरकार और ज्यादा अहिंसक अपराधियों को एक दूसरा मौका दे रही है. उन्होंने कहा कि यह बदलाव इस बात का संकेत है कि सऊदी न्याय प्रणाली सिर्फ सजा पर ध्यान देने की जगह पुनर्वासन और रोक थाम पर ध्यान केंद्रित कर रही है. ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक 2020 में सऊदी में नशीले पदार्थों से जुड़े अपराधों के लिए सिर्फ पांच लोगों को मौत की सजा दी गई.
संस्था के दीप्ती मध्य पूर्व निदेशक एडम कूगल का कहना है कि यह एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन सऊदी अधिकारियों को "इस तरह की सजा देने वाली देश की बुरी तरह से अन्यायपूर्ण और पक्षपाती दंड-न्याय प्रणाली" की तरफ भी ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा, "एक तरफ सुधारों की घोषणा हो रही है लेकिन दूसरी तरफ कुछ जाने माने लोगों के लिए सिर्फ उनके विचारों और राजनीतिक संबंधों के लिए मौत की सजा की मांग की जा रही है. सऊदी अरब को हर गैर हिंसक अपराध के लिए मौत की सजा को खत्म कर देना चाहिए."
सीके/एए (एपी)
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