जर्मनी को क्यों नहीं मिल रहे हैं काम के लिये लोग
८ सितम्बर २०२२जर्मनी में प्लंबरों की कमी है, अमेरिका में डाक विभाग को कर्मचारी चाहिये, ऑस्ट्रेलिया को इंजीनियर चाहिये और कनाडा को ज्यादा नर्सों की जरूरत है. महामारी के दौर में जो पाबंदियां लगी थीं वो अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं और दुनिया के कई देशों में कामगारों की कमी बहुत ज्याादा महसूस हो रही है.
हालत यह है कि जर्मनी जैसे देश आप्रवासन नीतियों और विदेशी कामगारों को लेकर नियमों में बदलाव करने जा रहे हैं. पूर्वी जर्मनी में सॉफ्टवेयर कंपनी करेंट सिस्टम 23 के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मिषाएल ब्लूमे का कहना है कि उन्हें "कामगारों को ढूंढने में बहुत परेशानी हो रही है. जब भी हम ढूंढते हैं हमें कुशल कामगार नहीं मिलते."
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भारी संख्या में खाली पड़े पद
यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी में अगस्त के महीने में 887,000 नौकरियों की जगह खाली थी. पिछले साल की तुलना में यह संख्या 108,000 ज्यादा है. बुधवार को जर्मनी ने विदेशी कामगारों वाले नियमों में बदलाव कर उनके लिये यहां आना आसान बनाया है. लोगों के लिये कई देशों की राष्ट्रीयता एक साथ रखने के साथ ही विदेशी लोगों को जर्मनी में निवास की मंजूरी और नागरिकता की अनुमति को भी आसान बनाया जा रहा है.
जर्मनी में काम कर रहे और रच बस चुके लोगों को अब महज 3 साल में ही नागरिकता देने की तैयारी चल रही है. 2026 तक जर्मनी को ढाई लाख कामगारों की कमी होगी और इसी कमी को पूरा करने के लिये नियमों में बदलाव किये जा रहे हैं. बुधवार को श्रम मंत्रालय ने इस बारे में एक योजना पेश की है, जिसमें कहा गया है कि जर्मनी खुद को विदेशी कामगारों के लिये ज्यादा आकर्षक बनायेगा. इसके लिये कामगारों को आगे की पढ़ाई करने की भी अनुमति देने की तैयारी है.
क्यों नहीं मिल रहे कामगार
8 करोड़ की आबादी वाले जर्मनी में कई उद्योगों में कामगारों की भारी कमी है. श्रम मंत्रालय ने अनुमान लगाया है कि 2026 तक देश में 240,000 कुशल कामगारों की कमी होगी. इन सबके पीछे डिजिटल बदलाव, महामारी और यूक्रेन युद्ध के असर को कारण बताया जा रहा है जिसकी वजह से श्रम बाजार में नई चुनौतियां आई हैं. श्रम मंत्री हुबर्टुस हाइल का कहना है, "कई कारोबारों के लिये कुशल कामगार की खोज अब अस्तित्व का सवाल बन गया है. हमारे देश को कुशल कामगारों की जरूरत है ताकि अर्थव्यवस्था के डिजिटाइजेशन को संभाला जा सके और क्लाइमेट न्यूट्रल बनने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके."
मंत्रालय ने इस मुद्दे से निपटने के लिये रणनीति का खाका तैयार कर लिया है. इसमें ट्रेनिंग को बेहतर करने के साथ ही आप्रवासन के तंत्र को भी आधुनिक बनाया जायेगा. आज जर्मनी का नागरिक बनने में 8 साल का समय लगता है लेकिन इसे भविष्य में पांच साल करने की तैयारी है. जो लोग पूरी तरह से यहां के तंत्र और संस्कृति में रच बस गये हैं उनको यह सुविधा तीन साल में ही मिल जायेगी. मंत्रालय अगले कुछ महीनों में कैबिनेट की मंजूरी के लिये इस रणनीति को पेश करेगा.
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कई देशों में खाली पदों को भरने का संकट
दुनिया के कई और देशों में यह संकट है लेकिन पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों में खास तौर से खाली पदों को भरने में सबसे ज्यादा दिक्कत हो रही है. पूर्वी यूरोप, तुर्की और लैटिन अमेरिका के देश भी इस मुश्किल से जूझ रहे हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ी है और कई जगह मंदी की भी आशंका है लेकिन फिर भी खाली पदों को भरने के लिये कामगार नहीं मिल रहे हैं. जुलाई में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ओईसीडी ने रिपोर्ट दी कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन में खाली पद और बेरोजगारी का औसत 2021 के आखिर में महामारी के पहले वाली समय की तुलना में काफी तेजी से बढ़ा है.
सिर्फ सरकारें ही नहीं कारोबारियों को भी इसकी वजह से कई सारे बदलाव करने पड़ रहे हैं. अमेरिका में फार्मेसी तो कनाडा में अस्पताल और ऑस्ट्रेलिया में रेस्तरां कर्मचारियों की कमीके कारण बंद हो रहे हैं या फिर कम देर के लिये खुल रहे हैं.
बढ़ती उम्र और महामारी
जर्मनी जैसे देशों में एक समस्या बूढ़े हो रहे लोगों की भी है जो कोविड की महामारी के बाद और ज्यादा बड़े रूप में सामने आई है. इसके पीछे भी कई कारण हैं. बहुत से लोगों ने जल्दी रिटायर होने का फैसला कर लिया तो कुछ लोग कोविड के कारण हुई दिक्कतों से उबर नहीं पाये हैं. इसी तरह कुछ लोग काम की खराब परिस्थितियों या फिर कम तनख्वाह के कारण नौकरी छोड़ रहे हैं. एक बड़ा कारण आप्रवासन में आई भारी कमी भी है.
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लॉकडाउन या फिर इसी तरह की वजहों से लोगों का एक जगह से दूसरी जगह जाना मुश्किल या फिर बंद भी रहा है. बहुत से युवाओं ने इस समय का इस्तेमाल करियर के दूसरे विकल्पों की ओर जाने में किया है. ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म मैकिंजी के विशेषज्ञ बोनी डॉलिंग कहते हैं, "महामारी ने लोगों की धारणा और प्राथमिकतायें बदल दी हैं, जबकि नौकरी देने वाले उस बदलाव के साथ नहीं चल सके हैं."
मैकिंजी ने दुनिया भर में नौकरियों के इस्तीफे में आये इजाफे का सर्वेक्षण किया है. कर्मचारियों को लुभाने के लिये कंपनियां ऊंची तनख्वाह दे रही हैं, दूसरे फायदों में वर्क फ्रॉम होम और "बोनस" छुट्टियां भी दी जा रही हैं ताकि लोग निजी रूप से ज्यादा वक्त बिता सकें.
एनआर/एमजे (एएफपी, डीपीए)