वित्तीय बाजारों का काला साया
४ सितम्बर २०१३शैडो बैंकिंग वित्तीय प्रणाली के उस सेक्टर को कहा जाता है जिसमें बैंकों को छोड़कर बाकी संस्थाएं या व्यक्ति वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराते हैं. इसमें हेज फंड, क्रेडिट इंश्योरेंस और बॉन्ड में निवेश शामिल हैं. इस तरह के निवेश में वित्तीय बाजार को लेकर अटकलें लगाई जाती हैं, कर्जदारों की वित्तीय स्थिरता को अनदेखा किया जाता है और संस्थाएं कई बार कर्ज से नई संपत्ति खरीदती हैं जिससे अस्थिरता का खतरा बढ़ जाता है.
इस सेक्टर में खरबों यूरो फंसे हैं लेकिन इन संस्थाओं पर कैश रिजर्व जैसे बैंकों के कड़े कानून लागू नहीं होते. वित्तीय शोध संस्थान फाइनैन्शियल स्टेबिलिटी बोर्ड के मुताबिक वैश्विक शैडो बैंकिंग सेक्टर में 51 खरब यूरो लगा है. यह वैश्विक आर्थिक प्रणाली का एक तिहाई हिस्सा है और विश्व भर के बैंकों की संपत्ति के 50 प्रतिशत के बराबर है. शैडो बैंकिंग सेक्टर की सारी संपत्ति में से करीब 30 प्रतिशत केवल अमेरिकी कंपनियों के पास है और 45 प्रतिशत यूरोपीय संघ के देशों में.
अस्थिरता का डर
यूरोपीय संघ के बाजार नियंत्रण आयुक्त मिशेल बार्नियेर का कहना है, "हमें शैडो बैंकिंग के संभावित खतरों के बारे में सोचना होगा." यूरोपीय आयोग का कहना है कि मनी मार्केट फंड से अर्थव्यवस्था को अतिरिक्त पैसा तो मिलता है लेकिन इससे लंबे वक्त तक स्थिरता पर असर पड़ सकता है. यह इसलिए हो सकता है क्योंकि वित्तीय संस्थाएं कर्जदार को तब भी पैसे देतीं हैं जब उसके उधार चुकाने की क्षमता को लेकर सवाल खड़े हों. साथ ही ऐसी संस्थाएं कर्ज में लिए गए पैसों से और संपत्ति खरीद लेती हैं जिससे अस्थिरता एक संस्था से दूसरी संस्था में फैल सकती है और पूरी अर्थव्यवस्था को खतरे में डाल सकती है.
मनी मार्केट फंड में कम वक्त के लिए सरकारी बॉन्ड या वित्तीय कागजों में निवेश किया जाता है. यूरोपीय संघ में मनी मार्केट ज्यादातर फ्रांस, आयरलैंड और लक्जेम्बर्ग में हैं. जर्मनी और ब्रिटेन की कंपनियां इनका खूब इस्तेमाल करती हैं. कंपनियों के लिए यह फायदेमंद है क्योंकि वह 397 दिनों तक अपने पैसे इनमें लॉक करा सकती हैं. आम बैंकों के मुकाबले मनी मार्केट संस्थाओं के पास केंद्रीय बैंक से मदद लेने का विकल्प नहीं है. लेकिन इसके बावजूद यह सेक्टर बैंकों से जुड़ा है. बैंक इनसे पैसे लेते हैं और मुश्किल वक्त पर इन्हें कर्ज भी देते हैं.
मनी मार्केट के लिए इमर्जेंसी फंड
ईयू आयुक्त मिशेल बार्नियेर के प्रस्ताव में कॉन्सटैंट नेट ऐसेट वैल्यू फंड सीएनएवी के लिए नए कानून शामिल हैं. नए कानून के तहत मनी मार्केट फंड में निवेश करा रही कंपनियों को अपनी कुल संपत्ति के तीन प्रतिशत के बराबर अतिरिक्त पैसों से इमर्जेंसी फंड बनाना होगा, जो कम से कम तीन साल के लिए लॉक रहेगा. इस तरह के फंड में एक शेयर की कीमत को एक यूरो से कम नहीं होने दिया जाता ताकि निवेशकों को कम से कम नुकसान हो. बार्नियेर का कहना है कि अगर फंड को अपने निवेशकों को पैसे चुकाने में दिक्कत हुई तो इस इमर्जेंसी फंड का इस्तेमाल किया जा सकेगा. जर्मनी और फ्रांस ने इस तरह के फंडों को पूरी तरह खत्म करने की मांग की है लेकिन यूरोपीय संघ इतना कड़ा रवैया अपनाने से बच रहा है.
जर्मनी के वित्त मंत्रालय ने कहा है कि यूरोपीय आयोग के नियम काफी नहीं हैं. वहीं, उद्योग का मानना है कि इन नियमों से निवेश के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी होगी और प्रतिस्पर्धा पर असर पड़ेगा. यूरोपीय आयोग ने मनी मार्केट फंड में क्रेडिट रेटिंग को भी खत्म करने का फैसला किया है ताकि क्रेडिट रेटिंग कम होने से बाजार में डर नहीं पैदा हो. मिशेल बार्नियेर ने यूरोपीय संघ में बाकी वित्तीय संस्थाओं के लिए भी मार्गदर्शक तय किए हैं. उन सब से कहा गया है कि वे मुश्किल वक्त के लिए अलग से रिजर्व रखें.
यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि 5 सितंबर से रूस में हो रहे जी20 बैठक में अपने प्रस्ताव पेश करेंगे जिसमें भारत भी हिस्सा ले रहा है. भारत में निवेश की हालत और रुपये की अस्थिरता पर दुनिया की नजर रहेगी. भारतीय रिजर्व बैंक की कमान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने संभाली है. राजन ने ही 2006 में ही अमेरिकी शैडो बैंकिंग पर सवाल उठाए थे और एक तरह से 2008 में आर्थिक संकट की भविष्यवाणी की थी. पिछले हफ्तों में भारत से बहुत सारी पूंजी बाहर निकाली गई है, जिसकी वजह से रुपए पर भारी दवाब पड़ा है और उसकी कीमत करीब 20 फीसदी गिर गई थी. रघुराम राजन के गवर्नर बनने के बाद बाजार का मूड बेहतर हुआ है.
एमजी/एमजे(एपी, रॉयटर्स, डीपीए)