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नेता मस्त जनता पस्त

८ अक्टूबर २०१३

वैसे तो राजनीति को मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति मान लिया गया है लेकिन महामारी जैसी आपदा में मरते लोगों पर जहां राजनीति होने लगे तो समझ लेना चाहिए कि नजारा भारत का है. भारत में आपदा भी आसान अखाड़ा बन जाती है.

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तस्वीर: Reuters

देश की राजधानी दिल्ली बाकी राज्यों से तरक्की के पैमाने पर अव्वल होने का दावा करती इठलाती है. मगर इन दिनों बदलते मौसम में हर साल आने वाली डेंगू जैसी मामूली सी बीमारी ने दिलवालों की दिल्ली को शर्माने पर मजबूर कर दिया है. देश भर में अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से लैस मेडिकल टूरिज्म सेंटर के तौर पर उभरी दिल्ली को इन दिनों डेंगू ने दहला दिया है. पिछले तीन सप्ताह में डेंगू ने दर्जन भर लोगों को लील लिया है और तीन हजार मरीज अस्पतालों में पड़े हैं. सरकारी और गैरसरकारी अस्पतालों के भारी भरकम नेटवर्क के बावजूद मामूली सी बीमारी जब महामारी बन गई तब लोगों को समझ आया कि वे बीमारी के नहीं बल्कि राजनीति के शिकार हुए हैं.

सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन यह हकीकत है कि मौसमी मार के अलावा इस अमानवीय सियासी दांव पेंच के पीछे नेताओं का मकसद अगले पांच साल के लिए सत्ता को अपने पाले में खींचना एक अहम कारण है.

डेंगू ने भी तोड़ा रिकॉर्ड

तमाम मोर्चों पर बेहतरी के रिकार्ड बनाती दिल्ली में डेंगू के लिए भी लगे हाथ रिकॉर्ड बनाने का सुनहरा मौका था जो चुनाव के कारण हकीकत बन गया. दिल्ली में वैसे तो हर साल बारिश के बाद सितबंर अक्टूबर में डेंगू का खतरा मंडराता है लेकिन इस साल अब तक के सबसे ज्यादा मामले सामने आने का रिकॉर्ड कायम हुआ है. मजे की बात तो यह है कि सरकार खुद इन आंकड़ों को क्षेत्रवार पेश कर तस्वीर को भयानक बताने से चूक नहीं रही है. अपने ही नकारात्मक तथ्यों को उजागर करने के पीछे सरकार की पारदर्शी मंशा होने की भूल नहीं करना चाहिए. दरअसल इसके पीछे नगर निगम की सत्ता में बैठी विरोधी पार्टी को बेनकाब करना है.

सियासत का सच

दिल्ली के साथ प्रशासनिक विडंबना एकल प्राधिकार का न होना है. दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है लेकिन सिटी स्टेट का दर्जा प्राप्त होने के कारण यहां राज्य सरकार है. इस सरकार के पास सीमित अधिकार हैं. मसलन कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी और भू स्वामित्व जैसे अधिकार केन्द्र सरकार के पास हैं. इसी तरह साफ सफाई की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार से बिल्कुल स्वतंत्र नगर निगम के पास है. दिल्ली में नागरिक सुविधाएं दे रहे तीन नगर निगमों में राज्य सरकार की ही तरह चुनी हुई समानांतर स्थानीय सरकार चलती है. अब इसे वक्त का फेर ही कहेंगे कि दिल्ली सरकार में कांग्रेस की सत्ता है जबकि तीनों निगमों में विपक्षी दल बीजेपी की. दिसंबर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के ठीक पहले डेंगू ने दोनों दलों को एक दूसरे पर हमला करने की मुंहमांगी मुराद पूरी करने का मौका दे दिया.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

यहीं से डेंगू पर राजनीति का गंदा दौर शुरु होता है. जब 15 सितंबर के बाद डेंगू के मामले आने शुरु हुए तब सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय इसे मौसमी बीमारी मानकर चुप बैठा रहा. विभाग ने तीनों निगमों को डेंगू फैलने से बचाने के लिए साफ सफाई के माकूल इंतजाम करने का निर्देश जारी कर दिया. इधर निगमों ने फंड की कमी का हवाला देकर सफाई इंतजाम दुरुस्त करने के बजाय पहले जैसे लचर ही रहने दिए. विभागीय स्तर पर चल रही कागजी कार्यवाही से अनजान जनता तब जागी जब 23 सितंबर को चार मौतें और तीन दिन के भीतर एक हजार मामले सामने आ गए.

अब हरकात में आई दिल्ली सरकार ने अपने सभी 34 अस्पतालों में डेंगू के लिए दस दस अतिरिक्त बेड और निजी अस्पतालों में पांच पांच बेड आरक्षित करने के निर्देश जारी किए. सरकार ने ऐसा कर डेंगू के लिए कुल 558 बेड आरक्षित कर दिए लेकिन तब तक हर दिन पांच सौ मरीज पूरे शहर से सामने आने लगे. इससे यह इंतजाम नाकाफी साबित हुए.

यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 08/10 और कोड 388 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.
यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 08/10 और कोड 388 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए [email protected] पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: Fotolia/ra2 studio

जब हदें हुई पार

अब डेंगू को विकराल होने का और सरकार एवं निगम को एक दूसरे पर आरोप लगाने का मौका मिल गया. निगम में सत्तारुढ़ भाजपा ने सरकार पर डेंगू नियंत्रण कोष जारी न करने का आरोप लगाया. मीडिया में आई तस्वीरों ने गंदगी में आकंठ डूबे झुग्गी बस्ती इलाके और अस्पतालों में बजबजाती नालियों और कूड़े के ढेर पर बैठे मरीजों की जब हकीकत उजागर की तब सरकार ने पलटवार करते हुए कहा कि निगमों को डेंगू नियंत्रण कोष की 75 प्रतिशत राशि पहले ही जारी कर दी गई.

इस पर नया पैंतरा खेलते हुए बीजेपी ने आरोप लगाया कि पुराना फंड तो खर्च हो गया है अब आपदा की स्थिति में शेष 25 प्रतिशत राशि के अलावा पैसा दिया जाए. हद तो तब हो गई जब मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 25 सितंबर को बीजेपी पर चैंकाने वाला आरोप लगाया कि सभी निगम कर्मचारी और अधिकारी 28 सितंबर को होने वाली नरेन्द्र मोदी की रैली की तैयारियों में लगा दिए गए हैं जबकि इन लोगों का काम स्थानीय इलाकों में सफाई सुनिश्चित कर डेंगू को रोकना है.

बेशर्मी की तस्वीर भी सामने आई जब तीनों मेयर अपने इलाकों में डेंगू से परेशान जनता के दर्द को समझने के बजाए मोदी के रैली स्थल जापानी पार्क में मुस्तैद दिखे. इससे भी ज्यादा हैरत में डालने वाली बात यह रही कि रैली स्थल के आसपास का इलाका संवारने में निगम का पूरा तंत्र झोंक दिया गया जबकि यही इलाका डेंगू से सर्वाधिक प्रभावित था. उस समय तक रैली स्थल वाले रोहिणी इलाके से 800 मरीज सामने आ चुके थे.

छली गई जनता

सब अपनी गति से चलता रहा, मरीज बढ़ते गए, आरोपों के बीच रैली भी हुई और जनता मूकदर्शक बनी सब कुछ देखती रही. नेताओं को पता था कि डेंगू का कहर 15 से 20 दिन रहता है. इस मौके का सबने जम कर फायदा उठाया. बीजेपी ने मोदी की रैली सरकारी अमले की मदद से आयोजित कर ली, इधर कांग्रेस ने आरोपों के जरिए जनता को बीजेपी की इस चाल से वाकिफ भी करा लिया. मोदी दिल्ली से और मरीज दुनिया रुखसत हो गए, इस उम्मीद में कि शायद डेंगू अगले साल इतना कहर न बरपा सके क्योंकि तब तक चुनाव का गुबार निकल चुका होगा.

ब्लॉगः निर्मल यादव

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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