बुद्ध के नाम पर हिंसा
६ जुलाई २०१३अमेरिका की लोकप्रिय टाइम पत्रिका ने ताजा अंक में खास रिपोर्ट छापी है, "बौद्ध आतंकवाद का चेहरा." इसे म्यांमार और श्रीलंका ने प्रतिबंधित कर दिया है. उन्हें इस बात का खतरा है कि इससे धार्मिक सौहाद्र बिगड़ सकता है. इन दो देशों में बौद्ध अनुयायियों की हिंसा में पिछले डेढ़ साल में काफी खून बहा है.
म्यांमार के रखीने प्रांत में 2012 में हुई हिंसा में करीब 200 रोहिंग्या मुसलमान मारे गए, जबकि हजारों लोगों को घर बार छोड़ कर भागना पड़ा. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा को स्थानीय नेताओं का साथ मिला हुआ है और यहां तक कि कई भिक्षुओं ने भी इस हिंसा में हिस्सा लिया.
बर्मा का बिन लादेन
इस साल मार्च में शुरू हुई हिंसा में 42 लोग मारे गए. खून खराबा माइकतिला शहर में शुरू हुआ. टाइम पत्रिका की स्टोरी में लिखा गया है कि बौद्ध नेता आशिन विरातु के नफरत भरे भाषणों की वजह से मुसलमानों के खिलाफ हिंसा शुरू हुई. विरातु को बर्मा का बिन लादेन कहा जाता है. वह सोशल मीडिया पर 969 मूवमेंट के बारे में अपनी बातें कहता रहता है. 969 एक कट्टरपंथी गुट है, जिसे कुछ मीडिया संगठन म्यांमार की नाजी संस्था कहते हैं.
उनका मिशन है कि बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग अपनी दुकानों, घरों और पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर 969 का स्टीकर लगाएं. कई जगहों पर मुसलमानों की जलाई गई इमारतों पर भी इन नंबरों को स्प्रे कर दिया गया है. विरातु का कहना है कि मुसलमानों के व्पायार का बहिष्कार किया जाना चाहिए और अंतरधार्मिक विवाहों को भी बंद कर दिया जाना चाहिए.
कई लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि इतना सहिष्णु और अहिंसक धर्म अचानक से हिंसा पर क्यों आमादा हो गया है. कुछ का मानना है कि पिछले पांच दशक में म्यांमार की बागडोर सैनिक जुंटा के हाथ रही और यह भी एक बड़ी वजह थी. मानवाधिकार संस्था आल्टसीन की डेबी स्टोट का कहना है, "लोगों को सरकार से सुरक्षा नहीं मिली. जुंटा के वक्त तो सच यह थी कि सरकार से खतरा ही था. आपकी धार्मिक पहचान और नस्ल आपकी सुरक्षा की वजह बनी और वह आज भी बहुत अहम रोल अदा करती है."
म्यांमार में करीब चार फीसदी आबादी मुसलमानों की है. म्यांमार का कहना है कि ये लोग बांग्लादेश से वहां आए हैं, जबकि इन रोंहिग्या मुसलमानों का दावा है कि वे म्यांमार के ही हैं.
श्रीलंका में भी कई बौद्ध भिक्षुओं ने हिंसा का समर्थन किया है. पिछले अप्रैल में जब एक मस्जिद पर हमला हुआ, तो कई इसमें शामिल हुए. उनका दावा था कि यह एक पवित्र बौद्ध भूमि पर बनाया गया. इसी तरह पास की एक इस्लामी इमारत को भी बौद्ध भिक्षुओं की अगुवाई में ढाह दिया गया था.
बैंकाक के अंतरराष्ट्रीय बौद्ध नेटवर्ट आईएनईबी के संस्थापक अजर्न सुलक सिवरकसा का कहना है, "इस बात का खतरा रहता है कि इस तरह की भावनाएं भड़काई जाती हैं और इसके पीछे नेता भी होते हैं."
श्रीलंका के एक अतिवादी बौद्ध ग्रुप (बोडू बाला सेना) को रक्षा मंत्री गोताबाया राजपक्षे का समर्थन हासिल है. राजपक्षे राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के भाई हैं. इसी तरह बताया जाता है कि म्यांमार में नफरत भरी बातें फैलाने वाला एक अहम शख्स राष्ट्रपति थेन श्वान के कार्यालय में काम करता है.
सिवरकसा का कहना है, "इस तरह का बौद्ध धर्म, जो फिलहाल श्रीलंका या म्यांमार में नजर आ रहा है और जो पहले जापान में दिख चुका है, वह राष्ट्रीयता से जुड़ा है और बेहद खतरनाक है."
थाइलैंड में भी बौद्ध धर्म को मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है. सेना को तीन प्रांतों में मुस्लिम अलगाववादियों से भिड़ना पड़ा है. बताया जाता है कि सेना ने बौद्ध मंदिरों में हथियार और असलहे जमा किए हैं. अमेरिकी बुद्धिजीवी माइकल जेरीसन का दावा है कि इन इमारतों में संदिग्धों से पूछताछ भी की जाती है.
हालांकि दक्षिणी थाइलैंड में मुसलमानों की आबादी ज्यादा है, फिर भी शिक्षाविदों को इस बात से एतराज है कि इन इमारतों का इस तरह इस्तेमाल हो रहा है. बैंकाक के चुलालोंगकोर्न यूनिवर्सिटी में बौद्ध दर्शनशास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर सुवाना सतानंद का कहना है, "मुझे यह तरीका बिलकुल पसंद नहीं है." उनका कहना है कि विरातु पहला बौद्ध नेता नहीं है, जो नफरत की बातें फैला रहा हो, बल्कि 1970 के दशक में दक्षिण पूर्वी एशिया में कम्युनिज्म के खिलाफ भी ऐसा ही हुआ, "उस वक्त, एक मशहूर बौद्ध भिक्षु ने इंटरव्यू दिया कि कम्युनिस्टों की हत्या कोई गुनाह नहीं. ऐसा लगता है कि जब भी थाइलैंड सरकार एक मुश्किल समय में होती है, बौद्ध धर्म को ऐसी हिंसा के लिए न्यायोचित ठहरा दिया जाता है."
म्यांमार में नफरत और असहिष्णुता ने मुसलमानों के दिल में डर पैदा कर दिया है. इसकी वजह से उदारवादी बौद्ध भी परेशान हैं. स्टोट का कहना है, "हमने देखा है कि रखाने के राष्ट्रवादी लोगों ने उदारवादी बौद्धों की हत्या की है क्योंकि इन लोगों ने मुसलमानों को चावल बेचने या दूसरी सुविधाएं दी थीं. कई जगहों पर तो इन उदारवादी लोगों को अपने ही धर्म के लोगों से ज्यादा खतरा है, जहां वे 969 से जुड़े हैं."
रिपोर्टः निक मार्टिन, बैंकाक (एजेए)
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन