ईरान में बढ़ रहे हैं मृत्युदंड के मामले
२६ अक्टूबर २०२१इस साल जिन्हें मृत्युदंड दे दिया गया उनमें नौ महिलाएं और एक बच्चा शामिल थे. यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र जांचकर्ता जावेद रहमान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की मानवाधिकार समिति को दी.
रहमान ने कहा कि ईरान अभी भी "खतरनाक दर" से मृत्युदंड दे रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि "इन मामलों के बारे में आधिकारिक आंकड़ों और पारदर्शिता का अभाव है जिसकी वजह से इनके बारे में जानकारी दबी रह जाती है."
अस्पष्ट आरोप
ऐमनेस्टी इंटरनैशनल के मुताबिक मध्य पूर्वी देशों में ईरान में सबसे ज्यादा मृत्युदंड दिए जाते हैं. इस पूरे प्रांत में मौत की सजा के 493 मामले सामने आए, जिनमें से सबसे ज्यादा मामले ईरान के ही थे. उसके बाद मिस्र, इराक और सऊदी अरब का नंबर था.
ऐमनेस्टी की सूची में चीन शामिल नहीं है क्योंकि माना जाता है कि वहां हर साल हजारों लोगों को मौत की सजा दी जाती है लेकिन इनके बारे में जानकारी गोपनीय है. सीरिया जैसे संघर्ष से प्रभावित देशों को भी इस सूची से बाहर रखा गया है.
रहमान ने बताया कि उनकी ताजा रिपोर्ट उन वजहों को लेकर भी गंभीर चिंताओं को रेखांकित करती है जिनका इस्तेमाल ईरान मृत्युदंड देने के लिए करता है. इनमें "राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लगाए गए अस्पष्ट आरोप शामिल हैं."
उन्होंने यह भी कहा कि ईरान में "बुरी तरह से दोषयुक्त न्यायिक प्रक्रियाएं हैं जिनमें बुनियादी हिफाजतें तक नहीं हैं." रहमान ने यह भी बताया कि अदालतें यातनाएं दे कर जबरन हासिल किए गए इकबाल-ए-जुर्म जैसे हथकंडों पर बहुत निर्भर रहती हैं.
मानवाधिकारों का उल्लंघन
इन सब कारणों से वो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ईरान में मृत्युदंड के जरिये मनमाने ढंग से लोगों को जीवन के अधिकार से वंचित रखा जा रहा है.
रहमान का जन्म पकिस्तान में हुआ था और उन्होंने लंदन के ब्रुनेल विश्वविद्यालय में मानवाधिकार और इस्लामिक कानून की पढ़ाई की. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि मृत्युदंड के अलावा ईरान में मानवाधिकारों को लेकर कुल मिलाकर हालात काफी खराब हैं.
उन्होंने "मानवाधिकार कानूनों के गंभीर उल्लंघन के लिए भी बार बार दंड से दी जा रही मुक्ति" की भी बात की और इसमें शक्तिशाली पदों पर आसीन और सरकार में सर्वोच्च स्तर पर मौजूद लोग भी शामिल हैं.
रहमान ने कहा कि "इसी साल जून में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव इस बात को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं." उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा लेकिन ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी इससे पहले देश की न्यायपालिका के मुखिया थे.
अपने करियर की शुरुआत में अभियोजक के रूप में उन्होंने एक कथित "मृत्यु समिति" के लिए काम किया जो यह फैसला करती थी कि किसे मौत की सजा दी जाएगी और किसे बख्शा जाएगा. माना जाता है कि 1988 में इस प्रक्रिया के तहत कम से कम 5,000 लोगों को मार दिया गया था."
सीके/एए (एपी)