तिब्बत की आवाज
२४ जनवरी २०१३बर्तन धोते समय या कपड़े खंगालते हुए वह गुनगुना लिया करती थी. लेकिन घर की चारदीवारी के बाहर भी कभी सोनम की आवाज सुनाई देगी यह किसी ने नहीं सोचा था. तिब्बत में जन्मी सोनम बचपन में जिस घर में काम करती थीं वहां उन्हें चीनी प्रेम गीत सुनने को मिलते थे, इन गीतों में धीरे धीरे सोनम की दिलचस्पी बढ़ती गई.
परिवार से दूर
अपनी आत्मकथा 'चाइल्ड ऑफ टिबेट: द स्टोरी ऑफ सोनम्स फाइट टू फ्रीडम' में इस खूबसूरत गायिका ने अपने अशांत बचपन और जीवन की कठिनाइयों के बारे में बताया है. यह किताब उन्होंने लेखक और पत्रकार विकी मैककेंजी के साथ मिल कर लिखी है. उन्होंने बताया है कि किस तरह से चीनी सेना ने उनके परिवार को प्रताड़ित किया और फिर उनकी आंखों के सामने माता बिता के साथ दुर्व्यवहार किया.
सोनम छह साल की थीं जब उनके माता पिता ने उन्हें किसी अनहोनी से बचाने के लिए एक रिश्तेदार के पास रहने ल्हासा भेज दिया. हालांकि वह रिश्तेदार इस बात से बहुत खुश नहीं थीं. उन्होंने सोनम को किसी और घर में रहने के लिए अंजाने लोगों के बीच भेज दिया जहां सोनम ने लगभग 10 साल तक नौकरों का जीवन जिया.
तिब्बत से यूरोप तक
16 साल की उम्र में वह वहां से भाग निकलीं. इस बीच उन्होंने करीब 100 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय की और वह हिमालय से गुजरते नेपाल और भारत पहुंचीं. सोनम में अपनी इस किताब में लिखा है कि आजादी ने उन्हें आगे बढ़ते रहने का हौसला दिया. इस अकेले सफर में सोनम के साथ बलात्कार भी हुआ जिसके बाद उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया.
जिन हालात में सोनम जी रही थीं, उनमें बच्ची की देखभाल संभव नहीं थी. उन्होंने बच्ची को अपने परिवार के पास तिब्बत भेज दिया. अंत में सोनम को दिल्ली के एक उच्च वर्गीय परिवार में पनाह मिली. वहां वह सुरक्षित भी थीं और घरेलू काम कर रोजी रोटी भी कमा रही थीं. इसी बीच इस परिवार में आने जाने वाले एक फ्रांसीसी युवक से सोनम की जान पहचान हुई. उन्हीं के साथ वह पहली बार यूरोप भी आईं.
इंग्लैंड की यात्रा के दौरान सोनम ऐसे युवक से मिलीं जो झट से उनसे शादी करने के लिए तैयार हो गया. कुछ साल से सोनम समुद्र के किनारे बसे शहर ब्राइटन में अपने पति और बेटी के साथ रह रही हैं. इस नये जीवन के लिए वह ईश्वर की शुक्रगुजार हैं.
दर्द और प्यार
वह प्यार जो सोनम से हालात ने छीन लिया था, हालात ने ही उन्हें लौटाया. आज सोनम तिब्बत की आजादी और शांति के लिए गीत गाती हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "मेरे लिए संगीत का मतलब है आध्यात्म. जब मैं गाती हूं मैं खुद को कुदरत के बहुत करीब महसूस करती हूं." सोनम के संगीत में ठहराव के साथ वह दर्द भी सुनाई देता है जो तिब्बत के हालात को बयान करता है.
सोनम के दोबारा संगीत से जुड़ने में किस्मत का ही हाथ कहेंगे. दरअसल एक बार वह किसी मित्र की शादी के समारोह में गईं. आयोजन में शांति थी जिसे तोड़ने के लिए सोनम ने अचानक ही कुछ गाना शुरू कर दिया. सोनम के हुनर को पार्टी में मौजूद मेहमानों में उसने पहचान लिया जो खुद पंक बैंड 'सेक्स पिस्टल' का सदस्य रह चुका था.
दलाई लामा का असर
इसके बाद सोनम ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. 2003 में लंदन ओपरा हाउस में उनका कंसर्ट हुआ. इसके बाद वह दलाई लामा से मिलीं. इस मुलाकात ने सोनम पर इतना असर डाला कि वह बौद्ध धर्म की पक्की अनुयायी बन गईं. वह बताती हैं, "उन्होंने मुझे समझाया कि हम रातो रात पूरी दुनिया के बदल जाने का सपना कैसे देख सकते हैं. उन्होंने कहा कि बदलाव हमें अपने आप से शुरू करना होगा. हर परिवर्तन की शुरुआत हमारी खुद की छोटी सी मुस्कान के साथ होती है."
सोनम ने अपने गानों का दायरो सिर्फ अपने बचपन से जुड़े तिब्बती गीतों तक सीमीत नहीं रखा है. इन दिनों वह तिब्बती लोक संगीत को दुनिया भर के संगीत यंत्रों और ध्वनियों से जोड़ कर प्रयोग कर रही हैं. भारतीय रैप, इलेक्ट्रॉनिक ध्वनि और लोक गीतों के साथ वह गिटार और बांसुरी की तालमेल बिठा रही हैं. हाल ही में आई उनकी एल्बम 'नैचुरल माइंड' इसका उदाहरण है. तिब्बती भाषा न समझने वाले भी उनके संगीत को पसंद करते हैं और महसूस करते हैं कि उन्होंने उसे कितने मन से गाया है.
तिब्बत की आवाज
हालांकि सोनम का संगीत पश्चिमी कानों को नया और अटपटा लग सकता है लेकिन तिब्बत वासियों के लिए यह मिस्री की तरह काम करता है. संगीत समीक्षक सोनम को 'तिब्बत की आवाज' कहते हैं. हाल ही में आए उनके एक गीत में उन्होंने अपने सपने की बात की है, और उनका वह सपना है विश्व शांति. वह कहती हैं, "हम सब का एक ही सपना है कि विश्व में शांति स्थापित हो, आजादी हो और इंसानियत हो. हम सिर्फ दुनिया में ही एक साथ नहीं रहते हैं, बल्कि हमारे आध्यात्म की भी एक ही दुनिया है. एक कलाकार होने के नाते मैं शांति और सौहार्द्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझती हूं."
रिपोर्ट: सुजाने कॉर्ड्स/एसएफ
संपादन: ईशा भाटिया