इंसानी सेहत के लिए जरूरी हो गई है नाइट्रोजन में कमीः शोध
५ जनवरी २०२३फसलों की अदला-बदली, उचित इस्तेमाल और अन्य उपायों के जरिए नाइट्रोजन की अधिकता वाली खाद का उचित प्रबंधन पर्यावरणऔर इंसान दोनों की सेहत के लिए जरूरी हो गया है. एक नए शोध में कहा गया है कि लोगों की सेहत के लिए नाइट्रोजन के इस्तेमाल पर काबू पाने की जरूरत है. हालांकि वैज्ञानिकों ने साथ ही कहा है कि इसका असर खाद्य उत्पादन पर नहीं पड़ना चाहिए.
अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के इस दल ने कहा है कि दुनियाभर की खेती में नाइट्रोजन प्रदूषण को कम करना एक बहुत बड़ी चुनौती है. नेचर पत्रिका में इस दल के शोध की रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. इस रिपोर्ट में 12 ऐसे सुधार बताए गए हैं जिनकी तुरंत जरूरत है.
नाइट्रोजन जरूरी है
पिछली एक सदी में पृथ्वी पर लोगों की आबादी चार गुना बढ़ी है और उसे भोजन उपलब्ध कराने में रसायनिक खादों की अहम भूमिका रही है. 2050 तक धरती पर लगभग दस अरब लोग होंगे जिनके लिए खाना मुहैया कराना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी. इसलिए रसायनिक खादों की जरूरत बढ़ने की ही संभावना है.
हजारों जानें लेता अदृश्य हत्यारा
लेकिन खाद्य उत्पादन की मात्रा में हुई विशाल वृद्धि, जिसे हरित क्रांति कहा गया, भारी कीमतपर आई है. आज खाद में मौजूद आधी से ज्यादा नाइट्रोजन हवा और पानी में मिल जाती है जिससे घातक प्रदूषण होता है, मिट्टी का अम्लीकरण होता है, जलवायु परिवर्तन तेज होता है, ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है और जैव विविधता का भी नुकसान होता है.
शेजियांग यूनिवर्सिटी में एक प्रोफेसर बाओजिंग गू इस शोध के मुख्य लेखक हैं. वह बताते हैं, "चूंकि नाइट्रोजन के स्वास्थ्य, जलवायु और पर्यावरण पर कई असर पड़ रहे हैं, इसलिए पानी और हवा आदि में इसकी मात्रा को कम करना ही होगा.” बाओजिंग कहते हैं कि इसे कम करने के फायदे ज्यादा हैं और नुकसान कम.
कैसे हुआ शोध?
वातावरण में यूं भी नाइट्रोजन कुदरती तौर पर भरपूर है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर पौधों के लिए. पृथ्वी के वातावरण का लगभग 80 प्रतिशत नाइट्रोजन है. हालांकि यह गैसीय अवस्था में है इसलिए ज्यादातर जीव इसे सीधे ग्रहण नहीं कर सकते. पौधों को यह रसायनिक क्रिया द्वारा उपलब्ध कराई जाती है. पौधों और मिट्टी के भीतर ही रहने वाले सूक्ष्म जीव यानी माइक्रोब्स जैविक नाइट्रोजन यौगिकीकरण के जरिए अमोनिया में बदल जाते हैं. इस प्रक्रिया में 20 करोड़ टन नाइट्रोजन हर साल मिट्टी और महासागरों में मिलती है.
इस नाइट्रोजन के अलग-अलग तत्व बैक्टीरिया आदि की मदद से धीरे-धीरे परिवर्तित हो जाते हैं और वापस वातावरण में पहुंच जाते हैं. लेकिन नाइट्रोजन का यह कुदरती चक्र रसायनिक खादों के के प्रयोग से असंतुलित हो रहा है. शोध कहता है कि सालाना 12 करोड़ टन नाइट्रोजन युक्त खाद इस कुदरती नाइट्रोजन-चक्र को प्रभावित कर रही है.
शोध के मुताबिक खादों में मौजूद आधे से भी कम नाइट्रोजन असल में पौधों द्वारा सोखी जाती है और बाकी वातावरण में पहुंच जाती है जिससे कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं. बाओजिंग के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन में दुनियाभर के 1,500 से ज्यादा खेतों का अध्ययन किया गया. इस आधार पर शोधकर्ताओं ने 11 ऐसे उपाय बताए हैं जो बिना फसलों की मात्रा को नुकसान पहुंचाए नाइट्रोजन के इस्तेमाल को कम कर सकते हैं. एक ऐसा उपाय है फसलों की अदला-बदली. यानी एक खेत में हर बार अलग फसल उगाई जाए जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे.
क्या होगा फायदा?
शोधकर्ता कहते हैं कि नाइट्रोजन प्रदूषण के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई में लगभग 34 अरब डॉलर खर्च हो रहे हैं और अगर इस प्रदूषण को कम किया जाए तो लाभ इससे 25 गुना ज्यादा होगा. चीन और भारत दुनिया के सबसे बड़े नाइट्रोजन प्रदूषक हैं. वहां रसायनिक खाद का भारी इस्तेमाल हो रहा है. वहां नाइट्रोजन प्रदूषण को कम करने के लिए क्रमशः पांच और तीन अरब डॉलर खर्च करने पड़ते हैं.
सौर ऊर्जा की मदद से दुनिया की सैर
शोधकर्ता कहते हैं कि वायु प्रदूषण के कारण होने वाली असमय मौतों को टालने के लिए खरबों डॉलर की जरूरत है और जो नाइट्रोजन प्रदूषण को कम करके बचाए जा सकते हैं. साथ ही इससे ईकोसिस्टम को नुकसान भी नहीं होगा और खाद्य उत्पादन भी बना रहेगा.
वीके/एए (एएफपी)