जिनपिंग का तीसरा कार्यकाल: भारत के लिए क्या हैं मायने?
१० मार्च २०२३चीनी नेता शी जिनपिंग लगातार तीसरी बार देश के राष्ट्रपति बने हैं. शुक्रवार को चीनी संसद नेशनल पीपल्स कांग्रेस (NPC) के लगभग 3,000 सदस्यों ने वोटिंग की, जिसमें जिनपिंग को 2,952 वोट मिले. चुनाव में 69 साल के जिनपिंग के सामने कोई उम्मीदवार नहीं था. चीन की इस संसद को राष्ट्रपति का रबर स्टांप कहा जाता है, क्योंकि इसके सदस्य सत्ताधारी पार्टी द्वारा नियुक्त किए जाते हैं.
साल 2018 में चीन का संविधान बदलकर किसी नेता के अधिकतम दो बार राष्ट्रपति बनने की सीमा खत्म कर दी गई थी. तब जानकारों ने कहा था कि ऐसा करके असल में जिनपिंग के अनिश्चितकाल तक राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता बनाया जा रहा है. अब उनकी तीसरी नियुक्ति चीन के सियासी पटल पर उनकी मजबूत पकड़ दिखाती है. उनके समर्थक उन्हें माओत्से तुंग के बाद चीन का सबसे ताकतवर नेता करार देते हैं.
आज चीन के सामने कई चुनौतियां हैं. इनमें 'बेल्ट ऐंड रोड परियोजना' को सफलतापूर्वक जमीन पर उतारना हो, यूरोप के साथ आर्थिक रिश्ते पहले जैसे मजबूत करने हों या ताइवान जैसे मुद्दे पर अमेरिका के साथ तनाव घटाना हो. पर शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल के भारत के लिए क्या मायने हैं?
"चौंकाने वाली कोई बात नहीं है"
इस सवाल के जवाब में किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर हर्ष वी. पंत कहते हैं, "शी जिनपिंग का तीसरी बार राष्ट्रपति बनना तय था. भारत के लिए इसके यही मायने हैं कि चीन के भारत के प्रति रुख में कोई बड़ी तब्दीली आने की संभावना काफी कम हो जाती है और भारत को इसके लिए तैयार रहना होगा. पिछले कुछ वर्षों में हमने साउथ चाइना सी से लेकर ईस्ट चाइना सी और ताइवान में जो आक्रामक रुख देखा है, वह भी जारी रहेगा. यानी भारत के लिए पड़ोस का इलाका अस्थिर बना रहेगा."
तक्षशिला इंस्टीट्यूट में चाइना स्टडीज के फेलो मनोज केवालरमणि भी कहते हैं कि जिनपिंग के तीसरी बार राष्ट्रपति बनने में कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. वह बताते हैं, "पिछले साल जब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस में जिनपिंग का बतौर जनरल सेक्रेटरी तीसरा कार्यकाल शुरू हुआ, तभी से सबको पता था कि वह राष्ट्रपति की कुर्सी पर बने रहेंगे. जहां तक भारत और भारत-चीन संबंधों पर इसके असर की बात है, तो मौजूदा वक्त में चीन की जो नीति देख रहे हैं, उसमें निरंतरता बनी रहेगी."
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मलाया विश्वविद्यालय के आसियान केंद्र के निदेशक और एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉक्टर राहुल मिश्रा एक दूसरा नजरिया बतलाते हैं. वह कहते हैं, "यह तो 2018 में ही तय हो गया था कि जिनपिंग फिर राष्ट्रपति बनेंगे. अब शी जिनपिंग जितने वर्षों तक चीन के राष्ट्रपति बने रहते हैं, उनके कार्यकाल में भारत को लेकर चीन की नीतियां निर्णायक होंगी. मैं यह नहीं कहता कि भारत के प्रति चीन की नीति में कोई बदलाव नहीं होगा. मेरा ख्याल है कि अगर नरेंद्र मोदी 2024 में सत्ता में वापसी करते हैं, तो भारत और चीन का एक-दूसरे के प्रति नजरिया और आग्रह तेजी से बदलेगा."
चीन की चुनौतियों से कैसे निपटे भारत
भारत-चीन के रिश्तों की व्याख्या करते हुए डॉक्टर मिश्रा कहते हैं, "भारत-चीन की नीतियों की बात करते हुए मोदी-जिनपिंग का भी जिक्र आता है. ये दोनों ही नेता ऐसे हैं, जो अपने-अपने देशों के इतिहास में बड़ा नाम करना चाहते हैं. दोनों बड़ी लकीर खींचना चाहते हैं और दोनों की नीतियां इसकी गवाही देती हैं. दोनों की नीतियां 'ट्रायल ऐंड एरर्स' की तर्ज पर आगे बढ़ती दिखती हैं, लेकिन दोनों ही नेता हमेशा बड़ी महत्वाकांक्षा के साथ देश चलाने की कोशिश करते दिखते हैं, जो एक बड़ा फैक्टर है."
जहां तक भारत के चीन का सामना करने की बात है, तो डॉक्टर मिश्रा बताते हैं, "भारत की चीन को लेकर नीतियों में बहुत सारे फैक्टर ऐसे हैं, जिन पर भारत का कोई नियंत्रण नहीं है. इसमें सबसे बड़ा फैक्टर जियोग्राफिक लोकेशन है. सेना के किसी अधिकारी या रणनीतिकार से पूछें, तो वह साफ बताएगा कि चीन भारतीय सीमा के आसपास इतना मजबूत है कि इस समीकरण को बदलने के लिए आपको हैवी मिलिट्री इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए, बहुत सारे हथियार चाहिए और आर्थिक रूप से आगे निकलना होगा. नीतियों में परिवर्तन तभी होते हैं, जब किसी देश के पास उस तरह की आर्थिक, सामरिक और गठजोड़ की ताकत हो. भारत इस दिशा में काम कर रहा है. वह अमेरिका से रिश्ते मजबूत कर रहा है. हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने भारत को अपना सबसे बड़ा सामरिक साझेदार करार दिया, जो अपने-आप में बड़ा बयान है. तो भारत अभी तो आर्थिक रूप से चीन को पीछे छोड़ने की स्थिति में नहीं है, लेकिन अगर अगले दस साल में यह सूरत बदलती है, तो भारत की नीतियां भी और आक्रामक होंगी."
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जहां तक चीन की रक्षा नीतियों का सवाल है, तो इसकी बानगी इस बात से समझी जा सकती है कि चीन के वित्तमंत्री ने इस साल का रक्षा बजट 7.2 फीसदी बढ़ाकर 224 बिलियन डॉलर कर दिया है. दुनियाभर में चीन सैन्य खर्च करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. इस लिस्ट में पहले नंबर पर अमेरिका है.
डॉक्टर मिश्रा कहते हैं, "जहां तक मजबूत साझेदारियों का मुद्दा है, तो भारत को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, कोरिया, रूस, ईरान और आसियान देशों के साथ सामरिक संबंधों में नया आयाम लाना पड़ेगा. अब पाकिस्तान से प्रतिद्वंद्विता के बजाय चीन पर ध्यान देना होगा. जैसा कि पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संस्थापक माओ का कथन है- 'आपको पहले अपना घर संभालना होगा'."
सीमा पर तनाव का भविष्य कैसा दिखता है?
पिछले कुछ वर्षों में भारत-चीन सीमा पर विवाद बढ़ा है और हिंसक घटनाएं भी हुईं. इस मुद्दे पर प्रो. पंत कहते हैं, "भारत के प्रति चीन का आक्रामक रुख बना रहेगा. भारत को पूरी तटस्थता के साथ इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि पिछले कुछ वर्षों में सीमावर्ती इलाकों में जो समस्याएं आई हैं, उनमें और तीव्रता आ सकती है. इसकी वजह यह है कि चीन में जिनपिंग का सत्ता का केंद्रीकरण इस समय अपने चरम पर है. ऐसे में वह अपनी विरासत को किसी भी तरह कमजोर नहीं होने देंगे. क्षेत्रीय विवादों पर निगाह डालें, तो चाहे ताइवान हो, साउथ चाइना सी हो या भारत के साथ सीमा पर गतिरोध हो, इन मुद्दों पर जिनपिंग आक्रामकता बनाए रखेंगे और भारत को भी चीन की ओर से किसी बड़े नीतिगत बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए."
हालांकि, डॉ. मिश्रा बताते हैं, "अगर हम चीनी मीडिया और उनके सर्च इंजन देखें, तो एक बड़ी चीज निकलकर आती है कि चीन में नरेंद्र मोदी एक अनूठे किरदार माने जाते हैं, जो भारत के पिछले नेताओं से अलग हैं. इसके पीछे सिर्फ पर्सनैलिटी फैक्टर नहीं है, बल्कि कुछ ऐसे समीकरण भी हैं, जिनकी वजह से नरेंद्र मोदी को इतनी ताकत हासिल हुई है. अब चूंकि जिनपिंग के कार्यकाल पर किसी तरह की सीमा नहीं है, तो भारत को लेकर उनकी जो नीतियां होंगी, वे जरूर बदलेंगी और निर्णायक रूप से बदलेंगी."
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केवालरमणि एक और नजरिया पेश करते हैं. उनका कहना है, "भारत और चीन के बीच जो रिश्ते हैं, चीन उन्हें अमेरिका के साथ अपनी रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चश्मे से देखता है. ऐसे में चीन भारत और अमेरिका की दोस्ती और इंडो-पैसिफिक और साउथ एशिया में भारत के रवैये से संतुष्ट नहीं है. चीन चाहता है कि भारत चीन के नेतृत्व और उसके रुतबे को ध्यान में रखकर अपनी नीतियां बनाए और भारत ऐसे नहीं चल सकता. ऐसे में सीमा पर तनाव बना रहेगा, क्योंकि चीनी सरकार सीमा को एक हथियार की तरह देखती है. चूंकि दोनों देशों में सत्ता का संतुलन बदला है, तो चीनी नेतृत्व भी भारत को आजमा रहा है कि वह भारत पर कहां तक दबाव डाल सकता है."
ज्यादातर जानकार मानते हैं कि ऐसे में चीन की भारत के प्रति नीतियों में बदलाव की अभी कोई वजह नहीं दिखती है. भारत में 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद हालात कुछ और साफ हो सकते हैं.