2010 और साइंस की सरगर्मियां
२३ दिसम्बर २०१०पहली क्वांटम मशीनः इस साल तक मानव की बनाई सभी चीजें मैकेनिक्स के पारंपरिक सिद्धांतों के मुताबिक ही काम कर रही थीं. लेकिन मार्च 2010 में कुछ वैज्ञानिकों ने एक ऐसा उपकरण बनाया जो कुछ इस तरह काम करता है कि उसे सिर्फ क्वांटम मैकेनिक्स के जरिए ही समझा जा सकता है. क्वांटम मैकेनिक्स ऐसे नियम हैं जो मोलेक्यूल्स, एटम और सबएटम जैसी सूक्ष्म चीजों के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं.
यह उपकरण इतना छोटा है कि नंगी आंख से शायद ही दिखाई दे. इसका व्यास एक बाल के बराबर है. लेकिन मशहूर विज्ञान पत्रिका साइंस ने इसे 2010 की सबसे बड़ी खोज बताया है. यह उपकरण एटम या मोलेक्यूल की तरह काम करता है और हमेशा सक्रिय रहता है. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के भौतिकशास्त्री एंड्रयू क्लीलैंड और जॉन मार्टिंस एक क्वांटम के जरिए अपनी बनाई इस मशीन की ऊर्जा को उठाने और गिराने में कामयाब रहे. यह सिर्फ क्वांटम मैकेनिक्स में ही संभव है. इसे दुनिया की पहली क्वांटम मशीन कहा जा रहा है.
क्वांटम भौतिकी महान जर्मन वैज्ञानिक माक्स प्लांक की खोज का नतीजा है. खोज यह थी कि कोई वस्तु या पिंड ऊर्जा का सतत, अविरत उत्सर्जन नहीं करता, बल्कि ऊर्जा के छोटे-छोटे कणों या पैकेटों के रूप में रुक-रुक कर उसे छोड़ता है. ऊर्जा के छोटे-छोटे कणों-जैसे इन पैकेटों को क्वांटम कहते हैं.
पहली क्वांटम मशीन के बारे में साइंस के न्यूज राइटर एड्रिन छो कहते हैं, “बुनियादी तौर पर इससे क्वांटम मैकेनिक्स की नई संभावनाओं का द्वार खुला है. इससे व्यावहारिक स्तर पर कई नए प्रयोग किए जा सकते हैं जो प्रकाश, विद्युत धाराओं और गति पर क्वांटम नियंत्रण को प्रदर्शित कर सकते हैं. शायद किसी दिन हम क्वांटम मैकेनिक्स की सीमाओं और सच के बारे में अपनी समझ को भी परख पाएं.” सच के बारे में अब तक की समझ को चुनौती देने का अर्थ समझाते हुए छो कहते हैं कि शायद ऐसे प्रयोग हों जिनके जरिए सामान्य आंख से दिखने वाली वस्तुओं को एक समय में ही दो अलग अलग स्थानों पर रख पाना मुमकिन हो जाए. एटोमिक और सबएटोमिक कणों को मिलाकर ऐसा संभव हो सकता है. ये प्रयोग इस बात को समझने का माध्यम भी बन सकते हैं कि मनुष्य जितनी बड़ी वस्तु को एक समय में दो अलग अलग स्थानों पर रखना संभव अभी क्यों नहीं है.
सिन्थेटिक बायोलॉजीः बायोलॉजी और बायोटेक्नॉलजी में इस साल उस वक्त एक बड़ी कामयाब देखने को मिली जब वैज्ञानिकों ने एक सिन्थेटिक जीनोम तैयार कर लिया और इसके जरिए जीवाणु की पहचान को ही बदल दिया. डीएनए में मौजूद जीनों के अनुक्रम यानी जीनोम को इस तरह जीवाणु के डीएनए की जगह लगाया गया कि वह नए प्रोटीन तैयार करने लगा. यह ऐसी उपलब्धि हाथ लगी जिसके चलते अमेरिकी कांग्रेस में सिन्थेटिक बायोलॉजी पर बहस करानी पड़ गई. शोधकर्ता मान रहे हैं कि भविष्य में सिन्थेटिक जीनोम से जैव ईंधन, दवाएं और अन्य महत्वपूर्ण रसायन तैयार किए जा सकते हैं.
नीनडरटेल जीनोमः शोधकर्ताओं ने तीन ऐसी नीनडरटेल महिलाओं के जीनोम को क्रमबद्ध कर लिया है जो आज से 38 हजार साल से लेकर 44 हजार साल पहले किसी समय में क्रोएशिया में रहती थीं. टूटे फूटे क्षतिग्रस्त डीएनए को क्रमबद्ध करने के नए वैज्ञानिक तरीकों से वैज्ञानिक मौजूदा मानव के जीनोम और हमारे नीनडरटेल पूर्वजों के जीनोम की तुलना करने में कामयाब रहे.
एड्स की रोकथाम के लिएः इस साल एचआईवी की रोकथाम के लिए दो खास तरीके भी इजाद किए गए जो खासे कामयाब रहे. इनमें पहला नाम आता है एक ऐसे जेल का जिसे महिला की योनि में लगाया जा सकता है. इस जेल में एचआईवी रोधी दवा होती है जिससे महिलाओं में एचआईवी के संक्रमण को 39 फीसदी कम किया जा सकता है. वहीं ओरल प्री-एक्पोजर प्रोफीलैक्सिस नाम के दूसरे तरीके से पुरुषों और पुरुषों से शारीरिक संबंध बनाने वाले ट्रांसजेंडर लोगों में एचआईवी संक्रमण के 43.8 प्रतिशत कम मामले पाए गए.
एक्सोम का अनुक्रम/दुर्लभ बीमारी के जीनः जीनोम के सिर्फ एक्सोन को क्रमबद्ध करके शोधकर्ता ऐसे खास परिवर्तनों की पहचान करने में कामयाब रहे जिनकी वजह से कम से कम आधा दर्जन बीमारी होती हैं. ये शोधकर्ता ऐसी दुर्लभ बीमारियों पर काम कर रहे हैं जो सिर्फ एक खराब जीन के कारण होती हैं. एक्सोम जीनोम का वह हिस्सा है जो एक्सोन से बना है. एक्सोन न्यूक्लिक एडिस नाम के उन कणों का अनुक्रम है जो जीवन के लिए बेहद जरूरी हैं.
प्रोटीन के अणुओं की गतिः जब प्रोटीन बंद होते हैं तो उनमें बनने वाले चक्करों को कृत्रिम रूप से पैदा करना एक बहुत ही असाध्य काम रहा है. लेकिन अब शोधकर्ताओं ने दुनिया के सबसे तेज कंप्यूटरों में से एक की ही मदद लेकर इस काम को अंजाम देने की ठानी है. उन्होंने एक छोटे बंद होते प्रोटीन में अणुओं की गति का पता लगाया है. वह भी पिछली कोशिशों के मुकाबले 100 गुना ज्यादा समय तक वे इस गति को देखते रहे.
क्वांटम सिम्यूलेटरः भौतिक शास्त्रियों को जो भी प्रयोगशाला में दिखता है उसकी व्याख्या करने के लिए उन्होंने समीकरणों के आधार पर सिद्धांत तैयार किए. इन समीकरणों को हल करना लोहे के चने चबाना जैसा है. लेकिन इस साल शोधकर्ताओं ने क्वांटम सिम्यूलेटरों के जरिए एक शॉर्ट कट निकाला है. उन्होंने एक कृत्रिम क्रिस्टल तैयार किए हैं, जिसमें लेजर लाइट के स्पॉट अहम भूमिका निभाते हैं और फिर इलेक्ट्रॉन के लिए अणु प्रकाश स्टैंड में फंस जाते हैं. यह उपकरण संघन पदार्थों से जुड़ी भौतिकी की सैद्धांतिक समस्याओं से जल्द समाधान निकाल सकता है और फिर उनसे सुपरकंडक्टिविटी जैसी सैद्धांतिक समस्याएं भी हल हो सकती हैं.
नए जमाने की जोनोमिक्सः अनुक्रम की तेज और सस्ती तकनीकों के सहारे बड़े पैमाने पर प्राचीन और आधुनिक डीएनए नमूनों को पढ़ने के चलन को बढ़ावा मिल रहा है. मिसाल के तौर पर 1000 हजार जीनोम प्रोजेक्ट में बहुत से ऐसी जीनोम विविधताओं का पता चला है जो हर इंसान को एक दूसरे अलग बनाती हैं. इस तरह के दूसरे प्रोजेक्ट्स में जीनोम के काम करने के तरीके पर ज्यादा जानकारी जुटाने की कोशिश हो रही है.
आरएनए रिप्रोग्रामिंगः शारीरिक विकास की सुइयों को उल्टा घुमाने की कोशिश हो रही है. इस काम को सेल्स (कोशिकाओं) की रिप्रोग्रामिंग का नाम दिया जा रहा है जिसके तहत उनसे भ्रूण में एक साधारण स्टेम सेल की तरह व्यवहार कराया जा रहा है. यह अब बीमारी और विकास को समझने की मानक प्रायोगिक तकनीक बन गई है. इस साल शोधकर्ताओं ने इसे करने का सिन्थेटिक आरएनए तरीका निकाला. पिछली विधियों के मुकाबले नई तकनीक दोगुना तेज है और 100 प्रतिशत तक अधिक कार्यकुशल. साथ ही चिकित्सा संबंधी इस्तेमाल में यह कहीं ज्यादा सुरक्षित है.
रिपोर्टः अशोक कुमार
संपादनः ए जमाल