पाक ईरान पाइपलाइन पर हुए एक
१२ मार्च २०१३पीस पाइपलाइन नाम का यह प्रोजेक्ट 1990 से शुरू हुआ था जिसमें तय किया गया कि ईरान से बड़ी साउथ पार्स पाइपलाइन पाकिस्तान होते हुए भारत आए. अमेरिका ने शुरू से ही इसमें भारत और पाकिस्तान के शामिल होने का विरोध किया था क्योंकि इससे ईरान पर लगे हुए प्रतिबंधों का उल्लंघन हो रहा था.
भारत कीमत और सुरक्षा मामलों का हवाला देते हुए 2009 में ही इससे हट गया था. इससे साल भर पहले भारत ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया था. ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने विदेशी तत्वों पर आरोप लगाया है कि वह पाकिस्तान ईरान संबंधों को कम आंकते हैं. अहमदीनेजाद ने कहा, "मैं उन लोगों को बताना चाहता हूं कि गैस पाइपलाइन का परमाणु मामले से कोई लेन देना नहीं है. प्राकृतिक ईंधन से आप एटम बम नहीं बना सकते. इसलिए उन्हें इस पाइपलाइन का विरोध करने का कोई कारण नहीं है. उधर इस समझौते से पाकिस्तान के स्टॉक मार्केट में हलचल मची हुई है. बाजार को डर है कि अमेरिका इस्लामाबाद पर प्रतिबंध लगा देगा. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता विक्टोरिया नूलैंड ने कहा, "अगर यह प्रोजेक्ट आगे बढ़ता है तो हमें चिंता है कि इससे प्रतिबंध पैदा हो सकते हैं."
ईरानी ब्रॉडकास्टिंग सेवा के मुताबिक ईरान ने अपनी सीमा पर 900 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बना ली है और उसके इंजीनियर पाकिस्तान में भी पाइपलाइन बनाएंगे. साथ ही वो पाकिस्तान को 50 करोड़ डॉलर का कर्ज देंगे. दोनों पक्षों को उम्मीद है कि 2014 के दिसंबर से पाकिस्तान को दो करोड़ 15 लाख क्यूबिक मीटर गैस मिल सकेगी.
पाकिस्तान के सुरक्षा विशेषज्ञ इकराम सहगल अमेरिकी प्रतिबंधों की धमकी पर यकीन नहीं है. "ऊर्जा की कमी से हमारी अर्थव्यवस्था का कबाड़ा हो रहा है. कई कंपनियां बंद हो रही हैं, काम ठप्प हो रहा है. बेरोजगारी बढ़ रही है और महंगाई भी. अमेरिकी सरकार को भी पता है कि कैसे पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था बिखर रही है और इस कारण देश में संकट पैदा हो रहा है. इसलिए मुझे लगता है यह प्रोजेक्ट आगे जाएगा."
बर्लिन में पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ और बर्लिन के संस्थान एसडबल्यूपी के क्रिस्टियान वागनर प्रतिबंधों की धमकी को गंभीर नहीं मानते क्योंकि पाकिस्तान दीवालिया होने की स्थिति में है. अमेरिका भी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान अव्यवस्था का शिकार हो. पाकिस्तान की सूचना मंत्री कमर जमान कायरा कहते हैं कि प्रतिबंधों की आशंका तो थी लेकिन पाकिस्तान की जरूरतें पहले नंबर पर हैं.'' हम अमेरिका को विश्वास दिलाएंगे कि वह प्रतिबंध नहीं लगाए.''
क्रिस्टियान वागनर कहते हैं कि पाकिस्तान के लिए पाइपलाइन प्रोजेक्ट काफी अहम है ताकि देश में ऊर्जा संकट काबू में आ सके. इतना ही नहीं रोज हो रहे विरोध प्रदर्शन भी बंद हो जाएंगे. इसके अलावा यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान के ईरान के करीब आने का संकेत है जो पाकिस्तान में शियाई अल्पसंख्यकों पर हमले के मद्देनजर अहम है.
इतना ही नहीं, चुनावी माहौल में इस प्रोजेक्ट का आगे बढ़ना राष्ट्रपति जरदारी और उनकी पीपीपी पार्टी को संबल देगा. पर्यवेक्षक इसे चुनावी कदम बताते हैं. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय में सचिव रहे शमशाद अहमद खान कहते हैं, "अगर यह जनता के भले के लिए किया गया है तो इसे पांच साल पहले किया जाना चाहिए था. पांच साल पहले क्यों नहीं किया गया. ऊर्जा और बिजली की कमी तो पांच साल से चल रही है और लगातार स्थिति खराब हो रही है."
पाइपलाइन की कुल लंबाई दो हजार किलोमीटर है. इसमें से 1220 ईरानी हिस्से और 780 किलोमीटर पाकिस्तानी हिस्से में है. पाकिस्तानी के बलूचिस्तान गैस पाइपलाइन की सुरक्षा को खतरा है. यहां न केवल बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर ज्यादा अधिकार की मांग करने वाले कट्टरपंथी बलूच हैं बल्कि ईरान के सुन्नी घुसपैठिये भी हैं जो ईरान में अपने लिए ज्यादा अधिकारों की मांग कर रहे हैं.
रिपोर्टः अमजद अली/आभा मोंढे
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन