विवादों के बावजूद बिल्ड की उड़ान जारी
२४ जून २०१२कई लोग बिल्ड त्साइटुंग को समचारों के लिए पढ़ते हैं और कई लोग इसमें छपने वाली निर्वस्त्र युवतियों की तस्वीरों के लिए अखबार खरीदते हैं.
लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं करता कि बिल्ड की हेडलाइन गजब तीखी और जज्बाती होती है. अखबार छोटी और चटकारेदार हेडलाइन के लिए मशहूर है. 2005 में जब जर्मनी के योसेफ राटत्सिंगर पोप चुने गए तो बिल्ड त्साइटुंग ने हेडलाइन दी, "वियर सिंड पाप्स्ट" यानी 'हम पोप हैं.'
बिल्ड के चीफ एडिटर काई डीकमान कहते हैं, "बिल्ड की हेडलाइन ही अच्छी होती है. यह एक्सक्लूसिव होती है या यह दर्शकों को सोचने का मौका देती है या उन्हें चौंका देती है." जर्मन इतिहास की दुखद घटनाओं में भी बिल्ड ने अपनी हेडलाइन से समझौता नहीं किया. 9/11 के हमलों के अगले दिन बिल्ड ने हेडलाइन दी, "शक्तिमान ईश्वर हमारे साथ है", इसने पाठकों को चौंका दिया.
पिछले साल ब्रिटेन के राजकुमार प्रिंस विलियम की शादी के अगले दिन बिल्ड ने वर और वधू के चुंबन का फोटो मुख्य पेज पर छापा और हेडलाइन दी, 'किस, किस, हुर्रे.'
बिल्ड का इतिहास
बिल्ड- जर्मन भाषा के इस शब्द का अर्थ है, तस्वीर. बिल्ड का पहला संस्करण 24 जून 1952 को आया. तब अखबार सिर्फ चार पन्ने का था. अखबार के संस्थापक आक्सेल श्प्रिंगर ने ब्रिटेन के टेबलॉयड्स का मॉडल अपनाया. बिल्ड के लिए उन्होंने 'तस्वीरों से भरी, कम टेक्स्ट वाली और लोकप्रिय विषय उठाने वाली' राह तय की. नतीजा यह हुआ कि एक साल से भी कम समय में बिल्ड की रीडरशिप पांच लाख के पार चली गई.
उस वक्त अखबार में राजनीतिक विषय कम होते थे. लेकिन 1960 के दशक की शुरूआत में बर्लिन की दीवार का निर्माण शुरू हुआ. दीवार निर्माण के पहले ही दिन की तस्वीर छापते हुए बिल्ड ने हेडलाइन दी, "पश्चिम कुछ नहीं कर रहा है." इसके बाद बिल्ड राजनीतिक अखबार बन गया. अखबार के प्रकाशक श्प्रिंगर जर्मन राजनीति को लेकर अपना नजरिया बिल्ड के जरिए बताने लगे.
हत्या में बिल्ड!
लेकिन 1960 के दशक के अंत में छात्रों का बड़ा समूह बिल्ड के खिलाफ प्रदर्शन करने लगा. छात्रों ने आरोप लगाया कि अखबार तटस्थ पर्यवेक्षक की भूमिका से गिर रहा है. अफवाहें उड़ी कि अखबार ने वामपंथी प्रदर्शनकारियों के नेता रुडी डूट्श्के की हत्या की कोशिश में शामिल हुआ.
हजारों लोग सड़कों पर उतरे. उनके हाथ में पोस्टर थे, जिन पर लिखा गया था, "बिल्ड ने ही मारा भी." प्रदर्शन की वजह से अखबार का म्यूनिख का दफ्तर सूना पड़ गया. हैम्बर्ग का छपाई मुख्यालय बंद करना पड़ा.
बिल्ड की संपादकीय टीम ने बीते छह दशकों के उतार चढ़ाव से कई अनुभव जुटाए. अखबार ने राजनेताओं और राजनीति पर तल्ख टिप्पणियां भी कीं. लेकिन अब सनसनीखेज रिपोर्ट को लेकर उसका स्तर थोड़ा कम झटकेदार हुआ है.
बिल्ड के पूर्व रिपोर्टर गुएंटर वालराफ ने अपनी किताब में साफ कहा है, "बिल्ड रिपोर्टिंग के दौरान लगातार लोगों के निजी और अंतरंगता के पलों में भी घुसा." वालराफ स्वीकार करते हैं कि वह कुछ लोगों के सुसाइड नोट भी देख चुके हैं, जिनकी निजी जिंदगी को बिल्ड ने सार्वजनिक कर दिया. खोजी पत्रकार वालराफ ने बिल्ड की हकीकत जानने के लिए उसमें काम किया.
बिल्ड की ताकत
आज इस बात में कोई शक नहीं है कि बिल्ड जर्मनी में एक ताकत है. बर्लिन में बैठे नेताओं के लिए भी अखबार से पार पाना मुश्किल है. पूर्व चांसलर हेलमुट कोल के प्रवक्ता ने एक बार कहा कि वह बिल्ड त्साइंटुग पढ़े बिना कभी नहीं निकले. उनके मुताबिक इस अखबार के जरिए 'कोई देश की मूड को पढ़ सकता है.'
बर्लिन में विदेशी दूतावासों में काम करने वाले अधिकारी भी बिल्ड की अहमियत समझते हैं. ब्रिटिश दूतावास के रॉब एलिस ने डॉयचे वेले को बताया कि बिल्ड सामान्यतया ऐसे मुद्दे को उठाता है जो महत्वपूर्ण नेताओं के एजेंडे में होते हैं. यह जर्मनी के ऐसे मुद्दे होते हैं जिनमें लंदन के नेताओं की भी दिलचस्पी होती है.
बिल्ड को सभी नेता अपने करीब रखना चाहते हैं, लेकिन अखबार ऐसा है कि कभी भी किसी नेता की खाट खड़ी कर दे. लिहाजा नेता बहुत सावधान रहते हैं. बिल्ड की खबरों ने जर्मनी में कुछ बड़े नेताओं का राजनीतिक भविष्य खत्म किया है. पूर्व राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ को तो बिल्ड की वजह से पद छोड़ना पड़ा. बिल्ड ने एक हफ्ते तक वुल्फ के खिलाफ ऐसा अभियान छेड़ा कि उन्हें राष्ट्रपति भवन से निकलना पड़ा.
जर्मनी में बिल्ड की बुराई की जा सकती है लेकिन उसके बिना रहा नहीं जा सकता. सवा करोड़ से ज्यादा लोगों का यह अखबार जर्मन समाज की बड़ी ताकत है.
रिपोर्ट: वोल्फगांग डिक/ओएसजे
संपादन: मानसी गोपालकृष्णन