जलवायु परिवर्तन की वजह से तेज होता विस्थापन
१५ नवम्बर २०१७लेकिन इस लगातार गंभीर होती समस्या से निपटने के लिए कोई ठोस नीति बनाना तो दूर अब तक इस दिशा में कोई पहल तक नहीं हुई है. आने वाले वर्षों में इस समस्या के बेहद गंभीर बनने का खतरा बढ़ रहा है. बीते साल तीन प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने अपनी रिपोर्ट में चेताया था कि जलवायु परिवर्तन से दक्षिण एशिया के देशों खासकर भारत में विस्थापन में अनियंत्रित तेजी आएगी.
बढ़ता विस्थापन
रोजी-रोटी की तलाश में ग्रामीण से शहरी इलाकों में विस्थापन तो दशकों से होता रहा है लेकिन बीते खासकर एक दशक में जलवायु परिवर्तन की मार के चलते इसमें तेजी आई है. बाढ़, सूखे और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के चलते इसकी रफ्तार बढ़ी है. विशेषज्ञों ने अंदेशा जताया है कि आने वाले वर्षों में भारत में आंतरिक विस्थापन तो बढ़ेगा ही, जलवायु परिवर्तन की गति तेज होने के साथ ही पड़ोसी देशों से भी यहां आने वाले लोगों की तादाद भी तेजी से बढ़ेगी. आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में प्राकृतिक आपदाओं के चलते 36.50 लाख लोग विस्थापित हुए थे. मौसम विज्ञानियों का कहना है कि मौसम के बदलते मिजाज के साथ प्राकृतिक आपदाओं का अंतराल कम होने की स्थिति में विस्थापन उसी अनुपात में तेजी से बढ़ने का अंदेशा है. मौसम में बदलाव से खासकर पश्चिमी भारत में सूखे की स्थिति भयावह हो जाएगी.
समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ने की वजह से देश के तटवर्ती राज्यों में भी विस्थापन का भारी खतरा मंडरा रहा है. नौ तटवर्ती राज्यों में साढ़े सात हजार किमी में फैले ऐसे संवेदनशील इलाकों में दस करोड़ से ज्यादा की आबादी रहती है. समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण तटीय इलाकों में रहने वाले लगभग 76 लाख लोगों के विस्थापन का खतरा पैदा हो जाएगा. पश्चिम बंगाल के सुंदरबन इलाके में जलस्तर में वृद्धि के चलते कई द्वीपों के पानी में डूबने और कुछ पर यह खतरा मंडराने की वजह से पर्यावरण शरणार्थियों की तादाद लगातार बढ़ रही है.
अध्ययन रिपोर्ट
तीन अंतरराष्ट्रीय संगठनों, एक्शनएड, क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया और ब्रेड फार द वर्ल्ड ने बीते साल अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत समेत दक्षिण एशिया में जलवायु परिवर्तन के चलते विस्थापन का खतरा अनियंत्रित हो जाएगा. रिपोर्ट में इस मुद्दे से निपटने के लिए संबंधित सरकारों की ओर से कार्रवाई की जरूरत पर जोर दिया गया है. क्लाइमेट चेंज नोज नो बार्डर्स शीर्षक उक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों के प्रति काफी संवेदनशील है. एक्शनएड में प्राकृतिक संसाधनों की भारत स्थित प्रमुख ब्रतिंदी जेना कहती हैं, "भारत सरकार अगर इस जबरन विस्थापन पर अंकुश लगाने की समस्या से निपटने की दिशा में ठोस पहल नहीं करती तो इससे राष्ट्र के विकास की गति पर नकारात्मक असर पड़ेगा."
कोलकाता में यादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्री अध्ययन स्कूल के निदेशक सुगत हाजरा कहते हैं, "यह पर्यावरण में हो रहे बदलावों का नतीजा है. सुंदरबन में लोहाचारा समेत दो द्वीप समुद्र में डूब गए हैं. समुद्र के लगातार बढ़ते जलस्तर व प्रशासनिक उदासीनता के कारण सुंदरबन का 15 फीसदी हिस्सा वर्ष 2020 तक समुद्र में समा जाएगा." वह बताते हैं कि यहां समुद्र का जलस्तर 3.14 मिमी सालाना की दर से बढ़ रहा है. इससे कम से कम 12 द्वीपों का वजूद संकट में है. सुंदरबन के गड़बड़ाते पर्यावरण संतुलन पर व्यापक शोध करने वाले आर. मित्र कहते हैं, "इस मुहाने के द्वीप धीरे-धीरे समुद्र में समाते जा रहे हैं. अगले दशक के दौरान हजारों लोग पर्यावरण के शरणार्थी बन जाएंगे."
महिलाओं पर असर
बीते कुछ वर्षों के दौरान होने वाले विभिन्न अध्ययनों से यह बात साफ हो गई है कि विस्थापन का महिलाओं पर सबसे गंभीर असर पड़ता है. विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में पुरुषों के बढ़ते विस्थापन के कारण 14 फीसदी परिवारों की कमान अब महिलाओं के हाथों में है. गैर-सरकारी संगठन एक्शनएड की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों से बड़ी तादाद में लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर जा रहे हैं. उनके पीछे परिवार के बच्चों और बुजुर्गों की जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर आ जाती है. गांवों में बची यह महिलाएं देह व्यापार से जुड़े लोगों के जाल में आसानी से फंस जाती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से महिलाओं और युवतियों पर होने वाले असर के अध्ययन औऱ इस पर अंकुश लगाने के उपाय किए जाने चाहिए. इसके चलते देह व्यापार करने वाले गिरोहों के चंगुल में फंसने वाली महिलाओं की तादाद तेजी से बढ़ रही है.
जलवायु परिवर्तन पर एक्शनएड के ग्लोबल हेड हरजीत सिंह कहते हैं, "महिलाओं पर विस्थापन के असर को किसी भी सरकार ने अब तक न तो ठीक से समझा है और न ही इस समस्या से निपटने के उपायों पर विचार किया गया है." तमाम अध्ययन रिपोर्टों में कहा गया है कि आंतरिक विस्थापन या पड़ोसी बांग्लादेश व नेपाल से विस्थापन का शिकार हो कर यहां पहुंचने वाली महिलाएं यूं तो पहले भी देह व्यापार करने वालों के चंगुल में फंसती रही हैं. लेकिन अब इस बात को समझने के लिए ठोस अध्ययन जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन ने इस प्रक्रिया को कितना तेज किया है. इसे ठीक से समझे बिना इस पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा सकते.
एक गैर-सरकारी संगठन के कार्यकर्ता संजीत कुमार साहू कहते हैं, "हर साल बाढ़ या सूखे जैसी प्राकृतिक आपदा के बाद महिलाओं की तस्करी या खरीद-फरोख्ता के मामलों में अचानक वृद्धि हो जाती है. असम में बीते दिनों आई भयावह बाढ़ के बाद ऐसी दर्जनों शिकायतें सामने आई थीं. ऐसी महिलाएं को शहरों में पहुंचने के बाद वेश्यालयों में बेच दिया जाता है."
उपाय
एक्शनएड का कहना है कि सरकार को समय रहते जलवायु परिवर्तन की वजह से तेज होने वाले विस्थापन पर अंकुश लगाने की योजना तैयार करनी चाहिए. डा. हाजरा कहते हैं, "प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में सरकारों की भूमिका आपदा प्रबंधन व राहत कार्यों तक ही सीमित है. जलवायु से संबंधित आपदाओं के कारण विस्थापित होने वाले लोगों की सुरक्षा व अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई कानून नहीं बना है. केंद्र की पहल पर बनी राज्य कार्य योजना में भी इस आंतरिक विस्थापन का कोई जिक्र नहीं है."
पर्यावरणविदों का कहना है कि मौसम की वजह से होने वाले विस्थापन के कुप्रभावों से महिलाओं को बचाने के लिए उनका सशक्तिकरण औऱ आपदाओं की स्थिति में उनसे निपटने का प्रशिक्षण जरूरी है. लेकिन इसके लिए पहले इस मुद्दे के गहराई से अध्ययन के बाद एक ठोस राष्ट्रीय नीति तैयार करनी होगी.