यमुना की मदद करते इंडो-जर्मन कलाकार
१९ नवम्बर २०११पौराणिक कथाओं के मुताबिक यमुना नदी के तट पर कभी श्रीकृष्ण खेला करते थे. आज दिल्ली में उसी यमुना के तट पर ठहरना तक मुश्किल हो जाता है. सड़ांध आती है, पारदर्शी जल की जगह बुलबुलों वाला काला पानी दिखता है. विज्ञान की भाषा में कहा जाए तो नदी मर चुकी है.
लेकिन अब भारत और जर्मनी के कुछ कलाकार यमुना को बचाने का बीड़ा उठा रहे हैं. कलाकार दिल्ली में यमुना और जर्मन शहर हैम्बर्ग में एल्बे नदी को बचाने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं. चार जर्मन और पांच भारतीय कलाकार यमुना के तट पर कला प्रदर्शनी लगा रहे हैं. ऐसी ही प्रदर्शनी हैम्बर्ग में एल्बे के किनारे लगाई गई है. यमुना एल्बे से भी ज्यादा गंदी है.
अभियान प्रोजेक्ट वाई नाम से चलाया जा रहा है. प्रोजेक्ट के सह निरीक्षक रवि अग्रवाल कहते हैं, "सब जानते हैं कि नदी प्रदूषित और गंदी है. लेकिन हम इसकी पारिस्थिकीय के विचार को दोबारा जगाना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि लोग आएं और देखें कि नदी अपने आप में क्या है."
लोहा पुल, दिल्ली में यमुना पर बना सबसे पुराना पुल है. वहां पर लोग कपड़े धोते हैं. जागरूकता के लिए लोहा पुल पर एक महिला की मूर्ति सी बनाई गई है. मूर्ति का निचला हिस्सा यमुना में डूबा है. यह दिखाने की कोशिश की गई है कि नदी किस तरह छटपटा रही है.
कलाकार आसिम वाकिफ ने नदी में प्लास्टिक बोतलों की लंबी लड़ी सी छोड़ी है. वाकिफ कहते हैं, "लोगों के पाप धोने के लिए नदी की देवी हमेशा यहां रही लेकिन वह गंदगी साफ करने के लिए नहीं है."
इतनी प्रदूषित होने के बावजूद दिल्ली की प्यास यमुना ही तर करती है. 70 फीसदी पानी की आपूर्ति इसी नदी से होती है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही नदी को साफ करने का आदेश दे चुका है. सरकार अरबों रुपये बहा चुकी है. पर्यावरणविद सरकारों और प्रशासनिक ढांचे पर ही ढिलाई के आरोप लगाते हैं. आरोप लगाते हैं कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी ठीक जगह पर नहीं लगाया गया. सफाई को लेकर हरियाणा, दिल्ली और यूपी के बीच मतभेद रहते हैं.
रिपोर्ट: एपी/ओ सिंह
संपादन: वी कुमार