पाकिस्तान: बम धमाके में 46 की मौत, इस्लामिक स्टेट पर संदेह
३१ जुलाई २०२३यह बम धमाका 30 जुलाई को "जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल" की एक रैली के दौरान हुआ. खबरों के मुताबिक, हमले के समय सैकड़ों पार्टी कार्यकर्ता और स्थानीय नेता घटनास्थल पर मौजूद थे. यह हमला बाजौर नाम की जिस जगह पर हुआ, वह अफगान सीमा के नजदीक है. बाजौर में काफी समय से चरमपंथियों की पैठ रही है. इनमें तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) प्रमुख है, जिसे पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है.
अब तक क्या जानकारी है?
पाकिस्तानी जांचकर्ताओं ने हमले में चरमपंथी इस्लामिक स्टेट समूह का हाथ होने की आशंका जताई है. स्थानीय पुलिस प्रमुख नजीर खान ने बताया कि इस मामले में तीन संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है और उनसे पूछताछ जारी है. उन्होंने बताया कि शुरूआती जांच से हमले में दाएश इस्लामिक स्टेट का हाथ होने के निशान मिले हैं.
प्रांतीय पुलिस प्रमुख अख्तर हयात खान ने सुसाइड बम विस्फोट की पुष्टि करते हुए बताया कि हमलावर की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट किया जा रहा है. क्षेत्रीय आतंकवाद निरोधी उप महानिरीक्षक सोहेल खालिद ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि हमलावर ने धमाके की तीव्रता बढ़ाने के लिए बॉल बेयरिंग से बंधे लगभग 40 किलोग्राम (90 पाउंड) विस्फोटक का इस्तेमाल किया.
150 से ज्यादा लोग घायल
बचाव अधिकारी बिलाल फैजी ने बताया कि 150 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. इनमें से लगभग 90 घायलों का इलाज अस्पतालों में किया जा रहा है. घटनास्थल पर खून से सनी कुर्सियां, मृतकों और घायलों द्वारा छोड़े गए जूते दिखाई दिए. जिस मंडप में कार्यक्रम हुआ था, वह जल गया.
जांचकर्ताओं को इलाके में चारों ओर फैले मानव मांस और बालों के अवशेष मिले. विस्फोट का स्पष्ट केंद्र खार के मुख्य बाजार के पास था. यहां के निवासी 29 वर्षीय फजल अमान ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि घटनास्थल पर उन्हें शव पड़े दिखे, जबकि कई लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे.
इस्लामिक स्टेट का स्थानीय सहयोगी इस्लामिक स्टेट इन खुरासान (ISIK) के नाम से जाना जाता है. यह 2015 से अफगानिस्तान और पाकिस्तान, दोनों में घातक हमलों में शामिल रहा है. यह घटना चुनावों से पहले इस्लामिक आतंकवादियों की ओर से हिंसा बढ़ाने की प्रवृत्ति का हिस्सा मानी जा रही है.
पाकिस्तान में 2008 से ही चुनाव से पहले इस्लामी आतंकवादियों द्वारा हिंसा में वृद्धि 2008 से काफी बढ़ी है. पाकिस्तान में 2008 से ही चुनाव के पहले इस्लामिक चरमपंथियों की ओर से हिंसा में तेजी का चलन बना हुआ है.
पीवाई/एसएम (एएफपी)