उत्तराखंड के आमोद पंवार सोलर प्लांट से कमाते हैं 15 लाख रुपए
२८ अगस्त २०२३मार्च 2020 में जब देशभर में बढ़ते कोविड संक्रमण को देखते हुए लॉकडाउन की घोषणा की गई, उस समय आमोद पंवार पहाड़ पर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने में व्यस्त थे. कोविड संक्रमण और फिर उसके बाद लगे लॉकडाउन की वजह से जहां लाखों लोग बेरोजगार हो गए, वहीं आमोद पंवार न सिर्फ अपने, बल्कि दर्जनों और लोगों के लिए रोजगार का एक बेहतरीन सिस्टम तैयार कर रहे थे.
आमोद, उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर चिन्यालीसौड़ के इंद्राटिपरी गांव के रहने वाले हैं. आमोद इस समय अपने सौर ऊर्जा प्लांट से करीब 200 किलोवॉट बिजली का उत्पादन करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने स्थानीय लोगों की मदद से मुर्गी पालन, गाय पालन, सब्जी उत्पादन और मधुमक्खी पालन का काम भी शुरु किया है.
ऊंचे पहाड़ पर सोलर प्लांट सफलतापूर्वक लगाने का आमोद कुमार का विचार तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी इतना पसंद आया कि एक निजी प्लांट होने के बावजूद वो उसका उद्घाटन करने के लिए उनके गांव आए.
कैसे हुई शुरुआत?
आमोद बताते हैं कि उनके पास कुछ बंजर जमीन थी और आस-पास के अन्य लोगों से कुछ और जमीन किराये पर ले ली, ताकि उस बंजर जमीन का इस्तेमाल किया जा सके. इसके लिए सोलर पावर प्लांट लगाने का फैसला किया गया क्योंकि सरकार ने नई-नई यह योजना शुरू की थी.
आमोद कहते हैं, "मैंने 2019 में सोलर प्लांट योजना के लिए आवेदन दिया. इसके लिए 80 लाख रुपये का लोन भी लिया. पूरे देश में कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन लगने के एक दिन पहले यानी 23 मार्च को हमारा 200 किलो वॉट का प्लांट ग्रिड से जुड़ा और बिजली उत्पादन का काम शुरू हो गया.”
आमोद बताते हैं कि कोविड के दौरान जब गांव के ही तमाम युवक नौकरी से हाथ धोने के बाद वापस लौट रहे थे, तब वह गांव में रहकर ही अच्छी-खासी आमदनी कर रहे थे. वह बताते हैं कि सोलर प्लांट को स्थापित करने के बाद आस-पास की बंजर जमीन को भी उपजाऊ बनाने का निश्चय किया गया. इस काम में उन्होंने कई स्थानीय युवाओं की मदद ली, उन्हें भी रोजगार दिया. जल्दी ही प्लांट के पास ही खेती के साथ-साथ पशुपालन का काम भी शुरू कर दिया.
कैसी मुश्किलें आईं?
हालांकि आमोद के लिए यह रास्ता बहुत आसान नहीं था. आमोद कहते हैं कि पहाड़ पर सौर ऊर्जा रोजगार का बेहतरीन जरिया हो सकता है, लेकिन वह उन परिस्थितियों का भी जिक्र करना नहीं भूलते जिनकी वजह से उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा.
डीडब्ल्यू से बातचीत में आमोद कहते हैं, "यह पहाड़ का पहला सोलर प्रोजेक्ट था. हमारे यहां माइग्रेशन बहुत ज्यादा हो गया है. हम लोग इसे रोकने और पहाड़ बचाने को लेकर सोलर पावर प्लांट को एक सेंटर की तरह स्थापित करना चाह रहे थे, लेकिन शुरुआत में काफी दिक्कतें हुईं. बैंक वाले लोन देने को तैयार नहीं थे. बैंकर्स के साथ मीटिंग नहीं हो पा रही थी. यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय तक को पत्र लिखना पड़ा और तब जाकर प्राशासनिक अधिकारियों और बैंक अधिकारियों के साथ हमारी बैठक हुई.”
रिश्वत लेने वालों पर कार्रवाई
आमोद बताते हैं कि इस सोलर पावर प्रोजेक्ट में करीब 90 लाख रुपये का खर्च आया. इसमें से 80 लाख रुपये उन्होंने बैंक से कर्ज लिए हैं. सोलर पावर प्लांट बन जाने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी उनके काम की काफी तारीफ की और उसका उद्घाटन करने की इच्छा जताई, लेकिन आमोद ने शुरू में इसके लिए साफ मना कर दिया. इस बारे में वह एक बेहद दिलचस्प कहानी सुनाते हैं.
आमोद के मुताबिक, "जब प्रोजेक्ट चालू हो गया, तो मुख्यमंत्री जी ने मुझे फोन किया. मुख्यमंत्री ने उद्घाटन करने की इच्छा जताई. मैंने मना कर दिया. पूछे क्यों? मैंने कहा कि इस काम को पूरा करने में मैंने इतने लोगों को तो रिश्वत दे रखी है, तो मैं उद्घाटन के लिए क्यों बुलाऊं? बाद में मुख्यमंत्री ने इसका संज्ञान लिया."
आमोद आगे बताते हैं, "मुझे देहरादून बुलाया गया और पूछा गया, तो मैंने बता दिया कि यह कहकर रिश्वत मांगी जाती है कि ये ऊपर तक जाता है. इसलिए मैं बेईमान लोगों से उद्घाटन नहीं कराऊंगा. मुख्यमंत्री ने तत्काल ऐक्शन लिया. जांच बैठाई और उत्तरकाशी जिला कोऑपरेटिव बैंक के जीएम को सस्पेंड किया गया. उसके बाद जिन-जिन लोगों ने मुझसे पैसे लिए थे, सबने अपने आप माफी मांगते हुए रुपये वापस कर दिए. चूंकि जीएम के खिलाफ सबूत थे, तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया लेकिन और लोगों के खिलाफ सबूत नहीं थे, तो वे बच निकले. लेकिन उन लोगों को अपनी गलती का एहसास हो गया.”
आगे बढ़ रही है मुहिम
आमोद बताते हैं कि उनके पावर प्लांट के लगने के बाद से अब तक उत्तराखंड में करीब एक हजार प्रोजेक्ट लग चुके हैं. करीब 1,500 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है. वह बताते हैं कि पहाड़ पर सोलर बहुत सफल है क्योंकि यहां मैदानी इलाकों की तुलना में करीब दो गुनी ज्यादा बिजली पैदा होती है. बैंकों ने भी इसकी आर्थिक संभावनाओं को देखते हुए बाद में खूब लोन दिया.
सोलर पावर प्लांट लगाने में ज्यादातर खर्च सिविल वर्क, मशीनों, वायरिंग और सोलर प्लेट्स लगाने में होता है. उसके बाद रख-रखाव पर ज्यादा खर्च नहीं होता है. आमोद बताते हैं कि प्लांट के रखरखाव के लिए उन्होंने सिर्फ दो स्थायी कर्मचारी रखे हुए हैं. हां, जिस समय इसका निर्माण कार्य चल रहा था तब यहां करीब 300 लोगों को काम मिला हुआ था.
आमोद कहते हैं, "सोलर प्लेट्स के नीचे हमने सब्जियां उगानी शुरू कीं और मधुमक्खी पालन भी शुरू किया है. एक तालाब बनाया है, जिसमें गर्मियों के मौसम में तीन महीने तो बच्चे नहाते हैं और नौ महीने उसमें मछली पालन होता है. गर्मी के समय में स्वीमिंग पूल का काम होता है."
आमोद ने जिन लोगों की जमीन किराये पर ली हुई है, खेती और मधुमक्खी पालन, मछली पालन वगैरह का काम वही लोग करते हैं और इसका आर्थिक लाभ भी उन्हीं को मिलता है. आमोद बताते हैं, "इस प्लांट के जरिए सालाना औसतन तीन लाख यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा है. इस बिजली की खरीद यूपीसीएल 4.38 रुपए प्रति यूनिट की दर से कर रही है. महीने में एक से डेढ़ लाख रुपये की अकेले मुझे आमदनी होती है और बाकी जो लोग खेती वगैरह करते हैं, उन्हें अलग इसका लाभ मिल रहा है.”