"पाक पर निर्भर अफगानिस्तान"
३ जुलाई २०१३जनरल शेर मुहम्मद करीमी ने ब्रिटिश मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा कि काबुल और इस्लामाबाद के बीच भरोसा नहीं बन पाया है. उन्होंने यह बात ऐसे वक्त में कही, जब वहां तैनात अमेरिकी सेना एक दशक के बाद हटने वाली है.
करीमी का कहना है कि पाकिस्तान को उन मदरसों को बंद करना चाहिए, जिनका तालिबान आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल कर रहा है. जब उनसे पूछा गया कि क्या पाकिस्तान इस युद्ध को खत्म करने में मदद कर सकता है, उन्होंने कहा, "हां, यह काम कुछ ही हफ्तों में किया जा सकता है." उन्होंने कहा कि "तालिबान उनके नियंत्रण में है और पाकिस्तान शांति के लिए बहुत बड़ा काम कर सकता है."
अफगान राजधानी काबुल में रिकॉर्ड किए गए इस इंटरव्यू में जनरल करीमी का कहना है, "अब पाकिस्तान को घरेलू स्तर पर भी आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा है, उतना ही जितना हमें. हम दोनों मिल कर इस समस्या से काबू पा सकते हैं, बशर्ते दोनों इस मामले को लेकर गंभीर हों."
अफगानिस्तान में जब 1996 में तालिबान का शासन आया, तो उसका समर्थन करने वाले देशों में पाकिस्तान सबसे आगे था. समझा जाता है कि तालिबान के कई नेता पाकिस्तानी सरहद, खास तौर पर क्वेटा शहर में रहते हैं. तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर राज किया.
हालांकि हाल के सालों में तालिबान ने पाकिस्तान के अंदर भी हमले किए हैं और उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है. पूरी दुनिया अफगानिस्तान में शांति बहाली के काम में तेजी लाना चाहती है क्योंकि वहां तैनात लगभग एक लाख विदेशी सैनिक जल्द ही वापस जाने वाले हैं.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने हाल ही में पाकिस्तान का दौरा किया है और वहां के नए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलाकात की है. दोनों नेताओं ने "शांतिपूर्ण और स्थायी अफगानिस्तान" के मुद्दे पर भी बात की है. हालांकि अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई का कहना है कि पाकिस्तान इस मुद्दे पर दोहरी चाल चलता आया है.
करीमी का कहना है कि नवाज शरीफ जिस तरह से अमेरिकी ड्रोन हमलों की निंदा कर रहे हैं, वह सही नहीं है, "अमेरिका ने अपने आप ये हमले नहीं शुरू किए हैं." उनका दावा है कि पाकिस्तान सरकार ने उन आतंकवादियों की लिस्ट दी है, जिन्हें वह "रास्ते से हटाना" चाहता है, "इसलिए मैं कहता हूं कि अफगानिस्तान में शांति तभी आ सकती है, जब हम और पाकिस्तान दोनों शांति चाहेंगे. शांति अमेरिका और पाकिस्तान के हाथों में है. और अफगानिस्तान के हाथ में भी."
एजेए/एनआर (एएफपी)