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समाज

पत्रकारों, नेताओं और उद्योगपतियों की जासूसी हुईः रिपोर्ट

१९ जुलाई २०२१

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई एक जांच में दावा किया गया है कि इस्राएली जासूसी तकनीक के जरिए सरकारों ने अपने लोगों की जासूसी की. इनमें भारत के कई बड़े नाम शामिल हैं.

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Israel | NSO Group
तस्वीर: Jack Guez/AFP/Getty Iamges

भारतीय समाचार वेबसाइट द वायर ने खबर दी है कि इस्राएल की निगरानी रखने वाली तकनीक के जरिए भारत के तीन सौ से भी ज्यादा लोगों के मोबाइल नंबरों की जासूसी की गई, जिनमें देश के मंत्रियों और विपक्ष के नेताओं से लेकर पत्रकार, जाने-माने वकील, उद्योगपति, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, मानवाधिकार कार्यकर्ता आदि शामिल हैं.

द वायर और 16 अन्य मीडिया संस्थानों की एक साझी जांच के बाद यह दावा किया गया है कि इस्राएल के सर्वेलांस सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए इन फोन नंबरों की जासूसी की गई. द वायर लिखता है कि इस जांच के तहत कुछ फोन्स की फॉरेंसिक जांच की गई जिससे "ऐसे स्पष्ट संकेत मिले की 37 मोबाइलों को पेगासस ने निशाना बनाया, जिनमें 10 भारतीय थे.”

द वायर कहता है, "बिना किसी फोन के तकनीकी विश्लेषण के यह बता पाना संभव नहीं है कि उस पर सिर्फ हमला हुआ था या उसे हैक किया गया था.”

कैसे हुई जांच?

इस्राएल की कंपनी एनएसओ ग्रुप पेगासस सॉफ्टवेयर बेचता है. द वायर के मुताबिक कंपनी का कहना है कि उसके ग्राहकों में सिर्फ सरकारें शामिल हैं, जिनकी संख्या 36 मानी जाती है. हालांकि कंपनी ने यह नहीं बताया है कि कौन कौन से देशों की सरकारें उसके ग्राहक हैं लेकिन द वायर लिखता है कि कम से कम यह संभावना तो खत्म हो जाती है कि भारत में या बाहर की कोई निजी संस्था इस जासूसी के लिए जिम्मेदार है.

तस्वीरों मेंः खराब होते मानवाधिकार

यह जांच फ्रांस की एक गैर सरकारी संस्था ‘फॉरबिडन स्टोरीज' और एमनेस्टी इंटरनेशनल को मिले एक डेटा के आधार पर हुई है. यह डेटा दुनियाभर के 16 मीडिया संस्थानों का उपलब्ध कराया गया था, जिनमें द वायर, ला मोंड, द गार्डियन, वॉशिंगटन पोस्ट, डी त्साइट और ज्यूडडॉयचे त्साइटुंग के अलावा मेक्सिको, अरब और यूरोप के दस अन्य संस्थान शामिल हैं.

इन संस्थानों के पत्रकारों ने मिलकर यह खुफिया जांच की, जिसे प्रोजेक्ट पेगासस नाम दिया गया. ‘फॉरबिडन स्टोरीज' का कहना है कि उसे जो डेटा मिला था, उसमें एनएसओ ग्रुप के ग्राहकों द्वारा चुने गए फोन नंबर शामिल थे. हालांकि एनएसओ ग्रुप ने इस दावे का खंडन किया है.

भारत में किस-किस का नाम?

द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक में इस सूची में भारत के 40 पत्रकार, तीन बड़े विपक्षी नेता, एक संवैधानिक विशेषज्ञ, नरेंद्र मोदी सरकार के दो मंत्री, सुरक्षा संस्थानों के मौजूदा और पूर्व प्रमुख और कई उद्योगपति शामिल हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर फोन नंबरों को 2018 से 2019 के बीच निशाना बनाया गया था. 2019 में भारत में आम चुनाव हुए थे और नरेंद्र मोदी दोबारा चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने थे.

पेगासस प्रोजेक्ट के तहत मिले डेटा में इन भारतीय लोगों के नाम शामिल हैः

हिंदुस्तान टाइम्स

शिशिर गुप्ता, प्रशांत झा, औरंगजेब नक्शबंदी और राहुल सिंह

सैकत दत्ता (पूर्व)

द हिंदू

विजेता सिंह

इंडियन एक्सप्रेस

मुजामिल जलील, रितिका चोपड़ा, सुशांत सिंह(पूर्व)

इंडिया टुडे

संदीप उन्नीथन

द वायर

सिद्धार्थ वरदराजन, स्वाति चतुर्वेदी, देवीरूपा मित्रा, रोहिणी सिंह, एमके वेणु

द पायनियर

जे गोपीकृष्णन

न्यूजक्लिक

प्रंजॉय गुहा ठाकुरता

फ्रंटियर टीवी

मनोरंजन गुप्ता

स्वतंत्र पत्रकार

शबीर हुसैन बुच

इफ्तिकार गिलानी

प्रेमशंकर झा

संतोष भरतीय

दीपक गिडवानी

भूपिंद सिंह सज्जन

जसपाल सिंह हेरान

इंडियन अहेड

स्मिता शर्मा

कार्यकर्ता

हसन बाबर नेहरू

उमर खालिद

रोना विल्सन

रूपाली जाधव

डिग्री प्रसाद चौहान

लक्ष्मण पंत

कई ऐसे लोग भी सूची में हैं, जिन्होंने मीडिया संस्थानों से अपने नाम सार्वजनिक ना करने का आग्रह किया है.

भारत सरकार की प्रतिक्रिया

भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए लोगों के फोन हैक करने के दावों को गलत बताया है. एक बयान में सरकार ने कहा है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्र आजादी के लिए प्रतिबद्ध है.

द वायर द्वारा भारत सरकार को भेजे गए सवालों के जवाब कहा गया, "भारत एक स्थापित लोकतंत्र है जो अपने नागरिकों के निजता के अधिकार का एक मूलभूत अधिकार के तौर पर सम्मान करता है. इसी प्रतिबद्धता के तहत पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 और इंन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी (इंटरमीडिएरी गाइडलिन्स ऐंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स 2021 लाया गया ताकि लोगों के निजी डेटा की सुरक्षा की जा सके और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करने वाले लोगों को और अधिकार दिए जा सकें.”

देखेंः एमनेस्टी के 60 साल

‘पेगासस प्रोजेक्ट' के तहत हुए शोध को कमजोर बताते हुए भारत सरकार ने कहा कि चूंकि इन सवालों के जवाब पहले से ही सार्वजनिक मंचों पर मौजूद हैं, इससे पता चलता है कि जाने-माने मीडिया संस्थानों ने कमजोर शोध किया है और जरूरी परिश्रम नहीं किया है.

भारत सरकार कहती है, "चुनिंदा लोगों पर सरकार की जासूसी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है और इनमें कोई सच्चाई नही है. पहले भी भारत सरकार द्वारा वॉट्सऐप पर पेगासस के जरिए जासूसी करने के दावे किए गए थे. उन खबरों का भी कोई तथ्यात्मक आधार नहीं था और सभी पक्षों ने उन्हें खारिज कर दिया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट में वॉट्सऐप का खंडन भी था.”

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कौन प्रभावित?

‘पेगासस प्रोजेक्ट' का हिस्सा रहे अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक 50 हजार नंबरों की एक सूची है जिसके लिए 37 स्मार्टफोन्स को निशाना बना गया. अखबार लिखता है कि ये नंबर उन देशों में से हैं, जो अपने नागरिकों की जासूसी करने के लिए जाने जाते हैं और एनएसओ ग्रुप के ग्राहक भी हैं.

पूरी सूची में जो नंबर शामिल हैं उनमें से 50 देशों के एक हजार से ज्यादा लोगों की पहचान संभव हो पाई है. इन लोगों में अरब के शाही परिवार के कई सदस्य, कम से कम 65 उद्योगपति, 85 मानवाधिकार कार्यकर्ता, 189 पत्रकार और 600 से ज्यादा नेता और सरकारी अधिकारी शामिल हैं. अखबार स्पष्ट करता है कि इस सूची का मकसद स्पष्ट नहीं हो पाया है.

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अखबार के मुताबिक एनएसओ ग्रुप का कहना है कि लोगों के फोन की जासूसी उसके पेगासस स्पाइवेयर लाइसेंस की शर्तों के प्रतिकूल है क्योंकि उसका सॉफ्टवेयर सिर्फ बड़े अपराधियों और आतंकवादियों की जासूसी के लिए है.

वॉशिंगटन पोस्ट ने एनएसओ प्रमुख शालेव हूलियो के हवाले से लिखा है कि वह इन खबरों से बहुत चिंतित हैं. हूलियो ने अखबार को बताया, "हम हर आरोप की जांच कर रहे हैं और यदि कुछ आरोप भी सत्य पाए जाते हैं तो हम सख्त कार्रवाई करेंगे. जैसा हमने पहले भी किया है, हम उनके कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर देंगे. यदि किसी ने पत्रकारों की जासूसी की है, चाहे वह पेगासस से हो या नहीं, चिंता की बात है.”

रिपोर्टः विवेक कुमार

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