इससे ज्यादा तापमान नहीं बर्दाश्त कर सकता हमारा शरीर
९ अगस्त २०२३अभी तक यह माना जाता था कि अगर एक स्वस्थ जवान व्यक्ति को भी 100 प्रतिशत आर्द्रता या ह्यूमिडिटी के साथ साथ 35 डिग्री सेल्सियस तापमान छह घंटों से ज्यादा सहना पड़े तो उसकी मृत्यु हो जाएगी. नई खोज ने दिखाया है कि बर्दाश्त का अधिकतम स्तर इससे काफी नीचे हो सकता है.
इस बिंदु पर आ कर पसीना त्वचा पर से उड़ता नहीं है और अंत में हीटस्ट्रोक, ऑर्गन फेलियर और मौत हो जाती है. यह हाल 35 डिग्री पर हो जाता है, जिसे "वेट बल्ब तापमान" कहा जाता है.
35 डिग्री से कम में भी हो सकती है मौत
इसे सिर्फ करीब एक दर्जन बार पार किया गया है, जिसमें से अधिकांश बार ऐसा दक्षिण एशिया और फारस की खाड़ी में हुआ. यह जानकारी नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के कॉलिन रेमंड ने दी.
रेमंड ने बताया कि इनमें से किसी भी बार यह दो घंटों से ज्यादा नहीं चला. इसका मतलब है इसकी वजह से कभी भी बड़ी संख्या में लोगों के मरने की घटना नहीं हुई. लेकिन जानकारों का कहना है कि चरम गर्मी से मौत होने के लिए इस स्तर तक भी पहुंचने की जरूरत नहीं है.
इसके अलावा उम्र, स्वास्थ्य और दूसरे सामाजिक और आर्थिक कारणों की वजह से हर किसी की सहन शक्ति अलग होती है. मिसाल के तौर पर अनुमान है कि यूरोप में पिछले साल गर्मियों में 61,000 से ज्यादा लोगों की गर्मी की वजह से मौत हो गई, लेकिन वहां शायद ही कभी ऐसी आर्द्रता होती है जिससे खतरनाक वेट बल्ब तापमान पैदा हो सके. हालांकि जैसे जैसे दुनिया का तापमान बढ़ता जा रहा है, वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि खतरनाक वेट बल्ब घटनाएं भी और आम होती जाएंगी. हाल ही में जुलाई 2023 की इतिहास में सबसे गर्म महीने के रूप में पुष्टि हुई है.
बढ़ गई हैं घटनाएं
रेमंड कहते हैं कि ऐसी घटनाओं की फ्रीक्वेंसी पिछले 40 सालों में कम से कम दुगुनी हो गई है. उन्होंने इस वृद्धि को इंसानों के वजह से हुए जलवायु परिवर्तन का एक गंभीर नतीजाबताया.
उनके शोध के मुताबिक अगर दुनिया पूर्वऔद्योगिक स्तर से 2.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की दर से गर्म हुई तो आने वाले दशकों में वेट बल्ब तापमान "नियमित रूप से" दुनिया में कई जगह 35 डिग्री पार कर जाएंगे.
इंसानों के बर्दाश्त करने लायक तापमान का जो सिद्धांत अभी तक दिया गया है उसमें 35 डिग्री सेल्सियस सूखी गर्मी के साथ साथ 100 प्रतिशत आर्द्रता की बात कही गई है. इस सीमा को जांचने के लिए अमेरिका की पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने एक हीट चेम्बर में स्वस्थ युवाओं के कोर तापमान को मापा.
उन्होंने पाया कि ये युवा 30.6 डिग्री सेल्सियस पर ही "क्रिटिकल एनवायरनमेंटल सीमा" तक पहुंच गए, यानी वो सीमा जब उनके शरीर ने तापमान को बढ़ने से रोकने का काम करना बंद कर दिया.
बच्चों, बुजुर्गों को ज्यादा खतरा
इस शोध पर काम करने वाल डैनिएल वेचेलियो के मुताबिक टीम ने अनुमान लगाया कि पांच से सात घंटों के बीच में इस तरह के हालात "बहुत ही खतरनाक कोर तापमान" तक पहुंच जाएंगे.
भारत में एक शोधकर्ता जॉय मोंटेरो का एक लेख पिछले महीने नेचर पत्रिका में छपा जिसमें उन्होंने दक्षिण एशिया में वेट बल्ब तापमानों पर अध्ययन किया. उनके मुताबिक इस इलाके में अधिकांश घातक हीटवेव 35 डिग्री की सीमा से नीचे के तापमानों पर ही आई.
हालांकि उनका कहना है कि इस तरह की बर्दाश्त करने की सीमाएं"अलग अलग लोगों के हिसाब से बहुत ही अलग हैं." कई जानकारों का कहना है कि बच्चों पर ज्यादा खतरा है और बुजुर्गों पर तो सबसे ज्यादा खतरा है.
ज्यादा तापमान में बाहर काम करने वालों को भी दूसरों के मुकाबले ज्यादा खतरा है. इसके आलावा लोग बीच बीच में अपने शरीर को ठंडा कर पाते हैं या नहीं, यह भी एक बड़ा सवाल है. मोंटेरो ने बताया कि जिनके पास शौचालय नहीं होते वो अक्सर पानी कम पीते हैं, जिससे उन्हें निर्जलीकरण या डिहाइड्रेशन हो जाता है.
सीके/एए (एएफपी)