क्यों देना पड़ा सभी श्रीलंकाई मुस्लिम मंत्रियों को इस्तीफा
४ जून २०१९श्रीलंका में 11 मुस्लिम राजनेताओं ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया. इनमें नौ कैबिनेट और जूनियर मंत्री और दो राज्यों के गवर्नर शामिल हैं. ये इस्तीफे एक बौद्ध भिक्षु अतुरालिए रतना थिरो के अनशन के बाद हुए हैं. रतना थिरो ने आरोप लगाया कि ईस्टर के दिन हुए बम धमाकों के आरोपियों से मंत्री रिशाद बाथिउद्दीन और गवर्नर एएलएएम हिज्बुल्लाह और अजत सैली के संबंध थे. इसलिए इन्हें इस्तीफा देना चाहिए. आरोप लगाने के बाद वो इस्तीफे की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गए. दो गवर्नरों और एक मंत्री के अलावा भी सरकार में शामिल सभी मुस्लिम मंत्रियों ने अपने साथियों के समर्थन में इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के बाद रतना ने अपना अनशन खत्म कर दिया.
श्रीलंका मुस्लिम कांग्रेस के नेता रउफ हकीम ने कहा,"हमने सरकार से मांग की है कि हमारे खिलाफ कोई भी जांच करवा लें. हम निर्दोष हैं. ईस्टर के दिन हुए हमलों के बाद श्रीलंका में मुस्लिमों के खिलाफ लगातार हिंसा हो रही है. उन्हें पुलिस थानों में बंद किया जा रहा है. उनके घर जलाए जा रहे हैं." उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि होने के नाते वो सरकार में थे लेकिन अब उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया है जिससे निष्पक्ष जांच हो सके. इस जांच का नतीजा जल्दी निकाला जाए और दोषियों को सजा दी जाए.
कौन हैं रतना थिरो
अतुरालिए रतना थिरो श्रीलंकाई बौद्ध भिक्षु हैं. वो श्रीलंका में सांसद भी हैं. वो श्रीलंका की एक दक्षिणपंथी बौद्ध राष्ट्रवादी पार्टी जकीता हेला उरुमाया के संस्थापक सदस्य रहे हैं. यह पार्टी 2004 में बनी थी. उस समय इसका एजेंडा एलटीटीई का संपूर्ण सफाया और धर्मांतरण को रोकना था.
पहले चुनाव में इस पार्टी के 225 सदस्यों की संसद में नौ सदस्य जीतकर आए. रतना थिरो को फायरब्रांड नेता माना जाता है. 2009 में एलटीटीई का सफाया हो गया. 2015 में जकीता हेला ने महिंदा राजपक्षे का साथ छोड़कर संयुक्त उम्मीदवार रहे मैत्रीपाला सिरिसेना का साथ दिया. खुद थिरो सिरिसेना की पार्टी यूनाइटेड नेशनल पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते.
रतना थिरो पहले भी कई बार मुस्लिम और ईसाइयों के धर्मांतरण के खिलाफ अभियान चला चुके हैं. ईस्टर पर हुए बम धमाकों में तीन मुस्लिम राजनेताओं के शामिल होने के आरोप को लेकर वो कैंडी की दलादा मालिगवा बौद्ध मठ में आमरण अनशन पर बैठ गए.
ये बौद्धों का पवित्र मठ है जिसमें भगवान बुद्ध के दांत रखे होना माना जाता है. उनके समर्थन में हजारों लोग कैंडी में जमा हो गए. रतना के समर्थन में कोलंबो कैथोलिक चर्च के प्रमुख भी वहां आए. इस अनशन के शुरू होने के बाद आस पास के इलाकों में मुस्लिम विरोधी हिंसा की घटनाएं भी सामने आईं. इन नेताओं के इस्तीफे के बाद रतना ने अपना अनशन खत्म कर दिया.
नया नहीं है श्रीलंका में बौद्ध-मुस्लिम टकराव
श्रीलंका की कुल आबादी लगभग 2 करोड़ 10 लाख है. इसमें लगभग 10 प्रतिशत मुस्लिम हैं. 70 प्रतिशत सिंघली-बौद्ध, 12.6 प्रतिशत तमिल हिन्दू और करीब सात प्रतिशत ईसाई हैं. श्रीलंकाई मुस्लिम भी अधिकांश तमिलभाषी हैं. एलटीटीई के समय 2009 तक सिंघली-तमिल टकराव चलता रहा. एलटीटीई के खात्मे के बाद यह बौद्ध और मुस्लिम टकराव में बदल गया.
श्रीलंका में कई राष्ट्रवादी बौद्ध समूहों ने ईसाइयों पर भी धर्मांतरण के आरोप लगाए थे. इसके लिए उन्होंने सरकार से धर्मांतरण के विरुद्ध कानून बनाने की मांग भी की थी. श्रीलंका में हिंदू और बौद्धों के बीच सद्भाव है लेकिन मुस्लिमों और बौद्धों का टकराव समय-समय पर सामने आता रहता है.
जकीता हेला उरुमाया से साल 2012 में अलग होकर बने एक कट्टर धड़े बोदू बाल सेना ने मुस्लिम विरोधी अभियान चलाया और मुस्लिमों पर कई जगह हमले किए गए. 2014 में बौद्ध संत अयाग्मा समीता पर एक हमला हुआ जिसका आरोप मुस्लिमों पर लगा. हमलावरों पर कार्रवाई की मांग को लेकर जगह-जगह हिंसक प्रदर्शन हुए और मुस्लिमों और बौद्धों के बीच दंगे हुए.
श्रीलंका के दक्षिणी हिस्से में हुई इस हिंसा में 4 लोग मारे गए और 80 घायल हुए. हिंसा के चलते करीब 8,000 मुस्लिमों और 2,000 बौद्धों को दूसरी जगहों पर पलायन करना पड़ा.
साल 2018 में भी श्रीलंका में बौद्ध और मुस्लिमों के बीच हिंसा हुई. अंपारा और कैंडी जिलों में हुई इस हिंसा में मुस्लिम भीड़ ने बौद्धों और बौद्धों की भीड़ ने मुस्लिमों पर हमला किया. श्रीलंकाई सरकार ने इस हिंसा को देखते हुए देश भर में इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी और इंटरनेट बंद कर दिया. श्रीलंकाई पुलिस ने कार्रवाई करते हुए दोनों धर्मों के बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया था. ईस्टर हमले के बाद से लगातार मुस्लिम विरोधी घटनाओं की खबरें श्रीलंका से आ रही हैं. ईस्टर पर हुए हमले की जिम्मेदारी एक स्थानीय कट्टरपंथी संगठन नेशनल तौहीद जमात और इस्लामिक स्टेट ने ली थी.
रिपोर्ट: ऋषभ कुमार शर्मा/एपी
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