तालिबान के अफगानिस्तान में कौन कर रहा है हमले
३० सितम्बर २०२२अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के इंस्टीट्यूट में शुक्रवार को एक आत्मघाती धमाका हुआ. हमले में बड़ी संख्या में नौजवान छात्र मारे गए. जुमे (शुक्रवार) के दिन अफगानिस्तान में स्कूल बंद रहते हैं, लेकिन पश्चिमी काबुल के काज हायर एजुकेशनल सेंटर में इसी दिन एक एंट्रेस एग्जाम होना था. धमाके में घायल अकबर नाम के एक छात्र ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "क्लास में करीब 600 लोग थे. लेकिन मरने वालों में ज्यादातर छात्राएं हैं."
पास के अस्पताल में अपनी बहन को खोजती एक महिला ने कहा, "हमें वह नहीं मिल रही है. वह 19 साल की थी. हम उसे पुकार भी रहे हैं, लेकिन वह जबाव नहीं दे रही है."
अफगानिस्तान में सुधारों पर तालिबान में दरारें
अधिकारियों का कहना है कि कई लोग बुरी तरह जख्मी हैं और मृतकों की संख्या बढ़ सकती है. तालिबान का कहना है कि 33 लोग मारे गए हैं और मृतकों में ज्यादातर छात्राएं हैं. धमाके की जिम्मेदारी अभी तक किसी संगठन ने नहीं ली है. आतंरिक मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल नफी ताकोर ने ट्वीट में लिखा है, "आम नागरिकों को निशाना बनाकर हमला करना दुश्मन की अमानवीय क्रूरता और उसके नैतिक पतन की पुष्टि करता है."
इंस्टीट्यूट के पास ही रहने वाले गुल्म सादिक के मुताबिक उन्होंने अपने घर पर ही तेज धमाके की आवाज सुनी. जब वे बाहर गए तो इंस्टीट्यूट की इमारत से धुआं निकल रहा था. सादिक कहते हैं, "मेरा दोस्त और मैं, धमाके की जगह से 15 घायलों और 9 मृतकों को बाहर निकाल सके. बाकी शव कुर्सियों और मेजों से नीचे बिखरे हुए थे."
कहां गया तालिबान की सुरक्षा का वादा
15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगानिस्तान को फिर से नियंत्रण में ले लिया. सत्ता में आते ही तालिबान ने वादा किया कि दो दशक लंबे युद्ध के बाद अब वे देश की सुरक्षा करेंगे. हालांकि हाल के महीनों में अफगानिस्तान में आम नागरिकों, स्कूलों और मस्जिदों को उड़ाने वाले कई धमाके हुए हैं. बीते सवा साल में देश में 40 से ज्यादा छोटे बड़े हमले हुए हैं. सबसे ज्यादा हमले राजधानी काबुल में हुए हैं. तालिबान के शासन को चुनौती देते हमलावरों ने जलालाबाद और कंधार जैसे बड़े शहरों को भी निशाना बनाया है. ज्यादातर हमलों की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है.
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तालिबान के सत्ता में आने के बाद अब तक देश में 85 छात्रों की हत्या हो चुकी है. मृतकों में ज्यादातर छात्राएं हैं. पिछले साल काबुल में ही लड़कियों के स्कूल के पास हुए धमाके के बाद इस्लामिक स्टेट ने उसकी जिम्मेदारी ली. लड़कियों के स्कूल, कॉलेजों के साथ ही हजारा समुदाय को भी खूब निशाना बनाया जा रहा है. इस्लाम के शिया पंथ से ताल्लुक रखने वाले हजारा समुदाय को तालिबान और इस्लामिक स्टेट दोनों पंसद नहीं करते हैं.
निशाने पर छात्राएं
तालिबान और इस्लामिक स्टेट दोनों लड़कियों की पढ़ाई के खिलाफ हैं. सत्ता में आने के बाद तालिबान कई शर्तों के साथ लड़कियों को पढ़ने की इजाजत दे रहा है. अंतरराष्ट्रीय दवाब और मान्यता हासिल करने के लिए तालिबान का एक उदारवादी धड़ा इस राह पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है. वहीं कट्टरपंथी धड़ा इसके खिलाफ है. आशंका है कि कट्टरपंथी धड़े के लड़ाके उदार पड़ते रुख से नाराज हो रहे हैं और इस्लामिक स्टेट से जुड़ रहे हैं.
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इस्लामिक स्टेट का अफगान धड़ा आइसिस-के कहा जाता है. यह 2015 से अफगानिस्तान में सक्रिय है. तालिबान के सत्ता में आने से पहले आइसिस-के सिर्फ पूर्वी अफगानिस्तान के नागहार प्रांत में सक्रिय था. बीते एक साल में सलाफी विचारधारा को मानने वाला ये संगठन पूरे अफगानिस्तान में पैठ बना चुका है.
इस्लामिक स्टेट की सोच में महिलाओं की पढ़ाई लिखाई, उनका बिना बुर्के के घर से अकेले बाहर निकलना पूरी तरह हराम है. अफगानिस्तान से भागकर जर्मनी आए कुछ लोग कहते हैं कि तालिबान जितना उदार बनने की कोशिश करेगा, इस्लामिक स्टेट की ताकत उतनी ज्यादा बढ़ सकती है. ताकत की इस लड़ाई में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी की भूमिका भी संदेह के घेरे में है.
ओएसजे/ एनआर (डीपीए, एएफपी, रॉयटर्स)