सौवें तिब्बती का आत्मदाह
१५ फ़रवरी २०१३नेपाल पुलिस के प्रवक्ता केशव अधिकारी का कहना है कि यह व्यक्ति 21 साल के आस पास का है लेकिन उसकी पहचान नहीं हो पाई है. इस घटना के बाद नेपाल ने काठमांडू और दूसरे इलाकों में पुलिस गश्त तेज कर दी है. यहां कई तिब्बतियों ने शरण ले रखी है. इस व्यक्ति की मौत त्रिभुवन यूनिवर्सिटी अस्पताल में हुई और यहां की सुरक्षा भी कड़ी कर दी गई है.
काठमांडू के बाहरी इलाके में बौधनाथ स्तूप के पास इस व्यक्ति ने अपने शरीर पर पहले मिट्टी का तेल छिड़का और फिर चीन विरोधी नारे लगाने के बाद शरीर में आग लगा ली.
चश्मदीदों का कहना है कि पहले यह व्यक्ति पास के एक रेस्तरां में गया और कहा कि उसे बाथरूम इस्तेमाल करना है. इसके कुछ देर बाद वह सड़क पर लौटा और खुद को आग लगा ली.
इस मौत के साथ ही चीन के विरोध में आत्मदाह करने वाले तिब्बतियों की संख्या 100 तक पहुंच गई है. ऐसी पहली घटना 2009 में हुई थी.
नेपाल में हजारों तिब्बती शरणार्थी रहते हैं और वे आए दिन चीन के खिलाफ प्रदर्शन करते रहते हैं. नेपाल ने इस तरह के प्रदर्शनों पर रोक लगा रखी है और उसका कहना है कि वह अपने दोस्त राष्ट्रों के खिलाफ प्रदर्शन की इजाजत नहीं दे सकता.
लेकिन इसके साथ ही वह तिब्बतियों को उनके घरों से भारत के धर्मशाला जाने के लिए रास्ता भी देता है. तिब्बतियों की निर्वासित सरकार धर्मशाला से चलती है, जहां उनके सबसे बड़े धार्मिक गुरु नोबेल पुरस्कार विजेता दलाई लामा रहते हैं.
ताजा घटना के बाद धर्मशाला में रहने वाले 19 साल के तिब्बती नोरबू दामद्रुल ने कहा, "हमें तिब्बत के लिए स्वतंत्रता चाहिए.
चीन की सेना ने 1951 में तिब्बत को घेर कर इसे चीन का हिस्सा बताया. हालांकि तिब्बती खुद को अलग मानते हैं. इसके बाद दबाव के बीच दलाई लामा भाग कर भारत पहुंच गए. वह 50 से भी ज्यादा साल से भारत में रह रहे हैं. उनका कहना है कि वह तिब्बत के लिए आजादी नहीं बल्कि स्वायत्तता चाहते हैं, लेकिन युवा तिब्बती आजादी की मांग कर रहे हैं.
एजेए/एमजे (एएफी, एपी)