आर्कटिक से अंटार्कटिक तक दौड़ पड़े
२० जनवरी २०१२48 साल के पैट फार्मर पिछले साल अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया से इस मैराथन के लिए रवाना हुए. सिडनी से निकलते हुए उन्होंने कहा, "अगर मैं नेक काम के लिए तकलीफ उठाने को तैयार हूं तो यकीनन और लोग भी इसमें मेरा साथ देंगे".
फार्मर को अब केवल दो हजार किलोमीटर का और सफर तय करना है. हालांकि फार्मर की मेहनत रंग लाती नहीं दिख रही है. फार्मर दुनिया भर में घूम कर रेड क्रॉस के लिए पैसा इकठ्ठा करना चाहते थे. लेकिन अब तक उनके अनुमान के हिसाब से राशि जमा नहीं हो पाई है.
प्रतिदिन 80 किलोमीटर
दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच कर फार्मर ने सैटेलाईट फोन की मदद से समाचार चैनल एबीसी से बातचीत की और बताया, "मेरे पैर बेहद बुरी हालत में हैं. पैरों की कई उंगलियों पर नाखून भी नहीं हैं. वे काले हो गए हैं और जख्मी भी." बर्फीले दक्षिणी ध्रुव पर भी फार्मर ने बेहद सर्द मौसम के बावजूद अपना मैराथन जारी रखा है. उन्होंने बताया, "मुझे रोज सुबह अपने पैरों को किसी तरह जूतों में घुसाना पड़ता है, क्योंकि वे बहुत सूज गए हैं. सच कहूं तो वे देखने में बेहद भयंकर लग रहे हैं."
दस महीने पहले जब फार्मर ने इस मैराथन का एलान किया तो लोगों को उनकी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ. फार्मर ने कहा कि वह हर रोज अस्सी किलोमीटर भागना चाहते हैं और ऐसा करने में खुद को एक भी दिन की छुट्टी नहीं देना चाहते. इतने महीनों तक वह ऐसा करने में सफल रहे हैं. फार्मर ने बताया, "मैं जब अंटार्कटिक पहुंचा तो पहले पांच दिन मैं हर रोज सत्तर किलोमीटर दौड़ा. मैंने नॉर्वे के एक व्यक्ति का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. अब मैं अंटार्कटिक में सबसे तेज दौड़ने वाला व्यक्ति बन गया हूं."
नर्क जैसा दक्षिणी ध्रुव
फार्मर ऐसी अनोखी मैराथन पहली बार नहीं दौड़ रहे हैं. इस से पहले वह 1993 में अमेरिका के दो चक्कर लगा चुके हैं. उस समय वह 'ट्रांस अमेरिका रोड रेस' में दूसरे स्थान पर आए. इसके दो साल बाद उन्होंने एक बार फिर इसी दौड़ में हिस्सा लिया और चौथे स्थान पर रहे. 1999 में राजनीति में कूदने से पहले उन्होंने 191 दिनों में ऑस्ट्रेलिया का एक चक्कर लगाया. फार्मर ने उस समय कुल 14,6662 किलोमीटर का मैराथन पूरा किया.
लेकिन अपने अनुभवों के बाद फार्मर का कहना है कि जितनी तकलीफों का सामने उन्हें दक्षिणी ध्रुव पर करना पड़ा उतना और कहीं नहीं, "वह नर्क से गुजरने जैसा था. उसे समझने के लिए आपको उसे खुद ही महसूस करना होगा." फार्मर बताते हैं कि उन्होंने जिस टेंट में रात गुजारी उसमें तापमान बाहर के -45 डिग्री की तुलना में तो गर्म था, लेकिन इतना ठंडा रहता था कि उनके कपड़ों पर हमेशा बर्फ जमी रहती थी. इस से उनकी सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा है. उनके हाथ और पैर तो सूजे ही हुए हैं, साथ ही घुटनों पर भी बुरा असर पड़ा है. फार्मर का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि उनके घुटने कभी पूरी तरह ठीक हो पाएंगे. लेकिन वह इस तकलीफ को उठाने के लिए तैयार हैं, "मैं जो भी झेल रहा हूं वह उस से बहुत कम है जिसे लोग विकासशील देशों में झेल रहे हैं. ना ही वहां पीने के लिए साफ पानी है और ना ही स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं." फार्मर उम्मीद कर रहे हैं कि वह अगले महीने ऑस्ट्रेलिया लौट जाएंगे.
रिपोर्ट: डीपीए/ईशा भाटिया
संपादन: आभा एम