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क्यों करते हैं मर्द औरतों से बेहतर पार्किंग

१२ नवम्बर २०१०

जर्मनी में एक विवादास्पद शोध का कहना है कि पुरुष ड्राइवर महिला ड्राइवरों की अपेक्षा बेहतर, तेज और सटीक कार पार्किंग करते हैं. यह शोध रुअर विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों की एक टीम ने किया है.

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तस्वीर: Ruhruniversität Bochum

इस नए अध्ययन के अनुसार समांतर पार्किंग स्पेस में गाड़ी को पार्क करने में महिला ड्राइवरों को पुरुषों की तुलना में डेढ़ मिनट तक ज्यादा समय लगा. पुरुष ड्राइवरों ने उसी पार्किंग स्पेस में 42 सेंकड तेजी से और तीन फीसदी की सटीकता से गाड़ी पार्क की.

इस परीक्षण में दोनों लिंगों के नौसिखुए ड्राइवरों के अलावा लंबे समय से गाड़ी चला रहे 48 लोगों ने हिस्सा लिया. उन्हें अलग अलग प्रकार के पार्किंग स्पेस में गाड़ी पार्क करने को कहा गया और अध्ययन में उसकी तुलना की गई.

स्वाभाविक था कि दोनों ही लिंगों के नौसिखुए ड्राइवर अनुभवी ड्राइवरों की तुलना में कम अच्छे थे. लेकिन रुअर विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य की बात थी कि दोनों ही श्रेणियों के पुरुष ड्राइवर महिला ड्राइवरों से बेहतर थे और इसमें मनोवैज्ञानिक पहलुओं की भी भूमिका थी.

रिसर्च करने वाली टीम का नेतृत्व करने वाले डा. ओनुर गुंटुरकुन के अनुसार, अध्ययन के नतीजे इसकी पुष्टि करते लगते हैं कि पुरुषों में हाथों और आंखों के समन्वय तथा स्थान को आंकने की क्षमता बेहतर होती है. उनका कहना है, पुरुष न सिर्फ खड़ी गाड़ियों की तुलना में अपनी गाड़ी की स्थिति भांपने में बेहतर हैं, बल्कि यह भी समझने में बेहतर हैं कि एक्सलेटर दबाने और चक्के को घुमाने से क्या होगा.

रिसर्च टीम की महिला सह प्रमुख का कहना है कि व्हील के पीछे आत्मविश्वास के अलावा इस बात की भी भूमिका होती है कि आपका किन लोगों के साथ मिलना जुलना है. डा. क्लाउडिया वोल्फ का कहना है, "महिला ड्राइवरों में लगता है कि व्हील के पीछे कम आत्मविश्वास होता है." उनके अनुसार, "जबकि पुरुष ड्राइवर मुश्किल पार्किंग स्पेस को अपनी क्षमता दिखाने का मौका समझते हैं, महिला ड्राइवर उसी पार्किंग को डर और तिरस्कार के साथ देखती हैं."

डा. क्लाउडिया वोल्फ कहती हैं कि कठिन पार्किंग से बचने की कोशिश के कारण ही अक्सर महिला ड्राइवर पहली बार में अपनी गाड़ी ठीक से पार्क नहीं कर पाती. उनका सुझाव है, "महिलाओं को अपने रवैये और पहले से तय संदेह में बदलाव लाना चाहिए और पार्किंग को खतरे के रूप में नहीं बल्कि चुनौती के रूप में देखना चाहिए जिस पर कुछ अभ्यास से जीत हासिल की जा सकती है."

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: एन रंजन

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