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बृजभूषण शरण सिंह को कौन बचा रहा है- कानून या राजनीति

समीरात्मज मिश्र
१० मई २०२३

सांसद और कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने पॉक्सो और अन्य धाराओं में एफआईआर तो दर्ज कर ली, लेकिन दो हफ्ते बीतने के बाद भी एफआईआर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. पुलिस ने पूछताछ भी नहीं की है.

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सांसद बृजभूषण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों ने यौन शोषण के आरोप लगाये हैं
बृजभूषण सिंह के खिलाफ पुलिस कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रही हैतस्वीर: AFP/Getty Images

बृजभूषण सिंह पर दो नाबालिग समेत सात महिला पहलवानों ने यौन शोषण का केस दर्ज कराया है. एफआईआर में पॉक्सो जैसी गंभीर धाराएं भी हैं, जिनमें अभियुक्त को तत्काल गिरफ्तार किया जाता है. एफआईआर दर्ज होने के करीब दो हफ्ते बाद भी दिल्ली पुलिस बृजभूषण शरण सिंह को ना तो गिरफ्तार कर पाई है और ना ही गिरफ्तारी की कोई कोशिश की है. यहां तक कि अब तक उनसे पूछताछ भी नहीं हुई है. बृजभूषण शरण सिंह मीडिया में इंटरव्यू दे रहे हैं और पहलवानों पर ही दूसरे लोगों और विपक्षी राजनीतिक दलों के हाथों में खेलने का आरोप लगा रहे हैं.

बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दोनों एफआईआर नई दिल्ली के कनॉट प्लेस थाने में दर्ज हुई हैं. एफआईआर पर कार्रवाई को लेकर थाने से कोई जानकारी नहीं मिल सकी. जब उच्चाधिकारियों से भी इस बारे में जानने की कोशिश की गई तो सिर्फ यही बताया गया कि कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई की जा रही है. हर अधिकारी इस बारे में आधिकारिक रूप से बात करने से साफ मना कर दे रहा है.

धरने पर बैठी पहलवानों की मुश्किलें

इस बीच, दिल्ली राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है. इस नोटिस के जरिए दिल्ली पुलिस से पूछा गया है कि दो-दो एफआईआर दर्ज होने के बावजूद दिल्ली पुलिस ने बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह को आखिर अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया है, जबकि वो पॉक्सो जैसे संवेदनशील मामले में अभियुक्त हैं.

बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
धरने पर बैठे पहलवानों के समर्थन में किसान और दूसरे लोग भी आ रहे हैंतस्वीर: Vishal Bhatnagar/NurPhoto/picture alliance

पॉक्सो मामलों में तुरंत होती है गिरफ्तारी

कानूनी जानकारों का कहना है कि पॉक्सो एक्ट में गिरफ्तारी तुरंत हो जाती है जांच बाद में होती रहती है. दिल्ली पुलिस इस बारे में कुछ भी नहीं बताना चाहती कि वो आखिर बृजभूषण शरण सिंह को क्यों नहीं गिरफ्तार कर रही है.

यूपी में डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी डॉक्टर वीएन राय कहते हैं, "पॉक्सो बहुत गंभीर मामला है. इसमें गिरफ्तारी पहले हो जाती है इनवेस्टीगेशन बाद में होती रहती है. यहां तो स्पष्ट है कि आरोप लगा रहे हैं और आरोप लगाने वाले कोई एक नहीं हैं बल्कि कई नामी खिलाड़ी हैं जिनमें दो नाबालिग भी हैं."

कुछ लोगों का कहना है कि राजनीतिक दबाव के कारण ही पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है. राय कहते हैं, "सीधे तौर पर पता चल रहा है कि पुलिस के ऊपर राजनीतिक दबाव है गिरफ्तार नहीं करने के लिए. पर कितना भी दबाव हो, अभियुक्त कितना भी ताकतवर हो, जब ओपिनियन बिल्ड अप होने लगता है और कानून का शिकंजा कसने लगता है तो फिर बचाना मुश्किल हो जाएगा. ऐसे मामलों में सरकार की छवि भी बहुत खराब होती है.”

सुबह कसरत, दिन में प्रदर्शनः पहलवानों का धरना जारी

बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज हुई हैं. एक यौन उत्पीड़न के मामले में IPC की धारा 354, 354(A), 354(D) के तहत और दूसरी एफआईआर पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज हुई है जो कि गैर-जमानती है. इस मामले में दोषी पाए जाने पर कम से कम सात साल और अधिकतम उम्र कैद तक की सजा हो सकती है.

नाबालिग से होने वाले यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए ही पॉक्सो एक्ट बना है. यह कानून काफी सख्त है और इसमें अभियुक्त को जमानत नहीं दी जाती है

सुप्रीम कोर्ट के दखल देने के बाद एफआईआर दर्ज हुई
दो हफ्ते से धरने पर बैठी हैं महिला पहलवानतस्वीर: MONEY SHARMA/AFP

पहले गिरफ्तारी या पहले जांच 

कानूनी जानकारों का कहना है कि पुलिस गिरफ्तारी से पहले आरोपों की सत्यता की जांच कर सकती है और प्राथमिक जांच में पुलिस को आरोप सही लगता है तभी गिरफ्तार करेगी अन्यथा नहीं. दरअसल, यह जांच अधिकारी के विवेक पर निर्भर करता है कि वो अभियुक्त को गिरफ्तार करे या ना करे. गंभीर अपराधों के मामलों में आमतौर पर अभियुक्त की गिरफ्तारी होती है ताकि वो भाग ना सके या फिर जांच को प्रभावित ना कर सके.

डॉक्टर वीएन राय भी कहते हैं कि यह ऐसा मामला है जिसमें पुलिस को इतनी सहूलियत नहीं मिल सकती है. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "थ्योरिटकली तो ठीक कर रही है, बिना इनवेस्टीगेशन के कैसे गिरफ्तार करें. जांच अधिकारी कह सकता है कि आरोप साबित नहीं हो रहे थे, लेकिन प्रैक्टिकली तो गिरफ्तार किया जाता है. यह सामान्य मामलों की तरह नहीं है, यहां गंभीर आरोप लग रहे हैं.”

बृजभूषण सिंह का राजनीतिक रसूख

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के रहने वाले बृजभूषण शरण सिंह की गिनती यूपी के दबंग नेताओं में होती है और पिछले तीन दशक से वो राजनीति में सक्रिय हैं. फिलहाल वो कैसरगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से बीजेपी के सांसद हैं और इस सीट का वो अब तक छह बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वो समाजवादी पार्टी से भी सांसद रहे हैं. उनके खिलाफ पहले भी दर्जनों मुकदमे दर्ज हो चुके हैं जिनमें कई मामले गंभीर धाराओं में भी दर्ज हैं. बृजभूषण शरण सिंह साल 2011 से ही लगातार भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष भी हैं.

यौन शोषण के आरोप और एफआईआर के बावजूद ना तो उनकी गिरफ्तारी हुई है और ना ही उन्होंने खुद इस्तीफा दिया. बृजभूषण शरण सिंह ये तक कह चुके हैं कि वो इस्तीफा तभी देंगे जब उनसे खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहेंगे. उनका कहना है कि इस्तीफा देने का मतलब होगा कि उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को स्वीकार कर लिया है.

बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के आरोप
महिला पहलवानों के समर्थ में किसानों का मोर्चातस्वीर: Narinder Nanu/AFP

इतनी गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज होने के बावजूद कोई कार्रवाई ना होने के पीछे कारण उनके राजनीतिक रसूख को ही बताया जा रहा है. लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं साफ है कि उन्हें बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से पूरी तरह से संरक्षण मिला हुआ है लेकिन यह भी सच है कि इतने गंभीर आरोपों के बाद गिरफ्तारी से बच पाना मुश्किल ही है.

मिश्र कहते हैं, "यौन उत्पीड़न का मतलब सीमित अर्थ में नहीं लिया जा सकता. जो आरोप हैं वो बेहद गंभीर हैं और यह भी स्पष्ट है कि पुलिस कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है . पर यह भी सही है कि पुलिस ज्यादा दिन कार्रवाई से बच भी नहीं पाएगी. राजनीति में बहुत से कॉर्नर से बचाने का सिलसिला है, वही इस्तेमाल हो रहा है लेकिन बच पाना मुश्किल है.”

लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं कि ये बीजेपी की उसी कार्यशैली का प्रभाव है कि ‘यहां इस्तीफे नहीं होते.' उनके मुताबिक, "इतना गंभीर मामला था लेकिन देखिए, अजय मिश्र टेनी का इस्तीफा नहीं हुआ. इनका भी नहीं हो रहा है. दरअसल, नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की परंपरा जैसे बीजेपी में ही ही नहीं."

इलाके में दबदबा

बृजभूषण अवध के एक क्षेत्र के दबंग नेता हैं. कैसरगंज, श्रावस्ती, बहराइच इस इलाके की तीन लोकसभा और 12 विधानसभा की सीटों पर उनका अच्छा खासा दखल है. आज से नहीं बल्कि नब्बे के दशक से ही. स्थानीय लोग बताते हैं कि पंडित सिंह एक नेता थे जो थोड़ा बहुत चैलेंज करते थे, पर वो अब रहे नहीं. तो ब्रजभूषण सिंह के नाराज होने का मतलब इन इलाकों में पार्टी को डैमेज करना होगा. दूसरे इस इलाके के रजवाड़ों और ठाकुरों की मजबूत पट्टी योगी के साथ लामबंद है.

पहलवान बोले, पीछे हटने का सवाल ही नहीं

सिन्हा का कहना है, "यह अलग बात है कि योगी और ब्रजभूषण के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे हैं फिर भी बीजेपी बृजभूषण को छेड़ नहीं पा रही है तो यही कारण है. उन्हें प्रोटेक्शन राज्य के बजाय केंद्र से ज्यादा मिल रहा है.”

हालांकि कुछ लोग बृजभूषण शरण सिंह के इतने व्यापक राजनीतिक प्रभाव को नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि उनका प्रभाव अपने संसदीय क्षेत्र के बाहर बहुत ज्यादा नहीं है. यहां राजनीति के कई एंगल हैं जो बृजभूषण के खिलाफ कार्रवाई में जल्दबाजी से रोक रहे हैं और एफआईआर के बावजूद उनकी गिरफ्तारी को टालने का दबाव बना रहे हैं.

योगेश मिश्र कहते हैं, "बीजेपी के सामने दिक्कत यह है कि वो बृजभूषण पर राजनीतिक कार्रवाई करके यह नहीं साबित करना चाहती कि ऐसा उसने कांग्रेस के दबाव में किया है. बल्कि वो इस रास्ते की तलाश में है कि कार्रवाई भी हो जाए और कोई दूसरी राजनीतिक पार्टी इसका श्रेय भी ना लेने पाये. कानूनी कार्रवाई अपनी जगह है लेकिन राजनीतिक कार्रवाई भी देर-सबेर होनी तय है.”