तूफान के बाद बच्चों का कोना
२१ नवम्बर २०१३स्कूल के सामने के पार्क में कई लोगों की लाशें भी पड़ी थीं. लेकिन अब ये राहत और बचाव कर्मियों की कार्यवाही के लिए अहम पड़ाव भी है. अपनी नाक बंद करते हुए गाबोट कहती है, "यहां कई लोगों की लाशें थीं."
उसके परिवार ने पास के स्कूल की तीसरी मंजिल पर चढ़ कर जान बचाई. उस दिन तो समुद्र की लहरें छह मीटर तक उठ आई थीं. गाबोट का कहना है कि पांच दिन पहले तक तो वह पार्क में जा भी नहीं पा रही थी क्योंकि वहां से ऐसी बदबू उठती थी कि वह और उसके भाई उल्टी कर देते थे.
कहां खेलें बच्चे
उसने कहा, "मेरी मां ने कहा था कि हमें यहां नहीं आना है क्योंकि जिन लोगों की जान गई है, उनकी आत्मा अब भी यहां है. लेकिन अब बदबू उतनी बुरी नहीं है. इसलिए हम यहां आते हैं क्योंकि हमारे पास खेलने के लिए कोई और जगह नहीं है." जल्द ही कुछ और बच्चे भी सफेद तंबू के आस पास जमा हो जाते हैं. उनमें से कई ने जूते भी नहीं पहन रखे हैं और कइयों के कपड़े गंदे दिख रहे हैं.
जब एक शख्स ने तंबू की चेन खोली, तो बच्चे खिलखिला पड़े. हालांकि उसके अंदर कुछ भी नहीं था. यूनिसेफ की पेरनिले आयरनसाइड का कहना है कि वे शहर में सात ऐसे तंबू लगाएंगे, जहां बच्चे खेल सकते हैं. उन्होंने कहा कि भयानक त्रासदी के बाद वे चाहती हैं कि बच्चों को उनका बचपन वापस दिया जाए, न कि तूफान की यादें. इसलिए तीन से 17 साल के बच्चों के लिए यह योजना बनाई गई है, "जब बच्चे ऐसा कोई हादसा देखते हैं तो जरूरी हो जाता है कि उन्हें सार्थक चीजों में लगाया जाए, ताकि वे दोबारा से बच्चे बन सकें. ये इलाके बच्चों को एक सुरक्षित जगह देंगे, जहां वे खेल सकेंगे. इस दौरान उनके मां बाप अपने टूटे हुए घरों को दोबारा बनाने का काम करेंगे."
आयरनसाइड ने बताया कि वे जल्द ही पार्क के दूसरे कोने में बुजुर्गों के लिए भी ऐसा ही तंबू लगाने वाली हैं. हर केंद्र में दो सामाजिक कार्यकर्ता होंगे और जरूरत पड़ी तो बच्चों को सलाह भी दी जाएगी. उधर, टेंट के अंदर बच्चों ने नर्सरी का अपनी कविता पढ़नी शुरू कर दी. इसके बाद उन्होंने अपना परिचय दिया और फिर खेल में मगन हो गए.
तूफान के बाद
सात साल के मार्लोन बानतिल यहां आकर बेहद खुश हैं, "मुझे यह बहुत पसंद है." उसके दादा, चाचा और चाची का तूफान के बाद से कुछ पता नहीं है. हालांकि तंबू में वह अपने बड़े भाई और दो छोटी बहनों के साथ आराम से खेल रहा है. उसका कहना है, "मुझे लगता है कि वे जीतने वाले को एक पुरस्कार भी देंगे."
चौथी क्लास में पढ़ने वाली गाबोट कहती है कि अगर उसे कॉपी पेंसिल मिल जाए, तो बहुत अच्छा रहेगा क्योंकि तूफान में उसके स्कूल का बस्ता बह गया, "मुझे स्कूल की बहुत याद आती है लेकिन मुझे नहीं लगता कि वहां जल्द ही क्लासें लगेंगी. हम तो स्कूल में ही रह रहे हैं."
अंतरराष्ट्रीय गैरसरकारी संस्था सेव द चिल्ड्रेन की प्रवक्ता लिनेट लिम का कहना है कि हैयान तूफान से लगभग 50 लाख बच्चे प्रभावित हुए हैं, "गुरुवार को हमारी टीम दुलाग में थी, जो टाकलोबान से करीब है. हमने लगभग 100 बच्चों को देखा, जो सड़कों पर भीख मांग रहे थे."
उधर, गाबोट और उसके साथी आराम से खेल रहे हैं. इन बच्चों के हौसले हैयान की रफ्तार से ज्यादा मजबूत हैं.
एजेए/ओएसजे (डीपीए)