क्यों बढ़ रहे हैं पुलिस बल में आत्महत्या के मामले
२१ सितम्बर २०१८उत्तर प्रदेश पुलिस 2.5 लाख कर्मियों के साथ विश्व का सबसे बड़ा पुलिस संगठन है. इतना बड़ा संगठन लेकिन वह अपने कर्मियों के आत्महत्या करने से विचलित है. अनुशासित पुलिस बल में आत्महत्या के मामले क्या सिर्फ काम के बोझ की वजह से हो रहे हैं ?
भारत में पुलिस की नौकरी हमेशा तनाव के माहौल में होती है. इसमें उसके लम्बे ड्यूटी के घंटे भी शामिल हैं. औसतन 12 घंटे ड्यूटी करना आम बात है. उसके बाद ड्यूटी के दौरान भी माहौल अक्सर नीरस रहता है. किसी एक प्वाइंट पर ड्यूटी लगा दी गयी और उसको वहीं रहना है. रूटीन ड्यूटी के अलावा रोज की एक्स्ट्रा ड्यूटी जिसमें क्षेत्र में वीआईपी मूवमेंट, कानून व्यवस्था, आपदा, ट्रैफिक जाम तक शामिल है.
आत्महत्या की कुछ घटनाएं
राजेश साहनी और सुरेन्द्र कुमार दास, दोनों आईपीएस अधिकारी थे लेकिन उन्होंने आत्महत्या कर ली. साहनी एडिशनल पुलिस अधीक्षक (एंटी टेररिज्म स्क्वाड) और सुरेन्द्र पुलिस अधीक्षक कानपुर पूर्वी के पद पर पोस्टेड थे. दोनों बहुत प्रतिभाशाली अधिकारी और विभाग में अलग पहचान रखते थे. इससे पहले जनवरी में लखनऊ के मोहनलालगंज में सिपाही राम प्रकाश वर्मा ने फांसी लगा कर के आत्महत्या कर ली. प्रारंभिक कारण बताया गया कि प्रेमिका से झगड़ा हुआ था.
लखनऊ के आलमबाग में रहने वाले सिपाही राज रतन वर्मा ने जून में आत्महत्या कर ली. मीडिया में कारण आया की 20 घंटे की शिफ्ट करने से वो परेशान था. पिछले साल भी एक महिला पुलिसकर्मी ने बांदा में अपने सरकारी आवास में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी. पिछले साल राम जन्म भूमि परिसर, अयोध्या में तैनात एक सिपाही ने आत्महत्या कर ली है. ये सिर्फ कुछ उदहारण हैं. घटनाएं तमाम हैं. हर घटना के बाद सिर्फ यही लिखा जाता है कि काम का दबाव अधिक था और परिवार से नहीं मिल पा रहा था.
क्यूँ करते हैं पुलिसकर्मी आत्महत्या
कहने को तो तमाम कारण हैं जैसे परिवार से दूरी, छुट्टी न मिलना, कम वेतन इत्यादि. लेकिन ये सब बहुत आम से कारण हैं. असली वजह इसके अलावा है. रिटायर्ड आईजी एसआर दारापुरी पुलिस महकमे में बहुत चर्चित और ईमानदार अफसर मशहूर रहे हैं. दारापुरी के अनुसार सबसे बड़ा कारण है पोस्ट ट्रॉमा स्ट्रेस. दारापुरी कहते हैं, "पुलिसकर्मी भी इंसान हैं. उनको बहुत से कार्य ऐसे करने होते हैं जैसे किसी अपराधी को गोली मारना, भीड़ नियंत्रण में फायरिंग और बल प्रयोग. ऐसे में उनको पोस्ट ट्रॉमा स्ट्रेस हो जाता है. आखिर वो भी इंसान हैं. उनके अंदर भी भावना आ जाती है कि वो घर पर कम समय देते हैं. परिजनों से बात हो नहीं पाती तो ये स्ट्रेस रिलीज नहीं हो पाता."
दारापुरी के अनुसार इसके अलावा सोसाइटी में भी हिंसा बढ़ रही है. इससे पुलिस की मनःस्थिति और आचरण पर भी असर पड़ा है. 'किलर इंस्टिंक्ट' पैदा हो रही है जो नुकसानदेह है. एक कारण दारापुरी के अनुसार प्रदेश में हो रहे एनकाउंटर्स भी हैं. वे कहते हैं, "मेरी पुलिस की सर्विस के अनुसार बहुत एनकाउंटर्स फेक होते हैं. ऐसे में पुलिसकर्मी के मन में भी कहीं न कहीं ये आ जाता है कि मैंने ऐसा क्यूँ किया ? अब पुलिस का इस्तेमाल 'पॉवर आर्म ऑफ द स्टेट' या यूँ कहिए सत्ताधारी दल की तरह होने लगा है."
प्रेरणा की खोज
अपर पुलिस महानिदेशक नवनीत सिकेरा मानते हैं कि पुलिसकर्मी अक्सर अपनी जॉब में मोटिवेशन तलाशते हैं. वो याद करते हुए कहते हैं, "साल 2015 में हमारे आरक्षी कैलाशपति रिटायर हुए तो उन्होंने आखिरी दिन कहा कि सर, पुलिस की वर्दी उतारने का दिल नहीं करता. लेकिन कैलाशपति को 40 साल में सिर्फ एक प्रोमोशन मिला. साल 2004 में लगभग 30000 प्रोमोशन हुए उसके बाद कोई विशेष प्रोमोशन योजना नहीं आई."
असर वर्किंग कंडीशन का भी दबाव पड़ता है. दबाव चार नहीं अब पांच तरफ से रहता है. राजनेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, आरटीआई, अदालत और जनता. अब एक नया सोशल मीडिया भी आ गया है. आए दिन वीडियो वायरल होते हैं जिसमें अगर पुलिसकर्मी ड्यूटी के बाद गाना भी गए या डांस कर ले तो कार्यवाही. इन सबके बीच काम करना पड़ता है. ड्यूटी प्वाइंट पर सुविधाएं ना के बराबर रहती हैं. हर काम के लिए अब पुलिस लगती है चाहे वो विद्यार्थियों की परीक्षा हो या फिर मेला, तीज-त्योहार. होली जैसे महत्वपूर्ण त्योहार पर पुलिसकर्मी ड्यूटी करते हैं और होली अगले दिन मनाते हैं. परिजनों के साथ त्योहार तो एक सपना है.
प्रतिष्ठा में कमी
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार आसिफ जाफरी पिछले तीन दशक से पुलिस हेडक्वार्टर की रिपोर्टिंग कर रहे हैं. वो बताते हैं, "देखिए पिछले दिनों से अब पुलिस का इकबाल गिरा है. पहले अगर एक सिपाही गांव आ जाता था तो हडकंप मच जाता था. अब वरिष्ठ अधिकारी भी जाए तो कोई बात नहीं. ऐसा इस वजह से हुआ है क्यूंकि कार्यवाही और ट्रांसफर अब राजनेताओं द्वारा जब-तब कर दिए जाते हैं." खुद सरकार बहुत ट्रांसफर के पहले 'जनहित में किया गया' बताती है. ये बात धीरे धीरे अब पुलिसकर्मियों को हतोत्साहित करती है.
उत्तर प्रदेश पुलिस डायल-100 नाम से एक इमरजेंसी रेस्पोंस सर्विस चलाती है. इस सर्विस के तहत पिछले एक साल में समय पर पहुंच कर पुलिसकर्मियों ने 858 लोगों को आत्महत्या करने से बचा लिया. लेकिन फिलहाल पुलिसकर्मी खुद अपने स्ट्रेस के दबाव से बचने के लिए रास्ता ढूंढ रहे हैं.