उत्तराखंड त्रासदी के बाद 170 लोगों की तलाश जारी
९ फ़रवरी २०२१बाढ़ को आए लगभग दो दिन बीत चुके हैं लेकिन सेना, अर्धसैनिक बल और आपदा प्रबंधन बल के जवान अभी भी लापता लोगों को खोजने में लगे हुए हैं. 170 लापता लोगों में अधिकतर श्रमिक हैं जो इलाके की दो बिजली परियोजनाओं में काम कर रहे थे. इनमें तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना एनटीपीसी की है और ऋषिगंगा परियोजना निजी है.
राज्य के इमरजेंसी कंट्रोल रूम से मिली जानकारी के मुताबिक दोनों स्थलों से अभी तक 26 लाशें मिली हैं. आगे का बचाव कार्य एनटीपीसी की परियोजना के आस पास केंद्रित है, जहां 1900 मीटर लंबी एक सुरंग में कम से कम 35 लोगों के फंसे होने की आशंका है. बाढ़ का पानी सुरंग के अंदर घुस गया था और फिर बाढ़ के साथ आए मलबे ने सुरंगे के मुंह को बंद कर दिया था.
परियोजना पर काम कर रहे लोगों के अलावा वहां बसे रैनी गांव के कई निवासी भी बाढ़ में बह गए थे. वो भी अभी तक लापता हैं. संभव है कि उनमें से भी कुछ लोग इसी सुरंग में फंसे हों. बाढ़ में इलाके के कई पुल भी टूट गए थे जिसकी वजह से कुछ गांवों से संपर्क टूट गया था. प्रशासन उन गांवों तक राहत सामग्री पहुंचाने में लगा हुआ है. वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी ने इलाके से एक वीडियो ट्वीट कर बताया कि ऐसे इलाकों में सेना और एजेंसियों के जवान मौजूद हैं.
बाढ़ का कारण कुछ और भी हो सकता है
इसी के साथ बाढ़ के अचानक आने के कारणों के बारे में भी अध्ययन चल रहा है. वैज्ञानिकों की टीमें घटना स्थल भेजी जा चुकी हैं लेकिन उनके निष्कर्ष गहन अध्ययन के बाद ही सामने आएंगे. तब तक अलग अलग सैटलाइटों से प्राप्त तस्वीरों के आधार पर स्थिति को समझने की कोशिश की जा रही है.
पहले अनुमान लगाया जा रहा है था कि बाढ़ नंदा देवी ग्लेशियर में किसी बड़ी झील के प्राकृतिक बांध के टूटने की वजह से आई होगी, जिसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लो (जीएलओएफ) कहा जाता है. लेकिन ताजा सैटलाइट तस्वीरें दिखा रही हैं कि घटना के दिन ही रैनी गांव के पास एक पहाड़ से ताजा बर्फ पिघल कर नीचे की तरफ गिरी थी.
अनुमान लगाया जा रहा है कि यही गिरती हुई बर्फ अवलांच यानी बर्फ एक बड़े ढेर में बदल गई हो और 30-40 लाख क्यूबिक मीटर पानी लिए नीचे की नदियों में गिर गई हो. सही नतीजा वैज्ञानिक अध्ययन पूरा होने के बाद ही सामने आएगा.
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