एचआईवी पॉजिटिव लोगों के बीच किडनी ट्रांसप्लांट सुरक्षितः शोध
१७ अक्टूबर २०२४अमेरिकी शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में साबित किया है कि एचआईवी से संक्रमित लोगों के अंग अन्य एचआईवी संक्रमित लोगों को लगाए जा सकते हैं. दुनियाभर में अंग दान करने वालों की कमी और प्रत्यारोपण के लिए अंगों की किल्लत के चलते यह अध्ययन फायदेमंद साबित हो सकता है. इससे एचआईवी संक्रमण की परवाह किए बिना, सभी के लिए अंगों के इंतजार का समय कम हो सकता है.
यह नया अध्ययन बुधवार को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ. अध्ययन में अमेरिका में किडनी प्रत्यारोपण के 198 मामलों का विश्लेषण किया गया. शोधकर्ताओं ने पाया कि किडनी चाहे एचआईवी संक्रमित व्यक्ति से आई हो या गैर-एचआईवी संक्रमित व्यक्ति से, परिणाम लगभग समान रहे.
पिछले महीने, अमेरिका के स्वास्थ्यऔर मानव सेवा विभाग ने एक नया नियम प्रस्तावित किया है, जिसके अनुसार, शोध अध्ययनों के बाहर भी एचआईवी संक्रमित दाताओं से किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट की अनुमति दी जा सकती है. यह नियम जीवित और मृतक दोनों प्रकार के दाताओं पर लागू होगा. अगर इसे मंजूरी मिलती है, तो यह अगले साल से लागू हो सकता है.
अध्ययन में शामिल सभी प्रतिभागी एचआईवी पॉजिटिव थे और उनकी किडनी काम करना बंद कर चुकी थी. इन प्रतिभागियों ने सहमति दी थी कि उन्हें एचआईवी पॉजिटिव या एचआईवी नेगेटिव मृतक दाता से जो भी किडनी पहले मिले, वे स्वीकार करेंगे.
शोध के नतीजे
शोधकर्ताओं ने अंग प्राप्त करने वाले लोगों की चार साल तक निगरानी की. एचआईवी पॉजिटिव लोगों से किडनी पाने वाले मरीजों की तुलना एचआईवी नेगेटिव दाताओं से किडनी पाने वाले मरीजों से की गई.
दोनों समूहों में जीवित रहने और शरीर द्वारा अंग स्वीकार ना किए जाने की दर समान थी. एचआईवी पॉजिटिव दाता समूह में 13 रोगियों और दूसरे समूह में चार रोगियों में वायरस का स्तर बढ़ा, लेकिन यह ज्यादातर उन रोगियों से संबंधित था, जिन्होंने नियमित रूप से एचआईवी की दवाएं नहीं ली थीं. सभी मामलों में, वायरस का स्तर फिर से बहुत कम स्तर पर आ गया.
अध्ययन के सह-लेखक डॉ. डोरी सेगव ने कहा, "यह ट्रांसप्लांट की सुरक्षा और शानदार परिणामों को दिखाता है."
2010 में दक्षिण अफ्रीका के सर्जनों ने पहली बार यह साबित किया था कि एचआईवी संक्रमित दाताओं के अंगों का इस्तेमाल एचआईवी संक्रमित लोगों में सुरक्षित है. लेकिन अमेरिका में 2013 तक ऐसे प्रत्यारोपण की अनुमति नहीं थी. 2013 में सरकार ने इस पर से प्रतिबंध हटाया और अध्ययनों की अनुमति दी.
सूअर की किडनी पाने वाले पहले इंसान की मौत
पहले ये अध्ययन मृतक दाताओं के साथ किए गए थे. फिर 2019 में, सेगव और अन्य विशेषज्ञों ने जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में एचआईवी पॉजिटिव जीवित दाता से एचआईवी पॉजिटिव मरीज को किडनी ट्रांसप्लांट किया. यह दुनिया का पहला ऐसा मामला था. अब तक अमेरिका में एचआईवी पॉजिटिव दाताओं से 500 किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट हो चुके हैं.
बढ़ेंगे अंग देने वाले
इंडियाना यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की प्रोफेसर कैरी फूट ने कहा कि एचआईवी संक्रमित लोगों को अंग दान करने से हतोत्साहित किया जाता है. इसका कारण कलंक और पुराने कानून हैं, जो एचआईवी संक्रमित लोगों के अंग दान को आपराधिक बनाते थे.
फूट खुद एचआईवी पॉजिटिव हैं और एक पंजीकृत अंग दाता भी हैं. उन्होंने कहा, "हम न केवल एचआईवी के साथ जीने वाले लोगों की मदद कर सकते हैं, बल्कि पूरे अंग पूल में और अधिक अंगों को उपलब्ध करवा सकते हैं, ताकि एचआईवी रहित लोग भी जल्दी अंग प्राप्त कर सकें. यह सभी के लिए फायदेमंद है"
अमेरिका के अंग प्राप्ति और ट्रांसप्लांटेशन नेटवर्क के अनुसार, 90,000 से अधिक लोग किडनी ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा सूची में हैं. 2022 में, 4,000 से अधिक लोगों की किडनी का इंतजार करते हुए मौत हो गई.
जर्नल में एक संपादकीय में, दक्षिण अफ्रीका की स्टेलनबॉश यूनिवर्सिटी के डॉ. एल्मी म्यूलर ने कहा कि इस नए अध्ययन का असर कई देशों में होगा, जहां ऐसे अंगों का ट्रांसप्लांट नहीं होता. भारत जैसे देशों में अंग दान करने वालों की संख्या बहुत कम है.
म्यूलर ने ही सबसे पहले इस प्रत्यारोपण की शुरुआत की थी. उन्होंने लिखा, "सबसे बढ़कर, हमने एचआईवी के साथ जीने वाले लोगों के लिए निष्पक्षता और समानता की दिशा में एक और कदम बढ़ाया है."
वीके/एए (रॉयटर्स)