सुप्रीम कोर्ट: अविवाहित महिलाओं को भी गर्भपात का अधिकार
२९ सितम्बर २०२२सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं. कोर्ट ने कहा विवाहित, अविवाहित महिलाओं के बीच का अंतर असंवैधानिक है.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक महिला की वैवाहिक स्थिति उसे गर्भपात के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती है. अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अविवाहित महिलाएं भी 24 सप्ताह के भीतर अवांछित गर्भावस्था को समाप्त करने की हकदार होंगी. कोर्ट के इस फैसले का अर्थ यह है कि अविवाहित महिलाओं को भी 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार हासिल हो गया है.
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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस ऐतिहासिक फैसले को सुनाते हुए कहा, "मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में 2021 का संशोधन विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं करता है."
सबको समान अधिकार
साथ ही कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी नियम 3 बी का भी विस्तार कर दिया है. 20 हफ्ते से अधिक और 24 हफ्ते से कम के भ्रूण के गर्भपात का अधिकार अब तक सिर्फ विवाहित महिलाओं को था. सुप्रीम कोर्ट ने इसे समानता के अधिकार के खिलाफ माना है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि किसी महिला को 20 हफ्ते के ज्यादा के गर्भ को गिराने से मना इस आधार पर करना कि वह अविवाहित है, यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा.
एमटीपी एक्ट के प्रावधानओं की व्याख्या करते हुए कोर्ट ने अपना यह फैसला सुनाया है. एमटीपी एक्ट के मुताबिक सिर्फ बलात्कार पीड़ित, नाबालिग या फिर उन महिलाओं को 24 हफ्ते तक अबॉर्शन की इजाजत है जो मानसिक रूप से बीमार हो. कानून के मुताबिक सहमति से बने संबंध से ठहरे गर्भ को सिर्फ 20 हफ्ते तक गिराया जा सकता है.
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वैवाहिक बलात्कार पर कोर्ट की टिप्पणी
बलात्कार पीड़ितों के गर्भपात के अधिकार की ओर उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि विवाहित महिलाएं भी यौन उत्पीड़न और बलात्कार पीड़ितों की श्रेणी में आ सकती हैं. क्योंकि यह काफी संभव है कि पति द्वारा गैर-सहमति वाले कार्य के कारण एक महिला गर्भवती हो सकती है. कोर्ट ने कहा अगर इस तरह से विवाहित महिलाएं जबरन गर्भवती होती हैं तो वह भी बलात्कार माना जाएगा.
कोर्ट ने कहा, "कोई भी महिला यह कहे कि वह जबरन गर्भवती हुई है तो उसे बलात्कार माना जा सकता है."
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रेगनेंसी बनी रहे या फिर गर्भपात कराया जाए यह महिला के अपने शरीर पर अधिकार से जुड़ा मामला है.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 25 साल की अविवाहित युवती की याचिका पर आया है. याचिकाकर्ता युवती सहमति से सेक्स से गर्भवती हुई थी और उसने बाद में दिल्ली हाईकोर्ट से 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की इजाजत मांगी थी, जिसे हाईकोर्ट ने मंजूर नहीं किया था. युवती ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसपर कोर्ट ने दिल्ली एम्स के मेडिकल बोर्ड के अधीन गर्भपात कराने की इजाजत दी थी. बोर्ड ने पाया था कि महिला के जीवन को खतरा हुए बिना गर्भपात किया जा सकता है.