कोरोना की वजह से संकट में चाय उद्योग
६ अप्रैल २०२०असम के चाय बागानों की हालत भी अलग नहीं है. कोरोना संकट के आने से पहले से ही तमाम प्रतिकूल हालात से जूझ रहे चाय उद्योग पर कोरोना की मार भारी साबित हो रही है. हालांकि केंद्र ने शनिवार को इन बागानों को 50 फीसदी कर्मचारियों के साथ काम शुरू करने को कहा है, लेकिन इसके लिए अभी राज्य सरकार और जिला प्रशासन की अनुमति नहीं मिली है. इसके अलावा मजदूरों में भी कोरोना का आतंक है.
चाय बागान मालिकों की शीर्ष संस्था द कंसल्टेटिव कमिटी ऑफ प्लांटेशन एसोसिएशंस (सीसीपीए) का अनुमान है कि कोरोना के चलते जारी लॉकडाउन से इस उद्योग को कम से कम चौदह सौ करोड़ रुपये का नुकसान होगा. कमिटी ने केंद्र सरकार से इस उद्योग को दलदल से उबारने के लिए वित्तीय पैकेज देने की मांग की है. उसका कहना है कि मौजूदा हालत में इस उद्योग के लगभग बारह लाख मजदूरों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है. इसके अलावा चाय के उत्पादन में गिरावट की वजह से वैश्विक बाजारों के भी हाथ से निकलने का खतरा मंडराने लगा है. सीसीपीए अध्यक्ष विवेक गोयनका ने सरकार को लिखे पत्र में कहा है, "चाय मजदूरों को वेतन के भुगतान के लिए इस उद्योग को सरकारी समर्थन की जरूरत है.” समिति ने सरकार से तीन महीने तक हर मजदूर के खाते में हर सप्ताह एक हजार रुपए जमा कराने का अनुरोध किया है.
नहीं चुना गया फर्स्ट फ्लश
दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के बागानों में सबसे बेहतरीन चाय पहले फ्लश के दौरान चुनी गई पत्तियों से ही बनती है. इसका विदेशों में निर्यात होता है. यही नहीं अब दूसरे फ्लश पर भी खतरा मंडरा रहा है. अगर 15 अप्रैल को लॉकडाउन खुलता भी है तो चाय की पत्तियां तैयार होने में दो से चार सप्ताह का समय लग जाएगा. चाय उद्योग के सूत्रों का कहना है कि पहले फ्लश यानी हरी पत्तियों को पहली बार चुनने यानी पहले फ्लश का काम मार्च के मध्य से शुरू होकर अप्रैल के आखिरी सप्ताह तक चलता है. इस दौरान हर सप्ताह पत्तियां चुनी जाती हैं. बारिश देर से होने की वजह से लॉकडाउन के एलान के समय अभी यह काम शुरू ही हुआ था. दार्जिंलिंग पर्वतीय क्षेत्र के 87 बागानों में हर साल लगभग 80 लाख किलो चाय पैदा होती है. उसका एक-चौथाई उत्पादन पहले फ्लश के दौरान ही होता है. उसके बाद दूसरे फ्लश का कुल उत्पादन में 15 फीसदी हिस्सा होता है. देश के कुल चाय उत्पादन में दार्जिंलिंग चाय का हिस्सा भले बहुत कम हो, पूरी दुनिया में इस चाय की भारी मांग है. वर्ष 2011 में यूरोपीय संघ ने इसे खास इलाके का उत्पाद होने का जीआई दर्जा दिया था.
चाय बागान मालिकों के संगठन दार्जिलिंग प्लांटर्स एसोसिएशन (डीपीए) के अध्यक्ष बिनोद मोहन बताते हैं, "लॉकडाउन खत्म होने तक इस उद्योग को भारी नुकसान हो चुका होगा.” डीपीए का दावा है कि इस उद्योग को लॉकडाउन से दो सौ करोड़ तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है. इससे चाय बागानों में नकदी का गंभीर संकट पैदा होने का अंदेशा है. देश में पैदा होने वाली कुल लगभग 130 करोड़ किलो चाय का आधा हिस्सा असम में पैदा होता है और एक चौथाई बंगाल में. पश्चिम बंगाल के चाय बागान वाले उत्तरी हिस्से और ऊपरी असम की अर्थव्यवस्था चाय पर ही निर्भर है. दार्जिंलिंग के चाय बागानों को पहले फ्लश के दौरान चुनी गई पत्तियों से तैयार चाय से ही अपने कुल सालाना राजस्व का 40 फीसदी मिलता है. लेकिन लॉकडाउन के चलते पत्तियां चुनने और उनसे चाय तैयार करने का काम ठप होने की वजह से अब पत्तियां बढ़ रही हैं. उनसे चाय तैयार नहीं हो सकती. हालांकि टी बोर्ड ने बागान मालिकों को बढ़ी हुई पत्तियों की छंटाई का निर्देश दिया है. लेकिन इससे नुकसान को कम नहीं किया जा सकता.
दूसरे उद्योगों से अलग है चाय उद्योग
सीसीपीए का कहना है कि चाय उद्योग इस मायने में दूसरे उद्योगों से अलग है कि यहां कुल लागत का 60 से 65 फीसदी मजदूरों के भुगतान पर खर्च होता है. लेकिन लॉकडाउन के दौरान राजस्व ठप होने की वजह से चाय बागान प्रबंधन मजदूरों को भुगतान करने में समर्थ नहीं हैं. एक महीने की बंदी के दौरान बिना काम के मजदूरों को भुगतान करने से कुल लागत में छह फीसदी इजाफा हो जाएगा. इसके अलावा बिक्री में भी पंद्रह फीसदी गिरावट आएगी. दार्जिलिंग प्लांटर्स एसोसिएशन की दलील है कि वैश्विक बाजारों में भारतीय चाय की श्रीलंका और केन्या जैसे देशों की चाय के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा है. ऐसे में अगर दूसरे फ्लश तक चाय का उत्पादन शुरू नहीं हुआ तो कई वैश्विक बाजारों के हाथों से निकलने का गंभीर खतरा है.
दार्जिंलिंग के कुछ बागानों में लॉकडाउन शुरू होने के बाद तक पत्तियां चुनने का काम जारी था. लेकिन 26 मार्च को टी बोर्ड ने एक अधिसूचना में साफ कर दिया कि देश के तमाम चाय बागानों को लॉकडाउन का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा. बंगाल में कोरोना के मरीज का पहला मामला सामने आने के बाद कई बागानों में मजदूरों ने डर के मारे खुद काम पर आना बंद कर दिया. पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव की ओर से बीते सप्ताह जारी अधिसूचना में कहा गया था कि चाय बागान मालिकों को लॉकडाउन के दौरान काम नहीं होने के बावजूद मजदूरों को साप्ताहिक आधार पर मजदूरी का भुगतान करना होगा.
चिंतित है टी गार्डन के मजदूर
चाय बागान मालिकों के रुख से मजदूरों में आशंका है. दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र और उससे सटे डुआर्स के मैदानी क्षेत्र के छोटे-बड़े तीन सौ चाय बागानों में साढ़े तीन लाख स्थायी और अस्थायी मजदूर काम करते हैं. उनको रोजाना 176 रुपए की मजदूरी के अलावा साप्ताहिक राशन दिया जाता है. चाय मजूदरों की यूनियन के एक नेता विनय करकट्टा कहते हैं, "चाय बागानों में समय पर मजदूरी के भुगतान का रिकॉर्ड बेदाग नहीं रहा है. यहां पहले से ही न्यनूतम दैनिक मजदूरी दूसरे राज्यों के मुकाबले बहुत कम महज 176 रुपए है. अब अगर वह भी समय पर नहीं मिला तो मजदूरों के सामने भुखमरी का संकट पैदा हो जाएगा.”
सीपीएम के मजदूर संगठन सीटू की दार्जिलिंग शाखा के महासचिव सुमन पाठक कहते हैं, "चाय बागानों में भुखमरी का लंबा इतिहास रहा है. अब एक बार फिर वैसे ही हालात बन रहे हैं.” चाय उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि अब तक यह उद्योग तमाम मुश्किलों का सामना करता हुआ आगे बढ़ता रहा है. लेकिन अब लॉकडाउन के दौरान उत्पादन व कमाई ठप होने और मजदूरों को भुगतान जारी रखने के दोहरे बोझ से इसकी कमर टूट जाने का अंदेशा है.
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