एक तरफ मोटापा दूसरी तरफ कुपोषण
१६ दिसम्बर २०१९मेडिकल जर्नल द लांसेट में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 130 देशों के एक तिहाई से ज्यादा लोगों पर यह संकट मंडरा रहा है. ज्यादा चिंता की बात यह है कि एक ही घर में जरूरत से ज्यादा मोटे और कुपोषित सदस्य दोनों मौजूद हैं. इन दोनों ही अवस्थाओं में समय से पहले मौत का खतरा रहता है. इसके साथ ही इसकी मार देश की स्वास्थ्य सेवाओं और श्रम की उत्पादकता दोनों पर पड़ती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के साथ तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मोटे लोगों की समस्या अब सिर्फ अमीर देशों में ही नहीं है और ना ही कुपोषित लोग सिर्फ गरीब देशों में हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, "14.9 करोड़ से ज्यादा बच्चों का सही ढंग से विकास नहीं हुआ है, बचपन में वजन बढ़ना और मोटापे की समस्या दुनिया में लगभग हर जगह है और अनुचित खानपान दुनिया भर के हर पांच मौत में एक के लिए जिम्मेदार है."
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है, "अगर कदम नहीं उठाए गए तो इसके कारण लोगों और समाज के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण के विकास में आने वाले कई दशकों तक बाधा पड़ेगी." रिपोर्ट से पता चलता है कि गरीब देशों में यह समस्या सबसे ज्यादा बड़ी है. यहां भूख की समस्या तो पहले से ही थी अब मोटे लोगों की बढ़ती तादाद एक और समस्या बन कर सामने आ रही है. रिपोर्ट में सस्ते, भूख मिटाने वाले नमक, चीन और वसा से भरे भोजन के साथ ही काम पर, घर में या आने जाने के दौरान शारीरिक श्रम के खत्म या कम होने की ओर संकेत किया गया है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक कुपोषण का दोहरा खतरा यानी डीबीएम कई देशों में 35 फीसदी घरों को अपनी चपेट में ले चुका है. अजरबैजान, ग्वाटेमाला, मिस्र, कोमोरोस, साओ टोमे और प्रिंसिप जैसे देशों में यह सबसे ज्यादा है. लगभग सभी देशों में बच्चों के विकास में कमी दिखने के साथ ही महिलाओं का वजन बढ़ने की बात सामने आई है.
रिपोर्ट में इसके लिए "पोषण और खान पान के सिस्टम में तेजी से बदलाव" को जिम्मेदार माना गया है. इसके साथ ही प्रसंस्कृत भोजन और उसके असर से बच पाना भी मुश्किल होता जा रहा है. एक उदाहरण देखिए 355 एमएल की मीठे पेय की एक बोतल गटकने के बाद कम से कम 2.5 किलोमीटर टहलना या फिर 15 मिनट दौड़ना जरूरी है. लेकिन रोजमर्रा के काम में इसके लिए फुर्सत कम ही लोगों के पास है.
लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों में पैक किए हुए या प्रसंस्कृत भोजन की बिक्री 1990 में महज 10 फीसदी थी जो अगले 10 सालों में ही बढ़ कर 60 फीसदी हो गई. लांसेट का कहना है कि इस चलन को बदलने के लिए "बड़े सामाजिक बदलाव" करने होंगे. सेहतमंद भोजन के लिए सब्सिडी बढ़ाने के साथ ही स्कूलों में पोषक भोजन और खाने के बारे में लोगों को शिक्षित करने जैसे कदम उठाने की जरूरत है. इसके साथ ही नवजात बच्चों को मां के दूध और इस जैसे पोषक विकल्पों के लिए जागरूक करना होगा.
एनआर/आरपी (एएफपी)
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