दलाई लामा का उत्तराधिकारी खोजने में क्या होगी भारत की भूमिका
५ जुलाई २०२१तिब्बत के 14वें दलाई लामा के 86वें जन्म दिवस से पहले कोरोना महामारी का हवाला देते हुए तिब्बत की निष्कासित सरकार की कैबिनेट 'काशांग' ने कहा है कि इस साल मैक्लॉयडगंज स्थित दलाई लामा मंदिर में किसी कार्यक्रम का आयोजन नहीं होगा. इतना ही नहीं लोगों को किसी भी तरह का आयोजन न करने की सलाह दी गई है. विडंबना है कि एक ओर कोरोना के कारण दलाई लामा के जन्मदिन पर हर तरह के कार्यक्रम पर रोक लगाई जा रही है तो दूसरी ओर कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बाद लॉकडाउन खुलते ही पूरे भारत से बड़ी संख्या में पर्यटक हिमाचल पहुंच गए हैं और वहां जश्न का माहौल है.
पिछले साल भी कोरोना लॉकडाउन के चलते दलाई लामा के जन्मदिन का आयोजन नहीं किया गया था. हालांकि तिब्बत मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार विजय क्रांति इसे कोई खास बात नहीं मानते. उनका कहना है, "तिब्बत मुद्दे में दलाई लामा का स्वास्थ्य बहुत गंभीर मसला है. उसे लेकर कोई खतरा मोल नहीं लिया जा सकता. कार्यक्रम टाले जाने की यह सबसे बड़ी वजह है." भारत में रहने वाला तिब्बती समुदाय 1 लाख से कुछ कम लोगों का छोटा सा समुदाय है. वह भी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहता है. विजय क्रांति कार्यक्रम रद्द किए जाने के पीछे सुरक्षा की चिंता को ही वास्तविक वजह मानते हैं. लेकिन तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट में फेलो यशी दावा कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दलाई लामा को सार्वजनिक तौर पर जन्मदिन की बधाई नहीं देते. तिब्बतियों को मिलने वाली आर्थिक मदद कम कर दी गई है. इससे पता चलता है कि वर्तमान सरकार के लिए तिब्बत मुद्दे की कितनी प्रासंगिकता है."
कमजोर पड़ रही है भारत की तिब्बत नीति
जानकार यह भी मान रहे हैं कि तिब्बत को लेकर भारत का रुख ढीला पड़ रहा है. यशी दावा कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले शपथ ग्रहण समारोह में तिब्बती सरकार के प्रमुख लोबसांग सांगेय को आमंत्रित करने के बाद से तिब्बत नीति पर चीन को कोई मजबूत संदेश नहीं दिया गया है. पिछले साल सीक्रेट अर्धसैनिक बल स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (FSS) के तिब्बती कमांडो न्यिमा तेनजिन के शहीद होने के बाद बीजेपी नेता राम माधव उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे. इस कदम को फिर कड़ी होती भारत की तिब्बत नीति के तौर पर देखा गया था लेकिन थोड़ी ही देर बाद राम माधव ने इससे जुड़े अपने ट्वीट को डिलीट कर दिया था."
यशी दावा कहते हैं, "तिब्बत मसले को लेकर भारत का तीन बातों पर फोकस होना चाहिए. पहली, अगर भारत, चीन की 'वन चाइना' नीति को माने तो चीन भी भारत की संप्रभुता का सम्मान करे और अरुणाचल और लद्दाख के हिस्सों में घुसपैठ न करे. लेकिन ऐसा दिखता नहीं. दूसरी, दलाई लामा के उत्तराधिकार की लड़ाई में भारत, चीनी प्रोपेगेंडा का मुकाबला करे. वरना चीन कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति समर्पण रखने वाले किसी फर्जी दलाई लामा को लाकर पद पर बिठा देगा. और अपने कर्ज तले दबे श्रीलंका जैसे बौद्ध देशों से उसे मान्यता दिलाकर, भारत में निर्वासित दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मजबूत विकल्प के तौर पर खड़ा कर देगा. तीसरी बात यह कि चीन के ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों पर लगातार बांध बनाने का भारत खुलकर विरोध करे. वरना खेती के लिए इन नदियों पर निर्भर भारतीयों को इससे भारी नुकसान होगा."
तिब्बत को लेकर मुखर होने का समय
दलाई लामा की बढ़ती उम्र के साथ उनके उत्तराधिकार का मसला और गंभीर हो गया है. चीन अपनी ओर से किसी ऐसे व्यक्ति को दलाई लामा के तौर पर स्थापित करने की कोशिश में है, जिसका समर्पण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति हो लेकिन अमेरिका ने पिछले साल तिब्बतन पॉलिसी एंड सपोर्ट एक्ट पास कर साफ संदेश दे दिया है वह चीन के ऐसे किसी भी कदम के खिलाफ खड़ा है. मार्च, 2021 में बाइडेन प्रशासन ने भी इस अमेरिकी प्रतिबद्धता को दोहराया है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में चीनी सरकार का कोई हाथ नहीं होना चाहिए. अमेरिका भले ही खुलकर इस मामले पर चीन को चुनौती दे रहा हो लेकिन इस मामले में भारत की प्रतिक्रिया कुछ खास नहीं रही है.
पत्रकार विजय क्रांति कहते हैं, "प्रधानमंत्री मोदी का व्यक्तित्व करिश्माई है और वे अचानक से ऐसे फैसले लेते हैं, जो निर्णायक साबित होते हैं. ऐसे में पर्दे के पीछे बहुत कुछ ऐसा चल रहा है, जो तिब्बत के मुद्दे से भी जुड़ा है. फिलहाल वे अपने प्लान को सार्वजनिक नहीं कर रहे क्योंकि इससे चीन को तैयारी का मौका मिल जाएगा. एलएसी के पास बड़ी संख्या में पास हो चुकी और बन रही सड़कें प्रधानमंत्री की ओर से चीन को भेजे जा रहे कड़े संदेश का सबूत हैं."
लेकिन यशी दावा कहते हैं, "अगर ऐसे गंभीर प्रयास चल रहे हैं तो खुलकर उनका प्रदर्शन करने का समय आ चुका है. भारत को बोलना ही होगा वरना चीन जो पहले से ही बौद्ध धर्म को अपनी सॉफ्ट पावर के तौर पर पेश करने की कोशिश करता रहा है, तिब्बती बौद्ध अनुयायियों पर जबरदस्त अत्याचार करने के बावजूद अपने एजेंडे में सफल हो जाएगा."
चीन अपने दलाई लामा को नहीं दिलवा सकेगा धार्मिक मान्यता
तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा सबसे ज्यादा सम्मानजनक और मान्य धार्मिक नेता होते हैं. फिलहाल दलाई लामा के उत्तराधिकार का मसला अनिश्चित है. दरअसल साल 1950 में कम्युनिस्ट चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. ऐतिहासिक साक्ष्यों के विरुद्ध चीन का दावा था कि तिब्बत हमेशा से चीन के अंतर्गत रहा है. चीन के भारी दबाव के बीच साल 1959 में दलाई लामा चीन छोड़कर भारत भाग आए थे. तबसे वह यहीं पर हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं. दलाई लामा के बाद पंचेन लामा को तिब्बत में दूसरा सबसे प्रमुख धार्मिक गुरु माना जाता है. साल 1995 में दलाई लामा की ओर से चुने गए 10वें पंचेन लामा का भी चीन ने 6 साल की उम्र में अपहरण कर लिया था. जिसके बाद वहां विद्रोह भी हुआ था.
इस घटनाक्रम के बीच चीन ने एक चीनी सुरक्षा अधिकारी के बेटे को पंचेन लामा के पद पर बिठा दिया था. पंचेन लामा और दलाई लामा का एक दूसरे का उत्तराधिकारी चुनने में अहम रोल होता है. चीन ताकत के दम पर दलाई लामा भी चुनना चाहता है लेकिन तिब्बत के बौद्धों का इस चयन में शामिल होना जरूरी है. दलाई लामा भी अगले दलाई लामा के चयन को लेकर कई बयान दे चुके हैं. जिससे पहले ही तय हो चुका है कि चीन की ओर से नियुक्त किसी दलाई लामा की धार्मिक स्वीकार्यता नहीं होगी. हालांकि चीन अपने चुने दलाई लामा को कई देशों से राजनीतिक मान्यता दिलवाने का प्रयास जरूर करेगा.
दलाई लामा के उत्तराधिकार के कई विकल्प
अब तक दलाई लामा के बयानों में पांच बातें सामने आई हैं. पहली, यह हो सकता है कि 14वें दलाई लामा के बाद यह पद खाली रहे. दलाई लामा पद को खत्म करने की बात कह चुके हैं. दूसरी, दलाई लामा ने कहा है तिब्बती लोग फैसला करें कि उन्हें इस पद पर कोई चाहिए या नहीं. तीसरी, दलाई लामा चार साल बाद यानी 90 साल का होने के बाद तय करेंगे कि वे फिर से जन्म लेंगे या नहीं. और चौथी, दलाई लामा अपने अंत से पहले ही अगले दलाई लामा को चुन सकते हैं. ऐसे हुआ तो दलाई लामा अपनी आध्यात्मिक शक्तियां उत्तराधिकारी को स्वयं जीवित रहते दे देंगे. पांचवी, अगर दलाई लामा की मौत तिब्बत से बाहर होती है और पंचेन लामा गायब रहते हैं तो उनका पुनर्जन्म तिब्बत से बाहर भी हो सकता है. बहुत संभावना है कि ऐसा भारत में हो.
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ऐसा होने पर पंचेन लामा की सहायता से दलाई लामा के पुनर्जन्म को तिब्बत में ढूंढकर गद्दी पर बैठाने की कोशिश करेगा. इतना ही नहीं दलाई लामा ने एक औरत के रूप में भी पुनर्जन्म हो सकने की बात भी कही है. हालांकि उन्होंने इस बात में यह भी जोड़ा था कि ऐसा हुआ तो वह एक बहुत सुंदर औरत होगी, जिसके बाद उनकी इस टिप्पणी की काफी आलोचना हुई थी और उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी.
बहरहाल यह तय है कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनने में भारत का रोल निर्णायक होगा. पत्रकार विजय क्रांति मानते हैं कि पूर्वी लद्दाख में हुई भारत-चीन सेनाओं की झड़प के बाद चीन को भारतीय शक्ति का अंदाजा हो चुका है. हालांकि यह भी तय है कि अगर भारत, अमेरिका की तरह तिब्बत मुद्दे और दलाई लामा के उत्तराधिकार पर अपना रुख स्पष्ट नहीं करता तो चीन के सामने इसे उसकी कमजोरी के तौर पर ही आंका जाएगा. दलाई लामा की बढ़ती उम्र भारत को अपनी तिब्बत नीति को लेकर स्पष्ट होने का इशारा कर रही है.