नदी सफाई की मिसाल
३० नवम्बर २०१३नदी की सफाई के लिए भारी भरकम परियोजना बनाई गई है, जिसके जरिए पांच साल में नदी के गंदे पानी को साफ किया जाएगा. एमशर कोऑपरेटिव के प्रवक्ता मिषाएल श्टाइनबाख ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "हम नदी को साफ करके इसे प्राकृतिक स्थिति में पहुंचाना चाहते हैं, ताकि यहां फिर से मछलियां, पौधे और जानवर रह सकें." उन्होंने कहा कि इलाके के लोगों के लिए भी नदी की सफाई बहुत जरूरी है, ताकि ये "आराम और सैर सपाटे" की जगह बन सके.
लगभग 30 लाख की आबादी करीब 80 किलोमीटर लंबी एमशर नदी के आस पास रहती है. यह नदी जर्मनी के नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के रुअर क्षेत्र से होकर गुजरती है और आखिर में यूरोप की सबसे बड़ी नदियों में शुमार राइन नदी में मिल जाती है. रुअर का इलाका बरसों कोयले की खानों और स्टील उद्योग के लिए जाना जाता रहा. इसका खामियाजा एमशर नदी को खामियाजा भुगतना पड़ा. वहां जल निकासी की कोई योजना नहीं बन पाई और कई बार उद्योगों का कचरा भी नदियों में डाला जाने लगा. स्थिति इतनी बदतर हो गई कि लोगों को नदी के पास जाने से भी रोक दिया गया.
अलग अलग प्लांट
नदी साफ करने की योजना के मुताबिक अलग अलग ट्रीटमेंट प्लांट बना कर पानी को साफ किया जा रहा है. जर्मन शहर बोट्रॉप के ऐसे ही प्लांट के इंजीनियर मानफ्रेड रूटर बताते हैं, "पानी को दो चरणों में साफ किया जा रहा है. पहले मैकेनिकल प्रक्रिया से और फिर जैविक ढंग से. पहले ठोस गंदगी निकाली जाती है और फिर पानी में घुली मिली दूसरी चीजों को निकाला जाता है." उन्होंने बताया कि पानी को पीने लायक साफ करने की योजना नहीं है लेकिन उनकी कोशिश है कि इसे दूसरे कामों लायक बना दिया जाए.
बोट्रॉप के संयंत्र में हर रोज करीब सात लाख घनमीटर पानी साफ किया जाता है. यह काम बेहद जटिल है क्योंकि पानी को कई चरणों में साफ करना पड़ता है. इस दौरान वह एक हौज से दूसरे हौज में जाता है और हर हौज में जाते हुए वह पहले से ज्यादा साफ होता है.
पर्यावरण का ख्याल
पानी साफ करने की इस योजना में पर्यावरण का खास ख्याल रखा गया है. बोट्रॉप संयंत्र में कचरे को जमा करके उसे चार बड़े कंटेनरों में जलाया जाता है और इससे हासिल होने वाली ऊर्जा से संयंत्र की करीब 60 फीसदी बिजली खपत भी पूरी की जाती है. संयंत्रों से निकलने के बाद साफ पानी आगे जाकर विशालकाय राइन नदी में मिल जाता है. एमशर राइन नदी की सहायक नदी है.
पानी सफाई की इस योजना में करीब साढ़े चार अरब यूरो का खर्च आएगा और इसका ज्यादातर हिस्सा स्थानीय लोगों से ही जल शुल्क के तौर पर लिया जाएगा. प्रवक्ता श्टाइनबाख कहते हैं, "साढ़े चार अरब की रकम बहुत बड़ी लगती है. लेकिन यह काम लगभग 30 साल में पूरा किया जा रहा है. इसे 1990 के दशक में शुरू किया गया और 2017-18 तक इसकी हर बूंद साफ करने की योजना है. हमारा उद्देश्य है कि 2020 तक इसे पारिस्थितिकी के साथ मिला कर काम पूरा कर दिया जाए."
रिोपर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी