चीनी कंपनी ने सोलोमन आईलैंड के द्वीप को लीज पर लिया
१७ अक्टूबर २०१९समाचार एजेंसी एएफपी को मिले दस्तावेजों से पता चला है कि सोलोमन सेंट्रल प्रोविंस ने तुलागी द्वीप पर चीन की कंपनी चायना सैम ग्रुप के साथ 22 सितंबर को एक "रणनीतिक सहयोग समझौता" किया है. इस द्वीप पर प्राकृतिक रूप से गहरे पानी में बंदरगाह है.
इससे एक दिन पहले चीन और सोलोमन ने आधिकारिक रूप से कूटनीतिक संबंध कायम किए. चीन इस गरीब देश को यह समझाने में कामयाब रहा कि वह ताइवान से रिश्ते खत्म कर उसका सहयोगी बन जाए. सोलोमन आईलैंड्स की सरकार ने ताइवान के साथ इसी साल सितंबर महीने में सारे संबंध खत्म कर लिए थे. सोलोमन आईलैंड्स के साथ दुनिया के केवल 16 देशों का संबंध है. इनमें ताइवान भी था लेकिन चीन का कहना था कि ताइवान का इलाका उसका है इसलिए उसे किसी देश के साथ अलग से संबंध रखने का अधिकार नहीं है. ताइवान के मौजूदा राष्ट्रपति त्साई इंग वेन के साथ चीन के रिश्ते अच्छे नहीं बताए जाते हैं. सोलोमन आईलैंड्स छठा ऐसा देश है जिसने ताइवान से संबंध तोड़ा है. इसके पहले बुरकिना फासो, डोमिनिकन रिपब्लिक, साओ टोमे, प्रिंसिप, पनामा और अल सल्वाडोर भी ऐसा कर चुके हैं.
इतिहास वाला द्वीप
तुलागी करीब दो वर्ग किलोमीटर का एक छोटा सा द्वीप है जिसकी आबादी करीब 1200 है. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यहां जापान का नौसैनिक अड्डा था और युद्ध के दौरान इसने कई भयानक लड़ाइयां देखी हैं. चीन की सैम ग्रुप के साथ हुए करार में द्वीप पर एक रिफाइनरी विकसित करने का जिक्र है. हालांकि इसका इस्तेमाल दोहरे तरीके से हो सकता है जिसे लेकर अमेरिका और आस्ट्रेलिया की चिंता बढ़ सकती है.
करार में कहा गया है, "पार्टी ए (सेंट्रल प्रोविंस) पूरे तुलागी द्वीप और उसके आस पास के द्वीपों को विशेष आर्थिक जोन बनाने के लिए पार्टी बी (चायना सैम) को लीज पर देना चाहती है." इसमें यह भी कहा गया है, "तेल और गैस समेत और कोई उद्योग जो विकास के लिए उचित हो," उसे भी करार में शामिल किया गया है. चाइना सैम ने गुरुवार को एक बयान जारी कर कहा है कि वह सोलोमन के साथ कारोबार, बुनियादी ढांचा, मछली पालन और पर्यटन समेत कई क्षेत्रों में सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध है."
निवेश की ललक
सिडनी में विदेश नीति थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट पैसिफिक प्रोग्राम के निदेशक जोनाथन प्राइके का कहना है कि चीन का विकासशील देशों को इस तरह के विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के लिए वादा करना कोई अनोखी बात नहीं है. ये देश निवेश के लिए बेचैन हैं. इसके साथ ही जोनाथन प्राइके ने यह भी कहा, "डर यह है कि इस तरह के जोन चीन के ऑपरेशनों के लिए एनक्लेव बन जाएंगे जो बाद में स्थायी रणनीतिक केंद्रों के रूप में विकसित हो सकते हैं. सोलोमन आईलैंड्स के जिस द्वीप की बात हो रही है उसके पास गहरे पानी के बंदरगाह की सुविधा है जो आगे चल कर रणनीतिक रूप से भी इस्तेमाल हो सकता है."
प्रशांत और दक्षिण सागर के क्षेत्र में चीन अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है और अमेरिका इसे अपने लिए चुनौती के रूप में देख रहा है. चीन को चुनौती देने के लिए अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के साथ मिल कर चार देशों का एक संगठन भी बनाया है. रणनीतिक रूप से जिस इलाके को पहले एशिया प्रशांत क्षेत्र के रूप में जाना जाता रहा है. उसे अब भारत प्रशांत क्षेत्र के रूप में स्थापित करने की भी कोशिश की जा रही है. हालांकि इसमें कई मुश्किलें भी हैं. इस बीच चीन अपना दायरा और असर बढ़ाने के लिए हर छोटी बड़ी कोशिश कर रहा है.
एनआर/एमजे(एएफपी)
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