अमेरिका में कोरोना से मरने वालों की संख्या कितनी सही
२८ मई २०२०अमेरिका में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या की गणना राजनीतिक और वैज्ञानिक दोनों स्तरों पर एक बड़ा मुद्दा है. कुछ रुढ़िवादी लोग कह रहे हैं कि मरने वालों की तादाद असल से ज्यादा बताई जा रही है. दूसरी तरफ रिसर्चरों का कहना है कि जितनी संख्या बताई गई है उससे ज्यादा लोग मरे हैं. आखिर किसकी बात पर भरोसा किया जाए. आइए देखते हैं कि अमेरिका में यह संख्या आती कहां से है.
संख्या
अमेरिका में कोरोना वायरस से मरने वालों की कोई ऐसी संख्या नहीं है जो ताजा होने के साथ ही पूरी भी हो. मरने वालों की तादाद के आंकड़े डॉक्टरों की भेजी प्राथमिक रिपोर्ट के आधार पर तैयार होती है. यह रिपोर्ट डॉक्टर राज्य सरकार और स्थानीय स्वास्थ्य विभागों को भेजते हैं. यह संख्या कई वेबसाइटों पर देखी जा सकती है. इसमें कुछ सरकार की एजेंसियां हैं तो कुछ खबर देने वाले संगठन. कोरोना के दौर में सबसे ज्यादा लोग जिस वेबसाइट को संख्या के लिए देख रहे हैं वह जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की है. इस पर रिसर्चर आंकड़े डालते हैं.
यहां आंकड़े हर रोज तेजी से बदलते हैं, लेकिन मौत कब हुई और आंकड़ों में फेरबदल कब हुआ इसके बीच कोई संबंध नहीं है. उदाहरण के लिए वीकेंड में मरने वालों की संख्या कम दर्ज होती है. शायद इसकी वजह यह है कि इन दिनों कर्मचारियों की संख्या कम होती है और कम लोग मौत की रिपोर्ट फौरन दर्ज कराते हैं. ये आंकड़े सोमवार को जोड़े जाते हैं. जानकार इन आंकड़ों को पर्याप्त रूप से सही मान रहे हैं. अमेरिका के सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल, सीडीसी के रॉबर्ट एंडर्सन का कहना है कि इन पर भरोसा करना चाहिए.
इतना जटिल क्यों?
कोरोना वायरस से मरने वालों में बहुत से लोग बुजुर्ग थे और उनका जीवन पहले से ही जोखिम में था. अब ये चाहे दिल की बीमारी की वजह से हो या किसी और वजह से. ऐसे में उनकी मौत के लिए किसी एक चीज को जिम्मेदार मानना भी मुश्किल है. जानकारों का मानना है कि कोरोना वायरस ने बहुत से लोगों की मौत में क्या भूमिका निभाई इसकी पहचान मुश्किल है. खासतौर से तब जब अमेरिका में कोरोना वायरस शुरुआती दिनों में था.
मुमकिन है कि तब तक टेस्ट करना संभव नहीं था या फिर यह भी हो सकता है कि उस इलाके में तब कोरोना के पहुंचने के बारे में जानकारी ही नहीं थी. सीडीसी के मौत के आंकड़ों की जिम्मेदारी संभालने वाले एंडरसन कहते हैं, "किसी भी महामारी की शुरुआत में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को बीमारी के बारे में कम अनुभव होता है, ऐसे में इस बात की ज्यादा आशंका रहती है कि वो या तो उसे पहचानेंगे नहीं या फिर गलत पहचान करेंगे." समय बीतने के साथ अनुभव बढ़ता है और रिपोर्टिंग बेहतर होती है.
बढ़ती संख्या
कई महीनों तक ज्यादातर राज्यों ने सिर्फ प्रयोगशालाओं में पुष्ट हुए मामलों और मौत को ही दर्ज किया. हालांकि कई जगहों पर पर्याप्त रूप से सही टेस्ट मौजूद नहीं था जो कोरोना से हुए हर मौत की पुष्टि कर सकता. पिछले महीने सीडीसी ने राज्यों से कहा कि वो कोविड-19 के संभावित मामलों की जानकारी भी एजेंसी को सौंपें. संभावित मामले वो हैं जिनमें टेस्ट के नतीजे तो पॉजिटिव नहीं आए लेकिन दूसरे सबूत हैं. जैसे कि बीमारी के लक्षणों का दिखना या फिर संक्रमित इंसान के संपर्क में आना.
फिलहाल 28 राज्यों में केवल प्रयोगशाला में पुष्ट हुए मामलों को ही दर्ज किया जा रहा है जबकि 22 राज्य में संभावितों की संख्या भी इसमें शामिल है. सीडीसी के अधिकारियों का कहना है कि कितने मामलों की लैब में टेस्ट के जरिए पुष्टि हुई है और कितने मामले संभावितों के हैं इसकी सही सही जानकारी नहीं है.
डेथ सर्टिफिकेट
मौत का प्रमाण पत्र यानी डेथ सर्टिफिकेट मौत के आंकड़े जानने का सबसे बढ़िया स्रोत है. डॉक्टर या फिर मेडिकल एग्जामिनर मौत की समीक्षा करता है और कारण तय करने से पहले पोस्टमार्टम भी कर सकता है. हालांकि एक हफ्ते में दिए जाने वाले सारे प्रमाण पत्रों को सीडीसी तक पहुंचाने की इस पूरी प्रक्रिया में महीने भर या उससे ज्यादा वक्त लग सकता है. एंडरसन का कहना है कि उनकी संस्था कोरोना वायरस का जिक्र करने वाले प्रमाण पत्रों और महामारी से सीधे नहीं जुड़े मामलों को भी देख रही है.
पिछले महीने सीडीसी ने कहा कि अमेरिका में साल के इस वक्त तक सामान्य से 66000 ज्यादा लोगों की मौत हुई है. अतिरिक्त मौतों में से आधे से ज्यादा के लिए कोरोना वायरस को जिम्मेदार माना गया है. हालांकि एंडरसन का कहना है कि दूसरी मौतों के मामले में भी कोरोना वायरस एक कारण हो सकता है. उदाहरण के लिए किसी डेथ सर्टिफिकेट में न्यूमोनिया या फिर कोरोना वायरस से जुड़ी दूसरी बीमारियों का जिक्र बिना कोरोना का नाम लिए हो सकता है. एंडरसन का कहना है, "मेरे ख्याल से इस बात के बहुत सबूत हैं कि हमसे कुछ छूट रहा है."
एनआर/एमजे (एपी)
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