अमेरिका दे सकता है इन अफगान महिलाओं को वीजा
८ जुलाई २०२१अमेरिका की बाइडेन सरकार विचार कर रही है अफगानिस्तान की राजनेताओं, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसी खतरे झेल रहीं महिलाओं के लिए वीजा प्रक्रिया तेज की जाए. मानवाधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि महिला अधिकारों के लिए काम करने वालीं और अन्य क्षेत्रों में सक्रिय कम से कम दो हजार महिलाओं को अफगानिस्तान से बचाकर निकाला जाना चाहिए.
अमेरिका के 90 प्रतिशत सैनिक पहले ही अफगानिस्तान छोड़ चुके हैं और बाकी सेना के अगले कुछ हफ्तों में चले जाने की संभावना है. जर्मनी समेत बाकी कई नाटो देशों की सेनाएं पहले ही अफगानिस्तान से जा चुकी हैं. इस बीच तालिबान के देश के विभिन्न हिस्सों पर तेजी से हो रहे कब्जे की खबरें आ रही हैं, जिन्होंने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, खासकर महिलाओं को चिंतित कर रखा है.
खतरे में कौन-कौन
अमेरिका ने अपनी फौज के साथ काम कर रहे बहुत से अफगान नागरिकों को अपने यहां शरण देने की योजना बना रखी है. इनमें अनुवादक जैसे सहयोगी शामिल हैं. लेकिन 2002 में तालिबान की सरकार के सत्ता से बाहर किए जाने से पहले महिलाओं के अधिकारों पर लगी कड़ी पाबंदियों की यादें देश की महिलाओं को परेशान कर रही हैं. कई मानवाधिकार संस्थाओं ने इनके भविष्य को लेकर चिंता जताई है.
एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया है कि सरकार सिर्फ उन महिलाओं के बारे में विचार नहीं कर रही है, जो खतरे में हैं, बल्कि खतरनाक पेशों में काम करने वाले पुरुषों और अल्पसंख्यकों की परिस्थितियों पर भी विमर्श किया जा रहा है.
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था मीना'ज लिस्ट की अडवोकेसी डायरेक्टर टेरेसा कैसेल कहती हैं कि जिंदगियां खतरे में हैं. वह बताती हैं, "तालिबान चुन चुनकर महिला नेताओं को मार रहा है. हर रोज ऐसी महिलाओं को जान से मारे जाने की धमकियां मिल रही हैं.”
तस्वीरों मेंः चले गए अमेरिकी, छोड़ गए कचरा
मीना'ज लिस्ट और अन्य कई संगठनों ने सिफारिश की है कि उन अफगानिस्तानियों की वीजा प्रक्रिया को तेज किया जाए, जिनकी जान को खतरा हो सकता है. इन संगठनों ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय से आग्रह किया है कि एक विशेष त्वरित योजना बनाई जाए ताकि अमेरिकी अधिकारी लोगों को जल्द से जल्द सुरक्षित जगहों पर पहुंचा सकें.
अफगानिस्तान की महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को अधिक संख्या में वीजा देने के बारे में तो वाइट हाउस ने फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी के मुद्दे पर अपनी बात रखने वाले हैं और उम्मीद की जा रही है कि वह महिला अधिकारों पर भी बोलेंगे.
तालिबान का डर
अफगानिस्तान में नाटो फौजों की वापसी शुरू होने के बाद से कई महिला पुलिस अधिकारी, मीडियाकर्मी, जज और स्वास्थ्यकर्मियों की हत्याएं हो चुकी हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने अप्रैल में एक रिपोर्ट में कहा था कि टीवी और रेडियो में काम करने वाली महिलाएं बहुत ज्यादा खतरे में हैं.
ह्यूमम राइट्स वॉच की रिपोर्ट में कहा गया कि "महिला पत्रकारों को सिर्फ अपनी रिपोर्टिंग के लिए खतरा नहीं है, बल्कि उन्हें इसलिए भी निशाना बनाया जा सकता है कि वे उन सामाजिक मानकों को चुनौती दे रही हैं जो महिलाओं को सामाजिक जीवन में सक्रिय होने से और घर के बाहर काम करने से रोकते हैं.”
देखिए, तालिबान से पहले कैसा था अफगानिस्तान
तालिबान के राज में महिलाओं को पढ़ने या काम करने की मनाही थी. उन्हें अपने शरीर को पूरी तरह ढक कर रखना होता था और वे किसी पुरुष के साथ ही घर से निकल सकती थीं. इन कथित नैतिक नियमों का उल्लंघन करने पर कोड़ों या पत्थरों से मारे जाने की सजाएं मिलती थीं.
वीके/एए (रॉयटर्स)