किफायती ऊर्जा की तलाश में
२४ जनवरी २०११आज के दौर में हम जब स्वच्छ और किफ़ायती ऊर्जा की बात करते हैं, तो हमारी सोच में सौर- या वायु ऊर्जा का विषय सबसे ऊपर होता है, या फिर जैविक ऊर्जा का. लेकिन एक तो ये टैक्नॉलजियां फिलहाल बहुत महंगी हैं, और दूसरी बात यह कि अभी तक उनमें ऐसी कोई नई, ताजा तब्दीलियां नहीं हुई है, जो स्वच्छ ऊर्जा को सस्ते दाम पर भरपूर मात्रा में मुहैया करने की दिशा में कोई रास्ता खोल सके.
नए और पुराने का मेल
एक विशेषज्ञ का कहना है कि ऊर्जा के उत्पादन में परिवर्तन इन वैकल्पिक तकनीकों का पीछा करने से नहीं, बल्कि ऊर्जा के आज़माए जा चुके और जाने-पहचाने क्षेत्रों में काम करने से आएगा. यह विशेषज्ञ हैं, भारतीय मूल के प्रसिद्ध अमरीकी निवेशक विनोद खोसला हैं, जिन्होंने 1980 के दशक में कंप्यूटर संचालन और सॉफ़्टवेयर कंपनी सन माइक्रोसिस्टम्स का सहसंस्थापन किया था. उनकी मौजूदा कंपनी खोसला वैंचर्स का 37 सूचना-टैक्नॉलजी और 53 स्वच्छ-टैक्नॉलजी कंपनियों में निवेश है.
खोसला कहते हैं कि वायु-ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत ही कम तब्दीली आई है. फिर उसके भंडारण के उपयुक्त तरीके भी अभी मौजूद नहीं हैं. सौर ऊर्जा की कीमत कम हो रही है, लेकिन इतनी नहीं कि बिना सरकारी सहायता के बाज़ार में प्रतिस्पर्धा दे सके. कुछ ऐसा ही हाल, उनके विचार में, जैविक ऊर्जा का भी है.
विनोद खोसला कहते हैं, "सौर और वायु-ऊर्जा स्वच्छ ऊर्जा की एक बहुत सीमित परिभाषा प्रस्तुत करती हैं- शायद सबसे कम दिलचस्प. हमारी कंपनी ऐसे निहायत ही नई तरह के कार इंजनों में निवेश कर रही है, जो आज के इंजनों की तुलना में कम लागत वाले, पर 50 प्रतिशत अधिक कार्यकुशल हैं. हम ऐसे एयर कंडीशनरों में निवेश कर रहे हैं, जो एक नए थर्मोडायनैमिक साइकल का इस्तेमाल करते हैं. मेरे सोचने में यह क्षेत्र मुख्य और आम टैक्नॉलजी के क्षेत्र हैं. यानी ऐसे एयर कंडीशनर, जो अब की कीमत की तुलना में अधिक ख़र्चीले नहीं हैं, लेकिन 80 प्रतिशत कम ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं."
पर्यावरण पर खास ध्यान
ध्यान देने की बात यह है कि वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर तवज्जो एक से दूसरे स्रोत पर बदलती रही है. कुछ वर्ष पहले सबसे अधिक ध्यान सौर और वायु ऊर्जा पर दिया जा रहा था. दो वर्ष पहले निवेशकों की तवज्जो जैव ऊर्जा पर अटकी और अब विशेष आकर्षण का केंद्र है, स्मार्ट ग्रिड की धारणा, जिसमें सप्लायर से उपभोक्ता तक बिजली, डिजिटल संचार के रास्ते पहुंचती है - कम ख़र्च पर और अधिक निर्भरता के साथ. एक से दूसरे ऊर्जास्रोत पर बदलती तवज्जो के पीछे एक कारण पर्यावरण को पहुंच सकने वाले नुक़सान की आशंका का भी है.
इस स्थिति पर टिप्पणी करते हुए विनोद खोसला कहते हैं, "एक मुश्किल यह है कि पर्यावरणवादी उन समस्याओं की ओर ध्यान दिलाने में बहुत ही सक्षम रहे हैं. लेकिन जहां तक समाधान सुझाने की बात है, उनकी भूमिका बहुत निराशाजनक रही है. मेरे विचार में अधिकतर पर्यावरणवादी, अधिकांश समय आर्थिक रूप से संगत समाधानों के रास्ते में अड़चन बन जाते हैं."
सफलता आर्थक स्तर पर
विनोद खोसला कहते हैं कि आख़िर में सफलता आर्थिक आधार पर ही मिलती है, इसलिए वह बिना सरकारी सहायता के बाज़ारी प्रतिस्पर्धा के हिमायती हैं. उनका कहना है कि कम कार्बन-उत्सर्जन वाली कारों का किफ़ायती होना भी ज़रूरी है. आज की बिजली-चालित कारें किफ़ायती साबित नहीं होंगी. निसान लीफ़ और शेवरोले(शेवी) वोल्ट जैसी अमरीकी कारों की तुलना में उनकी पसंद है भारत-निर्मित टाटा नैनो, "हमें टाटा नैनो जैसी टैक्नॉलजियों का विकास करने की ज़रूरत है, शैवी वोल्ट जैसी नहीं. दुनिया का अधिक बड़ा कार-बाज़ार आज भारत और चीन में है. आर्थिक महत्व वाला यही मुद्दा असली कुंजी है."
खोसला का यह भी कहना है कि ऊर्जा के क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा में वही कंपनियां सफल होंगी, जो एक दम नई टैक्नॉलजियां आज़मा पाएंगी. इसके लिए ज़रूरत है अधिक शोध की और अधिक बड़ी संख्या में पीएचडी छात्रों की. स्वयं अपने बारे में वह कहते हैं कि अगर किसी नई धारणा के 90 प्रतिशत असफल होने के अवसर होते हैं, तो वह उसकी ओर आकर्षित होते हैं. क्योंकि तेज़ और बड़ा परिवर्तन लाने की संभावना उसी विचार में होती है.
लेकिन खोसला निश्चित रूप से इन नए परिवर्तनों की संभावना ऊर्जा के जाने-पहचाने क्षेत्रों को त्यागने नहीं, बल्कि उन्हें शामिल करने में देखते हैं. वह कहते हैं कि प्राकृतिक गैस को कार्बन-रहित करने की टैक्नॉलजी से कम कार्बन वाली वैसी ही ऊर्जा हासिल की जा सकती है, जैसी कि सौर ऊर्जा के रूप में. और वह किफ़ायती भी होगी. खोसला के अनुसार, अगर उत्सर्जन कम करने की योजनाओं में फ़ॉसिल ईंधनों को शामिल नहीं किया जाता, तो कार्बन को सीमित करना कभी किफ़ायती नहीं हो पाएगा.
रिपोर्टः गुलशन मधुर, वॉशिंगटन
संपादनः एमजी