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समाज

बेघर होकर चुकानी पड़ी है बदलते मौसम की कीमत

२८ मई २०२१

तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन, गर्म होती धरती, खराब मौसम और संघर्षों की वजह से 2020 में 4 करोड़ से अधिक लोगों को बेघर होना पड़ा. एशिया और अफ्रीका में रहने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. भारत भी उनमें शामिल है.

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Mosambik IDPs in Cabo Delgado Provinz
तस्वीर: Alfredo Zuniga/AFP

इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) की हाल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल तूफान, बाढ़, जंगल की आग और सूखे की वजह से 3 करोड़ लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा. इसकी वजह ये है कि बढ़ते तापमान ने जलवायु परिवर्तन को और अधिक तेज कर दिया है. आईडीएमसी के अनुसार, 2020 में युद्ध और हिंसा की वजह से 98 लाख लोग अपने घरों को छोड़ देश के दूसरे हिस्सों में जाने को मजबूर हुए. वहीं, बदलते मौसम ने घर से बेघर होने वालों की संख्या को बढ़ाकर 4 करोड़ से अधिक पर पहुंचा दिया. जेनेवा स्थित शोध संगठन का अनुमान है कि पिछले साल के अंत तक 5 करोड़ 50 लाख से अधिक लोग अपने ही देश में विस्थापित के तौर पर रह रहे थे. यह संख्या दुनिया के कुल शरणार्थियों की संख्या की दोगुनी है.

मौसम में अस्वाभाविक रूप से बदलाव हो रहा है क्योंकि लोग बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कर रहे हैं और जलवायु को खराब कर रहे हैं. अनुमान लगाया जा रहा है कि अचानक बाढ़ और तूफान जैसी आपदाओं, उपज में कमी और सूखे जैसी स्थिति की वजह से काफी संख्या में लोग विस्थापित हो सकते हैं. अमीर देशों के नेताओं ने आशंका जताई है कि गरीब क्षेत्रों से ज्यादा माइग्रेशन का असर सार्वजनिक सेवाओं पर पड़ सकता है.

आईडीएमसी में कार्यक्रमों की प्रमुख बीना देसाई ने कहा, "जलवायु परिवर्तन से अमीर देशों की ओर बड़े पैमाने पर पलायन बढ़ेगा का विचार, इस तथ्य से "ध्यान हटाने" जैसा है, क्योंकि अधिकांश विस्थापन देश की सीमाओं के भीतर ही हो रहे हैं. उन्होंने कहा, "यह एक नैतिक दायित्व है कि वे ऐसे लोगों को सीमाओं पर पहुंचने के खतरे के बारे में सोचने की जगह विस्थापित होने वाले लोगों की जरूरतों को पूरा करने में निवेश करें.”

जलवायु विस्थापन

आईडीएमसी ने अपनी छठी वार्षिक रिपोर्ट में पाया कि 2020 में अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग एशिया और अफ्रीका के थे. एशिया में बदलते मौसम की वजह से आयी बाढ़ ने ज्यादातर लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर किया. चीन, भारत, बांग्लादेश, वियतनाम, फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे देशों में करोड़ों लोग समुद्र तटों और डेल्टाओं पर रहते हैं. इन देशों में शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि ने बाढ़ आने की संभावना को पहले से ज्यादा मजबूत बना दिया है. समुद्र के जल स्तर में हो रही वृद्धि भी बाढ़ में एक अहम भूमिका निभा रही है. करोड़ों लोग बाढ़ से प्रभावित होकर दर-बदर भटकने को मजबूर हो रहे हैं.

दो दशकों में भारत में आए सबसे भीषण चक्रवात ताउते ने मई महीने के तीसरे सप्ताह में दस्तक दी. इस चक्रवात से लोगों को बचाने के लिए अधिकारियों को सिर्फ गुजरात में 2 लाख लोगों को उनके घरों से निकालकर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाना पड़ा. विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि पूर्वानुमान के आधार पर लोगों को समय पर सुरक्षित ठिकानों पर पहुंचाकर उनकी जान तो बचायी जा सकती है, लेकिन आर्थिक नुकसान को कम नहीं किया जा सकता. इस चक्रवात की वजह से कई लोगों के पास अब रहने को घर नहीं बचा है.

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल अम्फान चक्रवात ने बांग्लादेश में भारी तबाही मचाई थी. करीब 25 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था. 55,500 घर पूरी तरह बर्बाद हो गए थे. 10 प्रतिशत लोग बेघर होने की वजह से विस्थापित हो गए थे.

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तस्वीर: Alexis Huguet/AFP/Getty Images

हिंसा की वजह से छोड़ना पड़ा घर

अफ्रीका में, 2020 में अधिकांश विस्थापन संघर्ष के कारण हुए. हिंसा और संघर्ष की वजह से बुर्किना फासो और मोजांबिक जैसे देशों में लोग अपने घरों को छोड़ने पर विवश हो गए. वहीं, इथियोपिया जैसे अन्य देशों में नए युद्ध छिड़ गए. आईडीएमसी का अनुमान है कि पिछले साल के अंत तक इथियोपिया के टाइग्रे क्षेत्र में पांच लाख लोग लड़ते हुए भाग गए थे. तब से, यूनिसेफ ने यह आंकड़ा दस लाख से ऊपर रखा है.

कुछ संघर्षों के पीछे की वजह भारी बारिश का मौसम बताया गया. पहले से ही हिंसा से प्रभावित इन देशों में भारी बारिश की वजह से बाढ़ आ गई और फसलों का नुकसान हुआ. रिपोर्ट के अनुसार, भारी बारिश ने सोमालिया, सूडान, दक्षिण सूडान और नाइजर जैसे देशों में पहले से ही विस्थापित लोगों को एक बार फिर से पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया. इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 2020 में उप-सहारा अफ्रीका में लोगों का विस्थापन शुरू हुआ जिनकी संख्या 40 लाख से ज्यादा पहुंच गई. उनमें से कम से कम आधे अभी भी वर्ष के अंत तक विस्थापित ही थे.

केन्या में संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन की क्षेत्रीय जलवायु विशेषज्ञ लिसा लिम केन का कहना है, "ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले प्रवासियों को शहर के उन इलाकों में बसने के लिए मजबूर किया जाता है जहां रहना सुरक्षित नहीं होता और जहां बाढ़ और अन्य खतरे होते हैं. हालांकि, इनके लिए काफी कुछ किया जा सकता है.”

शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु और माइग्रेशन के बीच संबंधों को कम समझा जाता है और कभी-कभी इसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है. आईडीएमसी आंतरिक विस्थापन पर डेटा जमा करती है. इनमें ज्यादातर डेटा बाढ़ और तूफान जैसी अचानक आने वाली आपदाओं का है. बढ़ते तापमान और समुद्र के जल स्तर जैसे धीमी गति से आने वाले पर्यावरणीय संकटों के कारण कितने लोग घरों को छोड़ते हैं, इस पर बहुत कम डेटा है.

क्लाइमेट चेंज से जीवों में उथल पुथल

इन सब के बावजूद, यूनिवर्सिटी ऑफ पोट्सडम के सेंटर फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी एनालिसिस ने मार्च में प्रकाशित एक मेटा-एनालिसिस में पाया कि लंबे समय तक गर्म हवा और सूखे की वजह से आने वाली आपदाओं की तुलना में अचानक आने वाली बाढ़ और तूफान की वजह से माइग्रेशन बढ़ने की अधिक संभावना है. शोधकर्ताओं का सुझाव है कि माइग्रेशन के लिए धन की जरूरत होती है. हालांकि, जब अचानक कोई आपदा आती है, तो लोग उस समय धन की जरूरतों पर ध्यान नहीं देते हैं. उनका मुख्य ध्यान जान की सुरक्षा पर होता है. ऐसी स्थिति में मजबूरन उन्हें अपना घर छोड़कर विस्थापित होना पड़ता है, भले ही वे कुछ ही दूरी पर क्यों न रहने लगें.

पोट्सडम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च में संघर्ष और माइग्रेशन का पर अध्ययन करने वाली अर्थशास्त्री और इस अध्ययन की सह-लेखक बारबरा सेडोवा कहती हैं, "अगर आप माइग्रेट करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको कुछ संसाधनों की जरूरत पड़ती है. जिस चीज के बारे में ज्यादा बात नहीं की जाती है, वह यह है कि एक बड़ी आबादी जो वाकई अपने मूल जगह पर फंसी हुई है और उसके पास पलायन करने के लिए जरूरी संसाधन नहीं हैं.”

तेजी से खराब हो रहा मौसम

जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम लगातार खराब हो रहा है. यह स्थिति सिर्फ गरीब देशों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अमीर देशों में भी ऐसा हो रहा है. मार्च में ‘नैचुरल हैजर्ड्स एंड अर्थ सिस्टम साइंसेज' पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि 2019-20 में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग के मौसम के दौरान भीषण आग का खतरा इंसानों की वजह से जलवायु में हुए परिवर्तन से 30 फीसदी अधिक होने की संभावना जताई गई. आग की वजह से 34 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों घर नष्ट हो गए थे.

नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि 2012 में न्यूयॉर्क शहर में तूफान सैंडी की वजह से 62.5 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था. इस नुकसान में 13 प्रतिशत हिस्सा समुद्र के जल स्तर में वृद्धि का परिणाम था. शोध से जुड़े लोगों ने पाया कि अगर इंसान ने धरती का तापमान न बढ़ाया होता और यह मानते हुए कि अन्य सभी कारक स्थित रहते, तो 70 हजार लोग बाढ़ के कहर से बच जाते. जलवायु परिवर्तन और माइग्रेशन से जुड़े शोधकर्ताओं ने सरकार से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने, बदलते जलवायु के अनुकूल होने और विस्थापित होने वाले समुदायों को मदद करने का आह्वान किया है.

सेडोवा कहती हैं, "अगर हम विस्थापित होने वाले लोगों के लिए शहरों में रोजगार, घर और सम्मान की जिंदगी जीने का मौका देते हैं, तो माइग्रेशन अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा नहीं बनना चाहिए. अगर इसे सही तरीके से प्रबंधित किया जाता है, तो इसके देश के लिए सकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं.”

रिपोर्ट: अजीत निरंजन

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