ईरान पाकिस्तान में पाइपलाइन समझौता
१८ मार्च २०१०अरबों डॉलर की गैस पाइपलाइन निर्माण योजना को पाकिस्तान की ऊर्जा ज़रूरतों के नज़रिए से बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि पाकिस्तान ऊर्जा संकट से जूझ रहा है. पाकिस्तान के पेट्रोलियम और प्राकृतिक संसाधन मंत्री नवीद क़मर ने तुर्की में हुए इस समझौते को ऐतिहासिक क़रार दिया है.
पाकिस्तान सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि देश की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए यह समझौता मील का पत्थर है. इस पाइपलाइन को ''पीस पाइपलाइन'' यानी शांति की पाइपलाइन नाम दिया गया है.
इस समझौते के अन्तर्गत ईरान की दक्षिण फ़ार्स गैस फ़ील्ड को पाकिस्तान के बलूचिस्तान और सिंध प्रांत से जोड़ा जाना है. रूस के बाद ईरान में दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार है. समझौते के तहत साल 2015 तक पाकिस्तान को 7500 लाख क्यूबिक फ़ीट गैस की प्रतिदिन आपूर्ति होगी.
नवीद क़मर ने उम्मीद जताई है कि गैस पाइपलाइन के लिए निर्माण कार्य जल्द ही शुरू हो जाएगा. समझौते पर हस्ताक्षर होने में देरी का कारण बताया गया है कि पाकिस्तान को समझौते के लिए ज़रूरी रक़म को जुटाने में मुश्किल हो रही थी.
इस समझौते का प्रस्ताव 1990 के दशक में सामने आया था और शुरुआत में इसे पाकिस्तान से होकर भारत तक पहुंचना था. विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के प्रति अविश्वास के चलते भारत इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने में आशंकित रहा है.
हालांकि लंबे समय तक इस संबंध में वार्ताओं का दौर चलता रहा. लेकिन पिछले साल भारत बातचीत से अलग हो गया था. वैसे समझौते में यह प्रावधान रखा गया है कि अगर पाइपलाइन भारत तक बढ़ाई जाती है तो पाकिस्तान को ट्रांज़िट शुल्क वसूलने की अनुमति होगी.
माना जाता है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर संशकित अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत, पाकिस्तान और ईरान में समझौता हो. अमेरिका का आरोप है कि ईरान परमाणु हथियारों को विकसित कर रहा है हालांकि ईरान इससे इनकार करता रहा है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़
संपादन: एम गोपालकृष्णन