आर्थिक सर्वे: मुश्किल वक्त के लिए तैयार रहें
२५ फ़रवरी २०११बजट से पहले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 2010-11 का आर्थिक सर्वे संसद में पेश किया. सर्वे में कहा गया, "वैश्विक स्तर पर बढ़ती कीमतों के कारण घरेलू स्तर पर भी मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है."
अप्रैल 2010 में मुद्रास्फीति की दर 11 फीसदी पर थी लेकिन तब से यह घट रही है. जनवरी में यह 8.23 फीसदी रही. लेकिन आर्थिक सर्वे के मुताबिक आने वाले समय में इसमें बढ़ोत्तरी हो सकती है. सर्वे में कहा गया है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा उठाए गए ढांचागत और आर्थिक स्तर पर हुए बदलावों के चलते ही मुद्रास्फीति में कमी आई. सर्वे के मुताबिक, "इस साल बढ़ी सप्लाई के बावजूद मुद्रास्फीति पर मांग का असर नजर आएगा." इसका मतलब है कि कीमतें और बढ़ेंगी.
सर्वे में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के संकेतों पर भी बात की गई है जिनके मुताबिक
कच्चे तेल उपभोक्ता और गैर उपभोक्ता वस्तुओं पर बढ़ते दबाव के कारण कीमतों पर असर पड़ना लाजमी है. मध्य पूर्व में जारी राजनीतिक संकट के कारण तेल की कीमतों पर असर नजर आ ही रहा है और कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं जो पिछले दो साल में सबसे ज्यादा है.
भारत में तो पिछले एक साल से कीमतें लगातार उच्च स्तर पर बनी हुई हैं. पिछले साल फरवरी के बाद से मुद्रास्फीति की दर आठ फीसदी के ऊपर ही रही है. सर्वे में कहा गया है, "2000-01 से 2009-10 तक के दशक में मुद्रास्फीति का औसत 5.3 फीसदी रहा. चालू वित्त वर्ष में औसत मुद्रास्फीति 9.4 फीसदी रही है जो दशक के औसत से कहीं ज्यादा है."
वैसे भारत सरकार कह चुकी है कि जून-जुलाई तक मुद्रास्फीति 5 फीसदी के आसपास लौट आने की उम्मीद है.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः आभा एम