भारत में बढ़ रही हैं विदेश जाने से रोकने की घटनाएं
२० अक्टूबर २०२२पुलित्जर पुरस्कार लेने जाती कश्मीरी पत्रकार को एयरपोर्ट पर रोके जाने के बादअमेरिका ने कहा है कि भारत को मीडिया की आजादी का सम्मान करना चाहिए. फोटो-पत्रकार सना इरशाद मट्टू पुलित्जर पुरस्कार लेने के लिए मंगलवार को दिल्ली से न्यूयॉर्क जा रही थीं, लेकिन उन्हें अधिकारियों ने विमान में नहीं चढ़ने दिया.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि उन्हें इस घटना की जानकारी है और वे हालात पर करीबी निगाह बनाए हुए हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने मीडिया से बातचीत में कहा, "मीडिया की आजादी समेत लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति साझी प्रतिबद्धता भारत-अमेरिका संबंधों का आधार है.”
पटेल ने हालांकि इसके बारे में और अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि अमेरिकी अधिकारियों ने यह मामला भारत के समक्ष उठाया है या नहीं.
आलोचकों का कहना है कि 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद से भारत में मीडिया की आजादी लगातार कम हुई है और खासतौर पर महिला पत्रकारों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को ऑनलाइन उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है. बुधवार को संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अपनी मुंबई यात्रा के दौरान एक आयोजन में भी यह मुद्दा उठाया था. यूएन महासचिव अंटोनिया गुटेरेश ने कहा कि भारत को "पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, छात्रों और शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए.”
मट्टू रॉयटर्स के लिए काम कर रहीं उन तीन पत्रकारों में से एक हैं जिन्हें इस साल का प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार दिया गया है. प्रतिष्ठित मैग्नम फाउंडेशन की फेलो मट्टू ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि अधिकारियों ने उनके टिकट पर ‘बिना किसी पूर्वाग्रह के रद्द' की मुहर लगा दी.
उन्होंने कहा, "मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या बोलूं. ऐसा मौका जीवन में किसी को एक बार ही मिलता है. सिर्फ मुझे बिना किसी वजह के रोक लिया गया जबकि अन्य दो को जाने दिया गया. शायद ऐसा मेरे कश्मीरी होने की वजह से है.”
कश्मीरी पत्रकारों की मुश्किल
यह दूसरी बार है जब मट्टू को भारतीय अधिकारियों ने विदेश जाने से रोका है. जुलाई में भी उन्हें इसी तरह एयरपोर्ट पर रोक लिया गया था जब वह अपनी एक फोटो प्रदर्शनी के लिए पेरिस जा रही थीं.
2019 में धारा 370 निरस्त करके जम्मू और कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खत्म किए जान के बाद से राज्य में विदेशी पत्रकारों के जाने पर मनाही है और स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि उन्हें बेहद दबाव में काम करना पड़ रहा है. यह पहला मामला नहीं है जब भारतीय अधिकारियों ने किसी कश्मीरी पत्रकार को विदेश जाने से रोका है. इससे पहले गार्डियन अखबार के लिए लिखने वाले स्वतंत्र पत्रकार आकाश हसन को जुलाई में दिल्ली से काम के सिलसिले में श्रीलंका जाने से रोका गया था.
आकाश हसन ने बताया कि महीनों बाद भी उन्हें यह नहीं बताया गया है कि उन्हें किस वजह से यात्रा की इजाजत नहीं दी गई. हसन ने कहा, "पैटर्न को देखें तो लगता है कि ऐसा सिर्फ कश्मीरी पत्रकारों के साथ किया जा रहा है.”
‘कमेटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स' की बे ली ने भारत के इस कदम की आलोचना की है. उन्होंने एक बयान जारी कर कहा, "मट्टू को देश से बाहर जाने से रोकना एक मनमाना और अतिशय निर्णय था. भारत को कश्मीर में काम कर रहे पत्रकारों के किसी भी तरीके से उत्पीड़न और धमकाने को फौरन बंद करना चाहिए.”
विदेश जाने से रोकने की घटनाएं
कश्मीरी पत्रकारों के अलावा भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जबकि भारत सरकार ने लोगों को बाहर जाने से रोका. बीती मार्च में पत्रकार और लेखिका राणा अय्यूब को लंदन जाने से रोक दिया गया था. मनी लॉन्डरिंग के मामले में आरोपी पत्रकार राणा अय्यूब को अधिकारियों ने विमान में नहीं चढ़ने दिया था
तब ट्विटर पर अय्यूब ने लिखा, "मुझे आज मुंबई इमिग्रेशन ने यात्रा करने से रोक दिया. मैंने हफ्तों पहले ही इस बारे में ऐलान कर दिया था. तब भी, उत्सुकता की बात यह है कि ईडी का समन रोक दिए जाने के बाद मेरे इनबॉक्स में पहुंचा.” अय्यूब को ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स' में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेना था. वहां वह ‘महिला पत्रकारों के खिलाफ' हिंसा विषय पर बोलने वाली थीं.
उसके बाद अप्रैल में एमनेस्टी इंडिया के प्रमुख आकार पटेल को तब विदेश जाने से रोक लिया गया जब वह बेंगालूरु से अमेरिका की फ्लाइट में चढ़ने वाले थे. पटेल ने ट्विटर पर बताया, "बेंगलुरू एयरपोर्ट पर भारत से बाहर जाने से रोक दिया गया. सीबीआई अफसर ने फोन करके बताया कि मेरे खिलाफ लुक-आउट नोटिस है क्योंकि मोदी सरकार ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया पर मुकदमा किया हुआ है.”
मट्टू को रोके जाने की घटना के बाद एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक बयान जारी कर भारत से ‘मनमाने यात्रा प्रतिबंधों' का इस्तेमाल ना करने का आग्रह किया है. एमनेस्टी ने कहा, "स्वतंत्र आलोचकों की आवाजें दबाने के लिए भारतीय अधिकारियों द्वारा मनमाने यात्रा प्रतिबंधों को एक औजार के रूप में इस्तेमाल करने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.
इन मनमाने फैसलों का अधिकार किसी अदालत का आदेश, वॉरंट या लिखित रूप से दी गई वजह नहीं होता, इसलिए कार्यकर्ताओं और पत्रकारों द्वारा इन्हें अदालत में चुनौती भी नहीं दे पाते. इसलिए अधिकारी असहमति को दबाने के लिए लगातार यात्रा प्रतिबंधों का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह मानवाधिकारों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है और फौरन बंद होना चाहिए.”
रिपोर्टः विवेक कुमार (एएफपी)