अमेरिका को चुनौती के लिए क्या वनुआतु में अड्डा बनाएगा चीन?
१३ अप्रैल २०१८दक्षिण प्रशांत महासागर में वनुआतु द्वीपसमूह एक मामूली धब्बा सा दिखता है लेकिन चीन के सैन्य रणनीतिकारों के लिए यह अपने देश की नौसैनिक ताकत दिखाने का एक बड़ा प्रोत्साहन हो सकता है.
दक्षिण प्रशांत महासागर के बीचोबीच चीन के सैन्य ठिकाने के बारे में ऑस्ट्रेलिया की फेयरफैक्स मीडिया ने मंगलवार को ब्यौरा दिया. यह सैन्य ठिकाना लंबे समय से पश्चिमी ताकतों के असरदार नियंत्रण वाले इलाके में रणनीतिक दबदबे को उलझा सकता है. फेयरफैक्स मीडिया ने खबर दी है कि चीन ने वनुआतु से उनके इलाके में स्थाई सैन्य अड्डा बनाने का प्रस्ताव दिया है. इलाके में चीन की ऐसी किसी कोशिश को लेकर ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के कान पहले से ही खड़े हैं. वनुआतु के विदेश मंत्री ने चीनी सैन्य अड्डे को लेकर किसी चर्चा से इनकार किया है. उधर चीन के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि फेयरफैक्स की रिपोर्ट "सच्चाई से बिल्कुल मेल नहीं खाती है." चीनी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने तो इस रिपोर्ट को "फेक न्यूज" भी कहा है.
एशियाई और पश्चिमी देशों के मिलिट्री अटैचियों का कहना है कि चीन अगर ब्लू वाटर नेवी बनना चाहता है तो सैन्य ठिकानों का बड़ा नेटवर्क और दोस्ताना बंदरगाह उसके लिए बेहद जरूरी है. वो इसके लिए अमेरिका का उदाहरण देते हैं जिसने यही किया है. शांति के समय में ताकत और असर दिखाने में कारगर इन ठिकानों का इस्तेमाल संकट के दौर में भी हो सकता है. यहां तक कि चीन की मुख्य भूमि के पास विवादित पूर्वी या दक्षिण चीन सागर में कोई समस्या होने पर यह अपने किनारों से दूर रह कर भी इसमें शामिल हो सकता है. उदाहरण के लिए चाहे पहरे पर लगी गश्ती जहाजों की सुरक्षा करनी हो या फिर व्यापारिक जहाजों की घेराबंदी तोड़नी हो.
मुख्य समुद्री मार्गों से दूर होने और हिंद महासागर के बंदरगाहों जितना अहम नहीं होने के बाद भी वनुआतु, चीन को ऑस्ट्रेलिया के तटों के करीब पहुंचा देगा. इसके साथ ही अमेरिकी सैन्य ठिकाना गुआम भी उसकी पहुंच में होगा. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में प्रशांत विशेषज्ञ ग्रीम स्मिथ का कहना है कि वनुआतु में चीनी ठिकाना ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका उनके सहयोगी देशों को कड़ा संदेश देगा. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में उन्होंने कहा, "यह अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया दोनों को एक अतुलनीय आक्रामक संकेत देगा कि "हम यहां हैं, इसकी आदत डाल लो'."
वनुआतु दक्षिण चीन सागर में चीन की स्थिति को मान्यता देने वाला पहला देश है और प्रशांत क्षेत्र का अकेला देश. ग्रीम स्मिथ ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि वनुआतु के प्रधानमंत्री चार्लट सालवाई 2016 में इस पद पर चुने जाने के बाद दो बार चीन जा चुके हैं लेकिन वे अब तक ऑस्ट्रेलिया नहीं आए हैं. स्मिथ के मुताबिक, "इसके पीछे एक वजह यह भी है कि ऑस्ट्रेलियाई पक्ष की ओर से उन्हें वरीयता नहीं मिल रही है."
अगर चीन दक्षिण प्रशांत में ठिकाना बनाता है तो यह हिंद महासागर में जिबूती के बाद दूसरा बेस होगा. चीन के पास विदेशों में सैनिक अड्डों की कमी है. इसका अंदाजा 2014 में तब लगा था जब मलेशियाई एयरलाइन के लापता जहाज को ढूंढने के लिए उसे 18 जहाज तैनात करने पड़े. उसे ऑपरेशन जारी रखने के लिए ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी अलबानी पोर्ट पर इमदाद के लिए निर्भर होना पड़ा जो जंग के दौर में संभव नहीं है.
शंघाई यूनिवर्सिटी ऑफ पॉलिटिकल साइंस एंड लॉ में नौसेना विशेषज्ञ नी लेक्सियोंग कहते हैं कि किसी भी प्रमुख सैन्य ताकत के लिए अपनी रक्षा क्षमताओं को बढा़ने की कोशिश करना बहुत स्वाभाविक है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वो वनुआतु को सैन्य अड्डे के लिए स्वाभाविक पसंद नहीं मानते क्योंकि चीन से इसकी ज्यादा दूरी चीन के लिए उस इलाके में सहयोग हासिल करना मुश्किल बनाएगी.
हांग कांग की लिंगनान यूनिवर्सिटी में चीन के सुरक्षा विशेषज्ञ झां बाओहुई का कहना है कि चीन लंबे समय के लिए अड्डे और भरोसेमंद बंदरगाह बनाना चाहता है लेकिन हिंद महासागर उसकी ज्यादा बड़ी प्राथमिकता है. उन्होंने कहा, "नौसेना के अड्डों का विस्तार करने की इच्छा में उसे सही होना होगा, उसके पास कुछ छोटे और गरीब देशों का विकल्प है. मैं पूरी तरह से नहीं कह सकता कि वनुआतु उसकी जरूरतों को पूरा कर सकेगा या नहीं."
अतीत में ब्रिटेन और फ्रांस का उपनिवेश रहे वनुआतु को पहले न्यू हेब्राइड्स भी कहा जाता था. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यहां अमेरिका का बड़ा सैन्य अड्डा था जिसका मकसद जापान की सेना को ऑस्ट्रेलिया की तरफ बढ़ने से रोकना था. ऑस्ट्रेलिया यहां से 2000 किलोमीटर पश्चिम में है.
न्यूजीलैंड में रहने वाले सुरक्षा विशेषज्ञ मार्क लैंटीन ने फेयरफैक्स की रिपोर्ट पर कहा है कि भले ही यह अपुष्ट है लेकिन ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका के लिए यह खतरे की घंटी है. कई विशेषज्ञ यह भी मान रहे हैं कि ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, न्यूजीलैंड इस इलाके में चीन के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए अपनी कूटनीतिक कोशिशें तेज कर देंगे.
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)