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उत्तराखंड की ईको टूरिज्म पॉलिसी पर उठ रहे हैं सवाल

हृदयेश जोशी
२५ अगस्त २०२०

सरकार के मुताबिक नई ईको टूरिज्म नीति पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय लोगों को रोजगार देगी लेकिन जानकार कहते हैं कि इस वर्तमान स्वरूप में यह नीति पर्यावरण और वन अधिकारों के खिलाफ है.

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Indien Dorf in Uttarakhands Stadtteil Champawat
तस्वीर: Onkar Singh Janoti

उत्तराखंड सरकार ने राज्य में पर्यटन बढ़ाने के लिए नई ईको टूरिज्म पॉलिसी का एक खाका तैयार किया है. इस नीति के मुताबिक "पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त सेफगार्ड” अपनाते हुए "जैव-विविधता को बचाने और सामाजिक-आर्थिक विकास” बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है. डीडब्लू ने इस नीति के मसौदे का अध्ययन किया और सरकार में बैठे मंत्रियों के साथ-साथ राज्य के वन अधिकारियों और पॉलिसी एक्सपर्ट्स से बात की. जहां सरकार कहती है कि इस नीति के लागू होने से उत्तराखंड से हो रहा पलायन रुकेगा, वहीं दूसरी ओर वन अधिकारी और विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्तमान स्वरूप  में यह नीति कई मौजूदा नियम- कानूनों से मेल नहीं खाती और जंगल में रह रहे लोगों के वन-अधिकारों का हनन करेगी.

क्या कहती है इको-पर्यटन नीति?

उत्तराखंड के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का आधे से अधिक जंगल है और पहाड़ी जिलों का कुल 65% वनभूमि है. राज्य सरकार के मुताबिक "उत्तराखंड ईको टूरिज्म पॉलिसी-2020” विशेष रूप से पहाड़ी जिलों के ग्रामीण हिस्सों को विकसित करने के लिए बनाई गई है. इस नीति के ड्राफ्ट में लिखा है कि योजना में "स्थानीय लोगों की भागेदारी का रोल प्रमुख रहेगा, जिससे पर्यावरण के साथ समन्वय करते हुए उन्हें रोजगार मिलेगा और अधिक खुशहाली सुनिश्चित होगी. इस तरह पहाड़ी जिलों के ग्रामीण इलाकों से लोगों का पलायन रुकेगा और जंगलों के संरक्षण के लिए सीधे आमदनी होगी.”

इस नीति के तहत सरकार जंगलों में ट्रैकिंग, नेचर वॉक, बर्ड वॉचिंग और वन्य जीव फोटोग्राफी को बढ़ावा देगी. उत्तराखंड के मेलों और उत्सवों को बढ़ावा दिया जाएगा. पर्यटकों को प्रकृति के करीब कैंपिंग कराने के लिए होम-स्टे और इको-लॉज में ठहराया जाएगा. वाहनों में जंगल सफारी के साथ हाथी की सैर और चुनी हुई जगहों पर नाइट कैम्पिंग होगी.

Indien Wälder in Uttarakhand
उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों का 65% से अधिक इलाका जंगल है और वहां अपार वन सम्पदा है.तस्वीर: DW/H. Joshi

पर्यटन उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में 3.17 करोड़ लोग पर्यटन के लिए राज्य में आए जबकि 2017 में कुल 3.44 करोड़ पर्यटक उत्तराखंड में आए. राज्य के जीडीपी में 50% योगदान पर्यटन का ही है. ऐसे में इको-टूरिज्म नीति आर्थिक दृष्टि से काफी फायदेमंद हो सकती है. खासतौर से तब, जबकि राज्य में वनस्पति और जंतुओं की कई विरली प्रजातियों का भंडार है.

इस नीति का मसौदा भी कहता है कि राज्य में पेड़-पौंधों की कुल 4048 प्रजातियां हैं, जिनमें से 116 ऐसी हैं जो सिर्फ इसी राज्य में पाई जाती हैं. डेढ़ सौ से अधिक प्रजातियां ऐसी हैं जिनके अस्तित्व को खतरा है. इसी तरह 102 स्तनधारी और 623 पक्षियों की प्रजातियां इस राज्य में पाई जाती हैं. मछलियों की कुल 124 प्रजातियां और सरीसृप की कुल 69 प्रजातियां हैं. स्नो लेपर्ड, मस्क डियर, बाघ, तेंदुए और हिमालयी मोनाल के साथ कई ऐसे जंतु यहां पाए जाते हैं जिन पर खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में इको-टूरिज्म के लिए राज्य में पर्याप्त संभावनाएं हैं.

जानकारों को क्या है आपत्ति

उत्तराखंड सरकार का कहना है कि यह नीति सिक्किम और हिमाचल जैसे राज्यों की सफल ईको टूरिज्म नीति की तर्ज पर बनाई गई है. राज्य के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज नई इको-टूरिज्म नीति को पर्यावरण के साथ समन्वय बिठाने वाला मानते हैं. उनका दावा है कि इससे गांवों से पलायन रुकेगा. सतपाल महाराज के मुताबिक, "आज लोग भीड़भाड़ से दूर, एकांत में रहना चाहते हैं. ऐसा कोई मुल्क नहीं है जहां जंगल के भीतर टूरिस्ट एक्टिविटी न होती हो और कैंपिंग, ट्रैंकिग और सैर के लिए लोग जंगल में न जाते हों. तो अगर बाकी देशों में यह सब होता है तो हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं हो?”

उधर जानकारों और वन अधिकारियों का कहना है कि वर्तमान स्वरूप में इस नीति को लागू करने की ताकत वन विभाग की जगह पर्यटन विभाग के अधिकारियों के पास होगी. इससे जंगल के संवेदनशील इलाकों में "गैरजिम्मेदाराना” तरीके से "निर्माण की गतिविधियां” बढ़ने का डर है.

Indien Wälder in Uttarakhand
उत्तराखंड के गांवों से पलायन एक विराट समस्या है. सरकार का कहना है कि नई इको टूरिज्म नीति गांवों को इस तरह खाली होने से रोकेगी?तस्वीर: DW/H. Joshi

भारतीय वन सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डीडब्लू से कहा, "इको टूरिज्म का पहला मकसद वन संरक्षण के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना होता है. इसके अलावा स्थानीय लोगों के लिए इससे रोजगार पैदा होना चाहिए और जरूरी यह भी है कि इस एक्टिविटी का न्यूनतम प्रभाव पर्यावरण पर पड़ना चाहिए. इसलिए यह आवश्यक है कि इस नीति को लागू करने का जिम्मा वन विभाग के कर्मचारियों के हाथ में हो." वे बताते हैं कि केंद्र सरकार की इको टूरिज्म नीति में राज्य स्तर पर पीसीसीएफ और चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन और जिला डीएफओ को कमान दी गई है. इसी तरह की व्यवस्था सिक्किम और हिमाचल की पॉलिसी में भी है लेकिन उत्तराखंड की पॉलिसी में राज्य और जिला दोनों ही स्तर पर कमान वन विभाग के अधिकारियों से हटाकर टूरिज्म विभाग को दे दी गई है.

सतपाल महाराज इन अंदेशों को बेवजह करार देते हैं. महाराज के मुताबिक जंगल में सारा काम वन विभाग की सहमति से होता है और वही यह काम करेगा, "जंगल में कंस्ट्रक्शन का कोई मतलब नहीं है. आज आप देखिए कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के डाक-बंगले जंगल में हैं या नहीं हैं? (यह निर्माण) फॉरेस्ट ही करता है.  जंगल में जो रास्ते हैं उनमें टॉयलेट बनेंगे और उनका इस्तेमाल लोग कर सकते हैं. ये सब फॉरेस्ट ही बनाएगा. हम चाहते हैं कैंपिंग सिस्टम को डेवलप करें. ये सब कुछ फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ही बनाता है.”

वन अधिकारों की अनदेखी

महत्वपूर्ण यह भी है कि केंद्र सरकार की गाइडलाइंस के मुताबिक इको टूरिज्म एक गैर वानिकी गतिविधि है और इसके लिए केंद्र सरकार से वन संरक्षण कानून-1980 के तहत अनुमति चाहिए होती है. यह देखना दिलचस्प रहेगा कि इसे कैसे लागू किया जाता है. उधर सवाल यह भी है कि जब सरकार ने वन अधिकारों को अब तक ठीक से लागू नहीं किया, तो वह लोगों को इस इको पर्यटन मुहिम में कितनी भागेदारी देगी.

वन अधिकारों की मुहिम में कई सालों से जुटे सामाजिक कार्यकर्ता शंकर गोपालाकृष्णन कहते हैं, "सरकार ने इस इको-टूरिज्म नीति में स्थानीय लोगों को रोजगार देने और सामाजिक-आर्थिक खुशहाली की जो बात की है, वह सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है लेकिन ऐसा नहीं लगता कि इसमें फैसले लेने की ताकत स्थानीय लोगों के पास होगी. यह इको टूरिज्म नहीं, बल्कि सामान्य पर्यटन ही होगा क्योंकि इसमें सारी ताकत अधिकारियों के हाथ में है.”

गोपालाकृष्णन कहते हैं कि इको टूरिज्म स्वागत योग्य कदम है लेकिन सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि सरकार की नीयत कितना साफ है. गोपालाकृष्णन के मुताबिक, "इस नीति का वर्तमान ड्राफ्ट देखते हुए लगता है कि इस इको टूरिज्म में पंचायतों और स्थानीय लोगों की भागेदारी नाममात्र की ही रहेगी. अगर सरकार इतनी गंभीर है, तो वह जंगलों से भरपूर इस राज्यों में वन अधिकारों को कड़ाई से लागू क्यों नहीं करती?”

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