भारत में रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने से नुकसान
६ सितम्बर २०२२भारत में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने अपने ´विजन 2047 डॉक्यूमेंट´ में राष्ट्रीय स्तर पर रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने की बात कही है. ऐसा करने का कारण देश में बढ़ती लाइफ एक्सपेक्टेंसी और पेंशन सिस्टम को जारी रखने के लिए पर्याप्त फंड का प्रबंध किया जाना बताया गया है. कहा गया है कि यह कदम उठाकर ही लोगों के लिए रिटायरमेंट के पर्याप्त फायदे सुनिश्चित किए जा सकते हैं.
दरअसल डॉक्यूमेंट के मुताबिक 2047 तक भारत में 60 साल से अधिक आयु के 14 करोड़ लोग होंगे और इससे देश के पेंशन फंड पर भारी दबाव पड़ेगा. इसी के मद्देनजर पेंशन सिस्टम में बदलाव सुझाए गए हैं. डॉक्यूमेंट में कहा गया है, रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने का कदम दूसरे देशों में पहले किए जा चुके अनुभवों के मुताबिक होगा और यह पेंशन सिस्टम को दुरुस्त बनाए रखने के लिए अहम होगा.
हालांकि जर्मनी के आईजेडए इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर इकॉनॉमिक्स में रिसर्चर प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा इस सुझाव की तात्कालिक वजह ईपीएफओ के लगातार कम होते पेंशन सब्सक्राइबर को मानते हैं. वह कहते हैं, "ईपीएफओ परेशान है क्योंकि घटते पेंशन सब्सक्राइबर्स की वजह से ईपीएफओ के पेंशन फंड में कमी आ रही है. ऐसे में अगर रिटायरमेंट की उम्र दो साल बढ़ा भी दी जाती है तो उससे पेंशन फंड पर कुछ खास असर नहीं पड़ेगा."
विकसित देशों से तुलना सही नहीं
रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने के सुझाव के पीछे ईपीएफओ का एक तर्क यह भी है कि भारत में ऐसे बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, जिन्हें बढ़ती उम्र में आय और स्वास्थ्य सुरक्षा की जरूरत होगी. डॉक्यूमेंट में यूरोपीय संघ के देशों में रिटायरमेंट की उम्र का हवाला भी दिया गया है. कहा गया है कि डेनमार्क, इटली और ग्रीस में रिटायरमेंट की उम्र 67 साल है, जबकि अमेरिका में यह 66 साल है, क्योंकि इन सारे ही देशों में जनसंख्या की उम्र बढ़ रही है.
हालांकि जानकार इससे सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि विकसित देशों के पेंशन मॉडल से तुलना के लिए लाइफ एक्सपेक्टेंसी के अलावा नए रोजगारों की उपलब्धता, नए कर्मचारियों की उपलब्धता, बेरोजगारी की दर, कर्मचारियों की उत्पादकता और स्वास्थ्य की स्थिति जैसे पैमाने भी अहम हैं.
जर्मनी में भी रिटायरमेंट की उम्र बढ़ने की चर्चा
यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी में भी रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाए जाने की चर्चा है. यहां अर्थव्यवस्था कर्मचारियों की भारी कमी से जूझ रही है. इस साल की पहली तिमाही में यहां करीब 17.5 लाख जॉब वेकैंसी आईं, जो 30 साल पहले जर्मनी के संयुक्त होने के बाद से एक तिमाही में आई, सबसे ज्यादा वेकैंसी हैं.
वहीं जर्मनी में युवा लोगों की जनसंख्या में भी भारी कमी आई है, फेडरल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस के मुताबिक जुलाई में देश की सिर्फ 10 फीसदी जनता 15 से 24 के आयुवर्ग में थी. जबकि 20 फीसदी लोग 65 साल से अधिक उम्र के थे. जबकि भारत में करीब 7 फीसदी लोग ही 65 साल से अधिक उम्र के हैं. और 44 फीसदी लोग 24 साल से कम के हैं, जो भविष्य में रोजगार क्षेत्र में आएंगे.
भारत में पेंशन की स्थिति बेहद खराब
जर्मनी की जन्मदर भी इतनी कम है कि नए कर्मचारियों की संख्या में आ रही कमी को पूरा नहीं किया जा सकता. ऐसे में देश की पेंशन पर भारी दबाव है. ऐसे में यहां बहस चल रही है कि बढ़ती जनसंख्या, कर्मचारियों की कमी और पेंशन पर दबाव तीनों को ही रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर एक साथ ठीक किया जा सकता है और एक प्रस्ताव रिटायरमेंट की उम्र को बढ़ाकर 70 साल किए जाने का दिया जा रहा है.
लेकिन भारत में अभी जन्मदर कोई खास समस्या नहीं है. इसके अलावा भारत की अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाली कंपनी सीएमआईई के मुताबिक भारत में 40 करोड़ लोग रोजगार में लगे हैं, जिनमें से फिलहाल भारत में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के तहत पेंशन योग्य 6 करोड़ लोग ही हैं और ईपीएफओ के पास पेंशन के लिए कुल 12 लाख करोड़ रुपये का फंड है. ऐसे में अर्थशास्त्री मानते हैं कि पहली जरूरत रोजगारों को नियमित किए जाने और पेंशन की स्थिति में सुधार की है.
कर्मचारी और इंप्लॉयर दोनों को राजी करना मुश्किल
जब भारत सरकार पहले ही अपनी ओर से पेंशन के लिए दिए जाने वाले योगदान को कम करने पर जोर दे रही है. ऐसे में लेबर इकॉनॉमिस्ट प्रोफेसर मेहरोत्रा का मानना हैं कि कर्मचारी और रोजगार देने वाली कंपनियां दोनों ही इस कदम का समर्थन नहीं करेंगे. साथ ही भारत में बुजुर्गों में तेजी से बढ़ते रोग भी इसमें बाधा बनेंगे.
यहां बुजुर्ग आबादी के लिए मजबूत स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद नहीं है. जबकि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की एल्डरली इन इंडिया 2021 रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 60 साल से ज्यादा की उम्र के लोगों की संख्या 2031 में ही 19 करोड़ से ज्यादा हो जाने का अनुमान लगाया गया है.
ऐसे में रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने का सुझाव भारत के लिए कई अनजानी परेशानियों के दरवाजे भी खोल सकता है. हालांकि इस मुद्दे पर अभी ईपीएफओ की ओर से तमाम स्टेकहोल्डर्स से और चर्चा किए जाने की बात कही गई है.