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मोदी पर नरम पड़ा अमेरिका

१३ फ़रवरी २०१४

अमेरिकी राजदूत नैन्सी पॉवेल की नरेंद्र मोदी के घर जाकर मुलाकात करने के कई मायने निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि भारत में लोकसभा चुनावों से पहले यह अमेरिका का 'यू टर्न' है.

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Indien Narendra Modi Premierminister von Gujarat
तस्वीर: Sam Panthaky/AFP/Getty Images

गुजरात की राजधानी गांधीनगर में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के घर पर करीब एक घंटे तक चली बैठक में राज्य सरकार के शीर्ष अधिकारियों ने भी वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिकों से बातचीत की. मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार मोदी की पॉवेल से मुलाकात काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही थी. इस मुलाकात का एजेंडा घोषित नहीं किया गया. वार्ता के बाद अमेरिकी दूतावास से जारी बयान में कहा गया कि यह मुलाकात मई के चुनावों से पहले उनके "भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं तक पहुंच बनाने की कोशिश" का हिस्सा है. अमेरिका दूतावास ने आगे लिखा है, "उनकी (पॉवेल) चर्चा में भारत-अमेरिकी संबंधों, क्षेत्रीय सुरक्षा मामलों, मानवाधिकारों और भारत में अमेरिकी व्यापार और निवेश पर विशेष ध्यान रहा."

गांधीनगर पहुंची पॉवेल का मोदी ने फूलों से स्वागत किया और हाथ मिलाया. उसके बाद बंद दरवाजों के पीछे की बातचीत का ब्योरा नहीं मिल सका. लेकिन मोदी को अमेरिकी वीजा देने के मसले पर अमेरिका की नीति में फिलहाल किसी तरह के बदलाव की बात नहीं निकली. व्यापारिक रिश्ते बढ़ाने के मसले पर मोदी से मिलने अमेरिका से व्यवसायी हमेशा आते रहे हैं. गुजरात में हर दो साल में होने वाले 'वाइब्रैंट गुजरात' कार्यक्रमों में अमेरिकी भागीदारी काफी रही है. मोदी भी अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों से वीडियो कॉनफ्रेंसिग के जरिए जुड़ते रहे हैं. लेकिन गुजरात दंगों के करीब 12 साल बाद अचानक अंतराष्ट्रीय जगत मोदी की ओर रवैया बदलता दिखाई दे रहा है.

Symbolbild Deutschland USA Flagge
2005 से अमेरिका ने मोदी को कभी वीजा नहीं दियातस्वीर: imago/Seeliger

अमेरिका ने गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद से वहां के मुख्यमंत्री मोदी से दूरी बना ली थी. बहुत से मानवाधिकार संगठन मोदी पर आरोप लगाते रहे हैं कि उन्होंने 2002 में दंगों को रोकने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए. दंगों में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर मुसलमान थे. कई पश्चिमी देशों ने तब से मोदी और उनके प्रशासन से नाता तोड़ लिया था. अमेरिका ने 2005 से मोदी को वीजा देना ही बंद कर दिया था. लेकिन पिछले कुछ महीनों में यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने फिर मोदी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है.

कूटनीतिक मामलों के विश्लेषक ब्रह्म चेलानी का मानना है कि अमेरिका "यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह पिछली बातें भूल कर दोस्ती के लिए तैयार है." ऐसा इसलिए कि मई के बाद केंद्र से कांग्रेस को हटाकर मोदी सत्ता में आ सकते हैं. नई दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च से समाचार एजेंसी के साथ बातचीत में चेलानी ने कहा, "मोदी सभी ओपिनियन पोल्स में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों से आगे दिखाई दे रहे हैं. इसलिए अमेरिका तो सिर्फ अपने आर्थिक और कूटनीतिक हितों को बचाए रखने की कोशिश कर रहा है."

अमेरिका ने यह साफ किया है कि मोदी से मुलाकात का यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि वह चुनावों में मोदी के पक्ष में है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जेन साकी ने जोर देकर कहा कि अमेरिका किसी भी देश के चुनावों में कभी किसी का पक्ष नहीं लेता. साकी ने कहा, "हम पक्ष नहीं लेते हैं..इसका अर्थ सिर्फ इतना है कि हम अलग अलग पृष्ठभूमि और अलग अलग राजनीतिक सहबद्धता रखने वाले लोगों से मिल रहे हैं. ऐसा हम दुनिया के कई देशों में करते आए हैं."

Devyani Khobragade Diplomatin aus Indien Archiv 19.06.2013
खोबरागड़े को लेकर हुए थे देशों के बीच संबंध खराबतस्वीर: Reuters

पॉवेल गुजरात में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेता से भी मिलेंगी. इसके अलावा कुछ गैर सरकारी संगठनों से भी मुलाकात कर रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश होगी. दिसंबर में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े को न्यू यॉर्क में गिरफ्तार किए जाने के बाद भारत और अमेरिका के बीच कूटनीतिक संबंध खराब हुए.

आरआर/ओएसजे (डीपीए,एएफपी)

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