गल गई अंटार्कटिक की हवाई पट्टी
२४ अक्टूबर २०१२अब यहां काम कर रहे वैज्ञानिकों तक सामान पहुंचाए जाएं तो कैसे?वैज्ञानिकों का कहना है कि हवाई पट्टी पिघलने का कारण ग्लोबल वॉर्मिंग है. अब ऑस्ट्रेलिया की कोशिश है कि इन केन्द्रों तक पहुंचने के लिए किसी नई जगह की तलाश की जाए जहां विमान उतर सकें.
कैसी, डेविस और मॉसन नाम के तीन शोध केन्द्रों पर फिलहाल वैज्ञानिक और उनके सहायक काम कर रहे हैं. अब तक साढ़े चार करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर महंगी जिस हवाई पट्टी के सहारे इन केन्द्रों तक पहुंचा जाता था उसका नाम विलकिन्स था. अब बर्फ पिघलने की वजह से इसी हवाई पट्टी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है.
ऑस्ट्रेलिया सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा है, "2007-08 से हमने अंटार्कटिक में काम शुरु किया. उसके बाद से बीच बीच में हमारे काम में बाधा पहुंचने लगी थी. अब हमारा अंटार्कटिक डिवीजन उन स्थानों की खोज करेगा जो इन केन्द्रों के पास है और जहां हम विमान उतार सकते हैं."
वैज्ञानिकों के मुताबिक अंटार्कटिक के इस इलाके के तापमान में पिछले 50 सालों में 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है. दुनिया के पैमाने पर हुई ग्लोबल वॉर्मिंग के मुकाबले ये मौटे तौर पर तीन गुना ज्यादा है.
इस इलाके में जहाज तभी उतारे जा सकते हैं जब तापमान शून्य से पांच डिग्री सेल्ससियस से भी नीचे हो. डिवीजन डायरेक्टर टोनी फ्लेमिंग ने ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन से बात करते हुए कहा, "इस बात के संकेत हैं कि यहां लंबे समय से ग्लोबल वॉर्मिंग का असर पड़ रहा है. इसकी वजह से यहां भविष्य में रनवे चलाना और मुश्किल हो जाएगा."
जब हवाई पट्टी शुरू की गई थी तो हर सला और 20 उड़ानें तय की गई थीं लेकिन 2010-11 में हवाई पट्टी पिघलने की वजह से सिर्फ दो उड़ानें ही पूरी की जा सकीं. इस साल के लिए 6 उड़ानों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इन केन्द्रों तक पहुंचने के लिए जल जहाज की भी व्यवस्था की गई है लेकिन इसमें करीब दो हफ्ते का समय लगता है जबकि हवाई जहाज से यहां तक पहुंचने में महज 4.5 घंटे का ही वक्त लगता है. एक तरफ जहां हवाई पट्टी इसलिए काम नहीं कर रही है क्योंकि वहां की बर्फ ज्यादा पिघल रही है, वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया का एक आपूर्ति जहाज कैसी स्टेशन से 200 नॉटिकल मील की दूरी पर बर्फ के बीच फंस गया है. फ्लेमिंग कहते हैं, "हम इंतजार कर रहे हैं कि मौसम ठीक हो."
वीडी/एमजे (एएफपी)