अंतरिक्ष में बनेगी बिजली और सीधे घरों तक पहुंचेगी
२२ नवम्बर २०२२जब दुनिया सौर ऊर्जा को लेकर इतना उत्साहित है कि हर देश सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट बनाने की जुगत में लगा है, तब यह सवाल लाजमी है कि जहां हर वक्त सूरज मौजूद रहता है, यानी अंतरिक्ष में से ही सीधे ऊर्जा को जमा किया जा सकता है या नहीं.
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) इस दिशा में अहम कदम उठाने की तैयारी में है. अंतरिक्ष विज्ञान के जानकार इस बात का पता लगाना चाहते हैं कि क्या अंतरिक्ष से सीधे लोगों के घरों तक बिजली पहुंचाई जा सकती है.
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इस बारे में एक अध्ययन की शुरुआत होनी है जिसकी इजाजत इसी हफ्ते मिल जाने की संभावना है. तीन साल लंबे इस अध्ययन में यह समझने की कोशिश की जाएगी कि अंतरिक्ष में विशाल सोलर फार्म बनाना कितना संभव और खर्चीला हो सकता है.
कैसे काम करेंगे ये फार्म?
वैज्ञानिक चाहते हैं कि पृथ्वी की कक्षा में विशालकाय उपग्रह स्थापित किए जाएं. इन उपग्रहों पर भीमकाय सौर पैनल लगाए जाएं जो किसी बिजली संयंत्र की तरह बिजली पैदा करें और उसे सीधे लोगों के घरों में भेज दें.
यह विचार कोई नया नहीं है और बहुत से संस्थानों और अंतरिक्ष एजेंसियों ने इस पर पहले भी काम किया है. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की योजना के रूप में पहली बार इस विचार को ठोस आधार मिला है.
ईएसए के मुताबिक ऊपरी वातावरण में सौर किरणों की तीव्रता पृथ्वी के धरातल के मुकाबले दस गुना से भी ज्यादा है और यह हर वक्त उपलब्ध है. ईएसए की वेबसाइट पर प्रकाशित लेख में कहा गया है कि यह विचार काफी लंबे समय से रहा है लेकिन यूरोप में 2050 तक नेट कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के लक्ष्य ने इस दिशा में काम करने को नया उत्साह दिया है.
ईएसए कहती है, "अंतरिक्ष से बिजली को सीधा पृथ्वी पर कैसे पहुंचाया जाएगा, इस बारे में दशकों के शोध से अलग-अलग तरह के कई डिजाइन तैयार किये जा चुके हैं. कथित रेफरेंस डिजाइन में फोटोवॉल्टिक सेल के जरिए सौर ऊर्जा को पृथ्वी की कक्षा में ही बिजली में परिवर्तित किया जाएगा. उस बिजली को फिर बिना किसी तार के 2.45 गीगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी पर माइक्रोवेव के रूप में पृथ्वी पर स्थित रिसीवर पर भेजा जाएगा.”
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ये रिसीवर रेक्टेना कहलाते हैं जो माइक्रोवेव से मिली ऊर्जा को दोबारा बिजली में बदल देते हैं. उसके बाद इन्हें स्थानीय बिजली घरों को भेजा जाएगा. ईएसए कहती है, "चूंकि बिजली को बिना किसी तार के स्थानांतरित किया जाएगा, तो यह चांद या अन्य ग्रहों जैसी किसी भी जगह पर रिसीवर स्टेशन के माध्यम से भेजी जा सकती है. इस तरह उपलब्ध ऊर्जा से हमारी अंतरिक्ष अनुसंधान की क्षमताओं में वृद्धि होगी."
क्या हैं चुनौतियां?
अंतरिक्ष में बिजली जमा करके उसे धरती या किसी भी जगह भेजने की यह पूरी प्रक्रिया जिन तकनीकों और भौतिकी के नियमों पर आधारित है, वे पहले से मौजूद हैं और कुछ नया खोजने की जरूरत नहीं है. आज भी उपग्रहों से टीवी सिग्नल और संचार के अन्य तरह के सिग्नल पृथ्वी पर भेजे जा रहे हैं. जिन उपग्रहों से ऐसा किया जा रहा है, वो मूलतः किरणों को रिसीवर तक भेजने के सिद्धांत पर ही काम करते हैं. लेकिन फिलहाल यह काम छोटे स्केल पर हो रहा है और बिजली बनाकर भेजने के लिए ज्यादा बड़े स्केल पर काम करना होगा.
ईएसए के विशेषज्ञ कहते हैं, "कम कीमत पर सौर ऊर्जा पैदा करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पृथ्वी और अंतरिक्ष में जो ढांचा बनाना होगा, वह बहुत बड़ा होगा. पृथ्वी की कक्षा से बिजली ट्रांसमिट करने वाले उपग्रह पर ट्रांसमिटर की सतह करीब एक किलोमीटर तक लंबी हो सकती है. पृथ्वी पर रिसीवर का आकार इससे दस गुना ज्यादा बड़ा हो सकता है."
यह काम आसान नहीं होगा. पृथ्वी की कक्षा में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बनाने के लिए अंतरिक्ष यानों से दर्जनों यात्राएं करनी पड़ी हैं. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का वजन लगभग 4.5 लाख किलोग्राम है और उसकी लंबाई है सिर्फ 108 मीटर. तब उससे लगभग दस गुना बड़ा ढांचा तैयार करने के लिए सामग्री और ऊर्जा कहीं ज्यादा लगेगी. इस पर खर्च भी ज्यादा आएगा, लिहाजा अंतरिक्ष से जो बिजली मिलेगी, वह उतनी सस्ती भी नहीं होगी जितने की जरूरत है. यही वजह है कि इतने लंबे समय से उपलब्ध होने के बावजूद यह विचार अमल में नहीं लाया जा सका.
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हालांकि, ईएसए के मुताबिक अब खर्च उतना ज्यादा नहीं होगा, जितना अब तक आंका जा रहा था. ईएसए विशेषज्ञ लिखते हैं, "दुनियाभर में पृथ्वी से प्रक्षेपण का खर्च घटने की ओर है इसलिए इस तरह का निर्माण का खर्च उठाया जा सकता है और फिर, इसका अंतिम परिणाम एक ऐसा स्रोत होगा जो लगातार स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध करवाएगा."
अंतरिक्ष में जिस आकार का सौर संयंत्र बनाने की बात हो रही है, वह लगभग दो गीगावाट बिजली पैदा कर सकेगा. इतनी बिजली एक पारंपरिक परमाणु संयंत्र पैदा करता है और दस लाख से ज्यादा घरों को रोशन कर सकती है.
विवेक कुमार