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दुकानें बहुत खुल गई हैं

समरा फातिमा२० जून २०१३

दुनिया को जोड़ने में मीडिया का अहम रोल है, लेकिन क्या मीडिया वे बातें आप तक पहुंचा रहा है जिन्हें जानना जरूरी है? विकास की खबरें तो ठीक हैं लेकिन इसके बदले क्या कुर्बान हो रहा है, यह बता रहा है कोई?

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तस्वीर: YASUYOSHI CHIBA/AFP/GettyImages

बॉन में डॉयचे वेले के सालाना ग्लोबल मीडिया फोरम में आए दूरदर्शन के महानिदेशक त्रिपुरारी शरण ने कहा कि भारत जैसे विशाल देश में मीडिया संगठन बहुत खुल गए हैं और कार्यक्रमों की रेलम पेल है. ऐसे में औसत योग्यता वाले लोगों की इतनी भीड़ हो गई है कि जरूरी और गैर जरूरी का अंतर मिटता जा रहा है.

बदलना होगा मीडिया को

तेज रफ्तार से भाग रही विकास की रेल में प्रकृति किस तरह कुचली जा रही है, ये बातें भी लोगों तक पहुंचाने की हैं. अमेरिका और जापान में हो रहे विकास के साथ बांग्लादेश के मजदूरों की दशा, उड़ीसा में आदिवासियों के साथ हो रहे अत्याचार और भारत के कर्जदार गरीब किसानों के बारे में जब तक दुनिया नहीं जानेगी विकास एकतरफा ही रहेगा. बॉन में हुए ग्लोबल मीडिया फोरम में यही चर्चा का विषय रहा कि इन मुद्दों के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए मीडिया की क्या भूमिका होनी चाहिए. शरण ने कहा, "मीडिया को जरूरत है अपनी जिम्मेदारी महसूस करने की. दिन पर दिन नए समाचार चैनल तो खुलते जा रहे हैं लेकिन वहां प्रशिक्षित लोगों की बहुत कमी है." काफी हद तक यही वजह है कि टीवी पर प्रसारित हो रहे कार्यक्रमों में भी नए विचार नहीं दिखाई देते, सभी एक ही पटरी पर चलते जा रहे हैं.

दूरदर्शन के महानिदेशक त्रिपुरारी शरण मानते हैं मीडिया में प्रशिक्षित लोगों की कमी होती जा रही है.
दूरदर्शन के महानिदेशक त्रिपुरारी शरण मानते हैं मीडिया में प्रशिक्षित लोगों की कमी होती जा रही है.तस्वीर: DW

(फेसबुक पत्रकारिता' से चिंता)

आइडिया की कमी

हाल ही में दूरदर्शन पर प्रसारित हुए कार्यक्रम सत्यमेव जयते का जिक्र कर शरण ने कहा, "इस कार्यक्रम ने यह तो दिखा दिया कि दर्शक सिर्फ नाच गाना नहीं चाहते बल्कि जागरुकता वाले कार्यक्रमों के लिए भी तैयार हैं. लेकिन सिर्फ ज्ञान सुनना भी दर्शकों को पसंद नहीं. वह ज्ञान भी आमिर खान जैसे किसी बड़े सितारे के जरिए किसी दिलचस्प अंदाज में सामने आए तो ही पसंद किया जाता है. चिंता की बात यह है कि चैनल खुद किसी नई प्रोग्रामिंग के जरिए रिस्क नहीं लेना चाहते." यानि बाजार में जो बिकता आ रहा है वही बेचते चले जा रहे हैं.

(अपने अंदर झांके मीडिया)

हाई डेफिनिशन दूरदर्शन

बहुत जल्द दूरदर्शन का प्रोडक्शन हाई डेफिनिशन होने जा रहा है. प्रोडक्शन में डॉल्बी डिजिटल जैसी तकनीक का इस्तेमाल होगा. भारत में अभी भी पांच फीसदी से कम लोगों के पास ही एचडी टीवी सेट हैं और ज्यादातर आबादी गावों में बसती है. ऐसे में राष्ट्रीय प्रसारण सेवा दूरदर्शन का एचडी होना अजीब लगता है, लेकिन शरण मानते हैं कि यह बेहतर भविष्य की दिशा में सोचा समझा कदम है, "तेजी से बढ़ रही तकनीक की दुनिया में आने वाला समय एचडी प्रोडक्शन और प्रसारण का ही है. इस तरह के बदलाव में बहुत समय लगता है. इसलिए उसकी तैयारी अभी से करनी होगी और यही दूरदर्शन कर रहा है." आने वाला समय देश की आर्थिक स्थिति में भी परिवर्तन लाएगा और तब यह सवाल इतना बड़ा नहीं रह जाएगा, लेकिन उसके लिए तैयार रहना भी जरूरी है.

स्वतंत्र है भारतीय मीडिया

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के एक नए सर्वे के अनुसार भारतीय मीडिया को अभिव्यक्ति की आजादी के मामले में 176 देशों में से 140वें स्थान पर पाया गया था. शरण इस सर्वे से असहमति जताते हुए कहते हैं कि उन्होंने कभी ऐसा महसूस नहीं किया. उन्होंने कहा, "यह जरूर है कि भारत जैसे विशाल और बहुसांस्कृतिक देश में सभी की संवेदनाओं का खयाल रखना पड़ता है. ऐसे में मीडिया की अभिव्यक्ति पर इतना अंकुश तो जरूरी हो जाता है कि जिससे किसी की संवेदनाओं को ठेस ना पहुंचे."

दूरदर्शन के महानिदेशक होने के नाते वह मानते हैं कि उन पर इस बात की और भी ज्यादा जिम्मेदारी रहती है कि कार्यक्रमों में मनोरंजन के साथ जानकारी भी शामिल हो. कार्यक्रम किसी भी तरह की अभद्रता की सीमा तक ना जा रहे हों और मुनाफा भी दें.

रिपोर्ट: समरा फातिमा

संपादनः निखिल रंजन

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