शांति के लिए जमीन देने को तैयार इस्राएल
२५ मई २०११अमेरिका दौरे पर गए नेतान्याहू ने संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हुए कहा कि पश्चिमी तट पर बनाई गई नई बस्तियों में से वह कुछ छोड़ने को तैयार हैं लेकिन अगले किसी भी समझौते में वहां बनाई गई दूसरी बस्तियों को इस्राएल का हिस्सा घोषित करना होगा. उन्होंने कहा कि वह शांति हासिल करने के लिए दर्द भरे फैसले लेने को तैयार हैं लेकिन फलीस्तीन ने उनकी रियायतों को खारिज कर दिया और इसे गुमराह करने वाला बताया.
दक्षिणपंथी विचारधारा वाले नेतान्याहू पांच दिनों की अमेरिका यात्रा पर हैं, जहां वह ओबामा प्रशासन से शांति प्रक्रिया पर चर्चा कर रहे हैं. अमेरिकी संसद यानी कांग्रेस में उनके बयान पर खूब तालियां बजीं लेकिन ओबामा के साथ उनकी बातचीत कड़ुवाहट के साथ खत्म हुई. ओबामा ने उनसे देश की सीमाएं 1967 के पहले की सीमाओं के आधार पर करने की अपील की थी, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया.
शांति की कोशिश
उन्होंने अमेरिकी संसद में कहा, "मैं इस ऐतिहासिक शांति को हासिल करने के लिए बेहद बोझिल फैसला करने को तैयार हूं." उन्होंने ऐसी ही बात 15 मई को इस्राएली संसद में भी कही थी लेकिन इसके साथ कुछ शर्तें भी जोड़ दी थीं. नेतान्याहू ने अमेरिकी संसद में भी कुछ ठोस प्रस्ताव नहीं रखे और यह भी साफ कर दिया कि इस्राएल इसके लिए कड़ी शर्तें रखेगा.
नेतान्याहू जिन शर्तों की बात कर रहे हैं, उसके मुताबिक फलीस्तीन को इस्राएल को एक यहूदी राष्ट्र के रूप में मान्यता देनी होगी और फलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को हमास के साथ समझौता तोड़ना होगा. अमेरिका सहित पश्चिमी जगत हमास को आतंकवादी संगठन मानता है.
जानकारों का मानना है कि नेतान्याहू को यह बात अच्छी तरह पता है कि फलीस्तीन उनकी शर्तों को नहीं मानेगा. लेकिन वह अमेरिका और यूरोप को दिखाना चाहते हैं कि इस्राएल शांति के लिए गंभीर है. सितंबर में संयुक्त राष्ट्र में फलीस्तीन को राष्ट्र का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव आने वाला है और उससे पहले इस्राएल अपना केस मजबूत करना चाहता है.
सीमा नहीं बदलेगी
इस्राएली प्रधानमंत्री का कहना है कि कोई भी समझौता भौगोलिक सीमाओं के बदलाव के बिना संभव है. उनका इशारा उस जमीन की तरफ था, जो फलीस्तीन चाहता है और जहां इस्राएल ने गैरकानूनी बस्तियां बना ली हैं. अमेरिका के दौरे पर वह लगातार जो बात कह रहे हैं, उन्होंने संसद में एक बार फिर कहा, "इस्राएल 1967 की सीमाओं पर नहीं लौटेगा." 44 साल पहले एक युद्ध के बाद इस्राएल ने पश्चिमी तट पर कब्जा कर लिया था. वह राष्ट्रपति ओबामा के सामने भी ऐसे प्रस्ताव को ठुकरा चुके हैं.
उन्होंने कहा, "हम भविष्य के फलीस्तीनी राष्ट्र के लिए दरियादिली दिखाएंगे." हालांकि उन्होंने इसका विस्तार नहीं बताया. ओबामा प्रशासन ने नेतान्याहू के इस बयान पर ज्यादा गर्मजोशी से प्रतिक्रिया नहीं दी और एक प्रवक्ता ने सिर्फ इतना कहा कि वह शांति चाहते हैं.
जूठन का राष्ट्र
उधर, फलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रवक्ता नबील अबु रदाइना ने कहा कि नेतान्याहू के प्रस्ताव मध्य पूर्व में शांति की दिशा में ज्यादा बाधक साबित होंगे, "नेतान्याहू के बयान में जो बातें कहीं गईं, उससे शांति नहीं आएगी." फलीस्तीन पूर्वी येरुशलम का हिस्सा भी चाहता है, जहां वह अपनी राजधानी बनाना चाहता है. नेतान्याहू ने इस पर कुछ नहीं कहा.
फलीस्तीन मामलों के जानकार हानी मसरी का कहना है, "नेतान्याहू चाहते हैं फलीस्तीन सब कुछ दे दें और उनका राष्ट्र जूठन पर बने."
खुद इस्राएल में भी नेतान्याहू के बयान के बाद कोई उत्साह नहीं है. इस्राएल के राजनीतिशास्त्री डेविड न्यूमैन का कहना है, "वह जो प्रस्ताव रख रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि सबसे उदारवादी फलीस्तीन भी इसके पक्ष में होगा."
रिपोर्टः रॉयटर्स/ए जमाल
संपादनः ओ सिंह